जस्टिस दीपांकर दत्ता (फोटो- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस दीपांकर दत्ता ने न्यायपालिका की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम को बाहरी ताकतों से प्रभावित बताते हुए इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताया। साथ ही उन्होंने इस धारणा को गलत ठहराया कि जज ही जजों की नियुक्ति करते हैं। जस्टिस दत्ता ने चीफ जस्टिस बीआर गवई से अपील की कि वे इस भ्रम को तोड़ें और कॉलेजियम को और पारदर्शी बनाएं।
जस्टिस दत्ता ने 2019 की एक घटना को याद करते हुए बताया कि कलकत्ता हाई कोर्ट कॉलेजियम ने एक वकील की जज के रूप में नियुक्ति की सिफारिश की थी, लेकिन छह साल बीतने के बाद भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने सवाल किया कि यदि न्यायाधीश ही नियुक्त करते, तो फिर यह नियुक्ति क्यों लंबित है? इस तरह की रुकावटें केवल बाहरी हस्तक्षेप के कारण ही संभव हैं, जिनसे अब सख्ती से निपटना होगा।
‘बाहरी दबावों पर हो सख्त कार्रवाई’
कानून की जानकारियों को रिपोर्ट करने वाली एक वेबसाइट के अनुसार जस्टिस दीपांकर दत्ता ने यह भी कहा कि कॉलेजियम की सिफारिशें केवल तभी लागू होती हैं जब उन्हें सरकार की मंजूरी मिले, जिससे यह साफ है कि प्रणाली में जजों के हाथ पूरी तरह स्वतंत्र नहीं हैं। उन्होंने जोर दिया कि ऐसी बाहरी शक्तियों को चिन्हित कर उन पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि न्यायिक प्रणाली की स्वतंत्रता को बनाए रखा जा सके। जस्टिस दत्ता ने लंबित फाइलों को प्राथमिकता देने और योग्यता आधारित नियुक्तियों की आवश्यकता पर भी बल दिया।
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अब पारदर्शिता की ओर बढ़ा कॉलेजियम
उन्होंने अपने संबोधन में 1980 के दशक का उदाहरण देते हुए कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट के तीन मुख्य न्यायाधीश एमएन चंदुरकर, चित्तोश मुखर्जी और पीडी देसाई सुप्रीम कोर्ट में नहीं आ सके, जबकि उनकी साख मजबूत थी। उन्होंने सवाल किया कि तब की व्यवस्था पर कोई सवाल क्यों नहीं उठता। हालांकि, उन्होंने मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम को पहले से अधिक पारदर्शी बताया और कहा कि CJI बीआर गवई के नेतृत्व में योग्यता को प्राथमिकता मिल रही है।