रविंद्र नाथ टैगोर (फोटो- नवभारत डिजाइन)
Death Anniversary Ravindranath Tagore: भारतीय साहित्य के लिए आज ही के दिन एक अपूर्णीय छति हुई थी। एक ऐसा साहित्यकार जिसके दुनिया छोड़ने से एक युग का अंत हो गया था। 7 अगस्त 1941 के दिन गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर का निधन हो गया था। परंतु, उनकी रचनाएं आज भी जीवंत हैं और वे मार्गदर्शन देती हैं। टेगौर केवल साहित्याकार नहीं बल्कि वे कवि, लेखक, चित्रकार, संगीतकार, शिक्षाशास्त्री, दार्शनिक और विचारक थे। एशिया के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें उनकी रचना गितांजलि के नोबेल पुरस्कार मिला था।
गुरुदेव की मृत्यु से पूरा देश शोक में डूब गया था। उनकी मृत्यु की सूचना जब राष्ट्रपित महात्मा गांधी को मिली तो उन्होने टैगोर के सम्मान में एक प्रार्थना सभा का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने कहा, “रवींद्रनाथ हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।” गांधी जी ने उन्हें “बंगाल का महानतम व्यक्ति” और “भारत का रत्न” बताया था।
गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर की महानता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें गुरुदेव नाम दिया था। गांधी और टैगोर में कुछ विषयों पर गहरे मतभेद थे, इसके बावजूद भी महात्मा गांधी टैगौर का बहुत सम्मान करते थे। टैगौर ने ही राष्ट्रपिता गांधी को पहले महात्मा कहा था। उन्हें बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूंकने वाले युगदृष्टा माना जाता है। वे दुनिया के एक मात्र ऐसे लेखक हैं, जिन्होंने देशों का राष्ट्रगान लिखा। जन-गण मन के रचयिता ने ही बांग्लादेश को ‘आमार सोनार बांग्ला” दिया। जिसे पूरे शान से हर बांग्लादेशी नागरिक गाता है।
रविंद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के ठाकुरबाड़ी में हुआ था। वह एक समृद्ध और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध परिवार संबंध रखते थे। उनका नाम रबीन्द्र नाथ ठाकुर था, लेकिन ब्रिटिश उच्चारण के चलते उनका नाम अंग्रेजों ने बोला नहीं जाता था। इसी वजह से रबींद्र रविंद्र हो गया और टैगोर को अंग्रेजों ने ठाकुर कर दिया। उनके पिता देवेंद्रनाथ टैगोर ब्रह्म समाज के एक प्रमुख नेता थे। टैगोर ने पारंपरिक विद्यालयी शिक्षा की अपेक्षा घर पर ही शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उनकी रचनात्मक प्रतिभा बचपन से ही प्रकट हो गई थी।
टैगोर का व्यक्तित्व बहुआयामी था – वे कवि, लेखक, चित्रकार, संगीतकार, शिक्षाशास्त्री, और दार्शनिक थे। उनकी सोच में मानवतावाद, प्रकृति-प्रेम, और वैश्विक एकता की झलक मिलती है। वे राष्ट्रीयता की संकीर्ण सीमाओं के विरोधी थे और हमेशा विश्वबन्धुत्व की बात करते थे।
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नोबेल पुरस्कार (1913): रविंद्रनाथ टैगोर को उनकी काव्य-कृति ‘गीतांजलि’ के लिए साहित्य में नोबेल पुरस्कार मिला, जो उन्हें यह सम्मान पाने वाले पहले एशियाई बने।
जन-गण-मन का रचयिता:भारत का राष्ट्रगान “जन-गण-मन” टैगोर द्वारा लिखा गया था। इसके अतिरिक्त बांग्लादेश का राष्ट्रगान “आमार सोनार बांग्ला” भी उन्होंने ही रचा।
शांतिनिकेतन की स्थापना: उन्होंने 1901 में शांतिनिकेतन की स्थापना की, जो आगे चलकर विश्वभारती विश्वविद्यालय बना। यह शिक्षा का एक अनोखा मॉडल था, जहाँ प्रकृति के साथ सामंजस्य में शिक्षा दी जाती थी।
राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान:टैगोर ने 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में ब्रिटिश सरकार द्वारा दिया गया ‘नाइटहुड’ का पद वापस कर दिया। यह उनके नैतिक साहस का प्रतीक था।