मिग-21 (सोर्स- सोशल मीडिया)
Indian Air Force Fighter Jet Mig-21: अब वो दिन दूर नहीं जब भारतीय वायुसेना का पहला सुपरसोनिक जेट फाइटर मिग-21 अपनी सेवाएं देना बंद कर देगा। कभी भारत की वीरता का प्रतीक रहा यह लड़ाकू विमान अपनी आखिरी उड़ान के लिए तैयार हो रहा है।
आसमान में अपनी गर्जना से दुश्मनों को डराने वाला यह विमान 19 सितंबर को चंडीगढ़ एयरबेस से आखिरी बार लोगों को अपनी बहादुरी का परिचय देगा। इस लड़ाकू विमान के बारे में सेवानिवृत्त एयर मार्शल ने कहा कि यह कोई उड़ता हुआ ताबूत नहीं था, इसने एक बार चार अमेरिकी लड़ाकू विमानों को धूल चटाई थी।
भारतीय वायुसेना से रिटायर्ड एयर मार्शल पृथ्वी सिंह बरार ने एक अखबार को बताया कि मिग-21 के कारनामों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक मशीन से कहीं बढ़कर था। मुझे मिग-21 बहुत पसंद है, इसने हमें ऑपरेशन में कभी निराश नहीं किया।
उन्होंने आगे कहा कि जब भी आप कोई विमान उड़ाते हैं, तो आपको वह बहुत पसंद आता है। 86 वर्षीय पृथ्वी सिंह बरार ने 1966 में चंडीगढ़ के ऊपर जेट उड़ाया था और 2000 में सेवानिवृत्त हुए। अपनी सेवानिवृत्ति से दो दिन पहले, उन्होंने मिग-21 भी उड़ाया था।
मिग-21 की सेवाओं और वीरता का ज़िक्र करते हुए, सेवानिवृत्त एयर मार्शल पृथ्वी सिंह बरार ने कहा कि इस विमान ने 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में दुश्मन देश के विमानों को धूल चटाई थी। इसके अलावा, इसने 1999 के कारगिल युद्ध में भी हिस्सा लिया था, साथ ही 2019 में अभिनंदन ने इसी लड़ाकू विमान से एक पाकिस्तानी F-16 को मार गिराया था।
बरार ने इस विमान को ‘उड़ता ताबूत’ कहने से असहमति जताई। उन्होंने कहा कि लड़ाकू पायलटों ने इस विमान को कभी इस नज़र से नहीं देखा था। बता दें कि 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, बरार ने अमृतसर से पाकिस्तान की सीमा तक मिग-21 उड़ाया था और उन्हें अपनी जान और इस विमान पर पूरा भरोसा था।
मिग-21 के भारत आगमन को याद करते हुए बरार ने बताया कि पाकिस्तान ने पहला सुपरसोनिक अमेरिकी स्टार फाइटर खरीदा था। पड़ोसी देश के पास यह विमान होने से भारत काफी तनाव में था। इसके बाद भारत ने रूस से संपर्क किया और फिर 1960 के दशक की शुरुआत में मिग-21 आया और इसके साथ ही सैन्य क्षेत्र में भारत की ताकत और बढ़ गई।
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बरार 1966 में मिग-21 पर प्रशिक्षित भारतीय पायलटों के पहले बैच में शामिल थे और नंबर 1 स्क्वाड्रन अपनी ज़रूरतों और परिस्थितियों के अनुसार खुद को संचालित करने के लिए प्रशिक्षित करने वाली पहली स्क्वाड्रन बनी।