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Zen-G Protest: नेपाल पर निर्भर उत्तराखंड के बनबसा बाजार पर जेन-जी आंदोलन का भारी असर दिखाई दिया। इस बाजार में अब सन्नाटा पसर गया है। स्थानीय व्यापारियों की मानें तो उनको को रोजाना 40 से 50 लाख रुपये तक का नुकसान झेलना पड़ रहा है।
बनबसा बाजार की लगभग 90 से 95 प्रतिशत दुकानें या तो बंद हैं या पूरी तरह खाली पड़ी हैं। दुकानदार खाली समय में गद्दियों पर बैठे रहते हैं या दिन में ही दुकानों से लौट जाते हैं। मीना बाजार, जो कभी ग्राहकों से गुलजार रहता था, अब वीरान हो गया है। नेपाली ग्राहकों की अनुपस्थिति ने व्यापार की रीढ़ तोड़ दी है।
नेपाल में सितंबर में शुरू हुए जेन-जी आंदोलन ने राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी है। युवाओं द्वारा भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और डिजिटल सेंसरशिप के खिलाफ छेड़े गए आंदोलन ने जल्द ही व्यापक रूप ले लिया। विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा में 19 लोगों की जान गई और 300 से अधिक घायल हुए। प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे के बाद सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया है, लेकिन हालात अब भी सामान्य नहीं हैं।
बनबसा बाजार नेपाल के महेंद्रनगर से सटा हुआ है। नेपाली ग्राहक यहां रोजाना इस्तेमाल की चीजें जैसे नमक, चीनी, तेल, सब्जियां, मसाले, कपड़े, हार्डवेयर और दवाइयां खरीदने आते हैं। लेकिन कर्फ्यू के चलते नेपाल से आने-जाने पर रोक लगने से व्यापार पूरी तरह ठप हो गया है। केवल 5 से 10 प्रतिशत ग्राहक स्थानीय भारतीय हैं जिन पर निर्भरता टिकना मुश्किल है।
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स्थानीय व्यापार मंडल के अनुसार, दशहरा और दीपावली के दौरान यहां रोजाना 2.5 से 3 करोड़ रुपये तक का व्यापार होता है। लेकिन यदि नेपाल में अशांति बनी रही, तो इन त्योहारों के समय भी बाजार सुना ही रहेगा। यह दशकों पुराने व्यापार तंत्र के लिए गंभीर चुनौती है। व्यापार मंडल अध्यक्ष भरत भंडारी ने कहा कि हमने कोविड जैसी स्थितियां देखी हैं, लेकिन यह तनाव अलग तरह का है। दशकों से चले आ रहे व्यापार को खतरा है। महामंत्री अभिषेक गोयल ने भी आशा जताई कि नेपाल में जल्द शांति लौटे ताकि रोटी-बेटी का संबंध फिर मजबूत हो सके।
-आईएएनएस इनपुट के साथ