मुंबई: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अगस्त महीने का महत्व काफी ज्यादा है। इसी महीने 15 अगस्त को हमारा देश आजाद हुआ। इससे पहले 9 अगस्त, 1942 को आजादी के लिए संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया गया था। इसलिए इस दिन को क्रांति दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। यहां तक की मुंबई के जिस पार्क से इस क्रांति की शुरुआत हुई थी, उसे भी अगस्त क्रांति का ही नाम दिया गया।
अवज्ञा आंदोलन की हुई शुरुआत
दरअसल जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत से उसका समर्थन मांगा था, जिसके बदले में भारत की आजादी का वादा भी किया था। लेकिन जब इस युद्ध में मित्र सेनाओं (जिसका ब्रिटेन भी एक अहम् हिस्सा था) की जीत हुई तो अंग्रेज अपने वादे से मुकर गए। जिससे भारत खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगा। इस असंतोष को अभिव्यक्ति देने के लिए अवज्ञा आंदोलन का निर्णय लिया गया। 4 जुलाई, 1942 के दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित किया कि अगर अंग्रेज अब भारत नहीं छोड़ते हैं, तो उनके खिलाफ देशव्यापी पैमाने पर नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाया जाएगा।
‘भारत छोड़ो आंदोलन’/’अगस्त क्रांति’ का किया समर्थन
हालांकि इस प्रस्ताव को लेकर भी पार्टी दो धड़ों में बंट गई। कांग्रेस के कुछ लोग इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं थे। लेकिन गांधीजी के आह्वान पर इसका समर्थन करने का निर्णय लिया। 8 अगस्त, 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बंबई अधिवेशन में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ यानी ‘अगस्त क्रांति’ का प्रस्ताव पारित किया गया। इस आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने पूरी ताकत लगा दी और सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। इसके बावजूद इस आंदोलन ने रफ्तार पकड़ ली और इसे पूरे देशवासियों का भरपूर समर्थन मिला।
हिल गई थी अंग्रेजी हुकूमत
ऐसा माना जाता है कि यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का आखिरी सबसे बड़ा आंदोलन था, जिसमें सभी भारतीयों ने मिलकर बड़े पैमाने पर भाग लिया था। अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने भूमिगत रहकर भी संघर्ष किया। गांव से लेकर शहर तक बड़ी-बड़ी रैलियां होने लगीं। कहा जाता है कि इसकी व्यापकता को देखकर अंग्रेजी हुकूमत हिल गई थी। अंग्रेजों को यकीन हो गया था कि अब उन्हें यह देश छोड़ना होगा।
आंदोलन को कुचलने के लिए लिया हिंसा का सहारा
अगस्त क्रांति की शुरुआत अहिंसा के साथ हुई थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए हिंसा का सहारा लिया। भारत के कुछ स्थानों में हिंसा की शुरुआत हो गई थी। ये एक महत्वपूर्ण कारण था, जिस कारण भारत छोड़ो आंदोलन असफल हो गया। आंदोलन के हिंसा में बदलने के कारण लगभग 30 लाख लोगों की जान गई। 1944 में जैसे ही गांधी जी जेल से रिहा हुए, वह 21 दिन के उपवास में बैठ गए। अंततः अंग्रेजों को हार का सामना करना पड़ा और वे भारतीयों के हाथों मिली हार को पचा नहीं सके। ऐसी स्थिति में अंग्रेजों ने भारत को तुरंत आजादी देने से इनकार कर दिया। लेकिन 5 साल के इंतजार के बाद, द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली।