कर्नाटक हाई कोर्ट (सोर्स- सोशल मीडिया)
बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मृतक मुस्लिम महिला की संपत्ति के उत्तराधिकार के मामले पर सुनवाई करते हुए एक ऐसी टिप्पणी की जिससे मोदी सरकार की राह आसान हो जाएगी। वहीं, बीजेपी नेताओं को भी इस बात पर इतराने का मौका मिलेगा कि उनकी सरकार सही दिशा में काम कर रही है। क्योंकि केंद्र की मोदी सरकार ही यूनिफार्म सिविल कोड लेकर आई थी। इतना ही नहीं बीजेपी शासित उत्तराखंड और गोवा में यह कानून लागू भी हो चुका है।
दरअसल, कर्नाटक हाईकोर्ट ने शनिवार को कहा कि देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करना बेहद जरूरी है। इससे सभी नागरिकों (खासकर महिलाओं) को समान अधिकार मिलेंगे। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से मिलकर ऐसा कानून बनाने की अपील की है।
यह टिप्पणी जस्टिस हंचेट संजीव कुमार की सिंगल जज बेंच ने पारिवारिक संपत्ति विवाद के एक मामले में की। यह मामला मुस्लिम महिला शहनाज बेगम की मौत के बाद उनकी संपत्ति के बंटवारे का था, जिसमें उनके भाई-बहन और पति के बीच विवाद था। कोर्ट ने इस मामले के बहाने मुस्लिम पर्सनल लॉ पर सवाल उठाए और कहा कि यह कानून महिलाओं के साथ भेदभाव करता है।
कोर्ट ने कहा कि हिंदू कानून में बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार है, जबकि मुस्लिम कानून में भाई को मुख्य हिस्सेदार और बहन को कम हिस्सेदार माना जाता है, जिसके कारण बहनों को कम हिस्सा मिलता है। कोर्ट ने कहा कि यह असमानता संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के खिलाफ है।
कोर्ट ने कहा कि गोवा और उत्तराखंड जैसे राज्य पहले ही यूसीसी की दिशा में कदम उठा चुके हैं। इस वजह से अब केंद्र और दूसरे राज्यों को भी इस दिशा में काम करना चाहिए। कोर्ट ने अपने फैसले की कॉपी केंद्र और कर्नाटक सरकार के कानून सचिवों को भेजने के निर्देश दिए हैं।
जस्टिस कुमार ने अपने फैसले में डॉ. बीआर अंबेडकर, सरदार पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे नेताओं के भाषणों का हवाला देते हुए कहा कि ये सभी समान नागरिक संहिता के पक्ष में थे। उनका मानना था कि देश में समान नागरिक कानून होने चाहिए, जिससे राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समानता को बढ़ावा मिले।
शहनाज बेगम की मौत के बाद उनके भाई, बहन और पति के बीच उनकी दो संपत्तियों को लेकर विवाद हो गया था। भाई-बहनों का दावा था कि शहनाज ने ये संपत्तियां अपनी कमाई से खरीदी हैं, इसलिए सभी को बराबर हिस्सा मिलना चाहिए। लेकिन पति का कहना था कि दोनों ने मिलकर संपत्तियां खरीदी हैं, इसलिए उसे बड़ा हिस्सा मिलना चाहिए।
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तथ्यों की जांच के बाद कोर्ट ने माना कि संपत्तियां पति-पत्नी की संयुक्त कमाई से खरीदी गई थीं, जबकि वे सिर्फ पत्नी के नाम पर थीं। इस आधार पर हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और दोनों संपत्तियों में से 1/10 हिस्सा दोनों भाइयों को दिया। बहन को 1/20 हिस्सा और पति को 3/4 हिस्सा दिया गया।