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होमी जहांगीर भाभा दूसरे विश्वयुद्ध की वजह नहीं लौटे कैंब्रिज, भारत में रखी परमाणु कार्यक्रम की नींव

  • By शुभम सोनडवले
Updated On: Oct 30, 2021 | 06:00 AM
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नई दिल्ली. भारत (India) के पहले परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम (nuclear program) के जनक कहे जाने वाले प्रसिद्ध परमाणु भौतिक वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा (Homi Jehangir Bhabha 112th Birthday) की आज 112वीं जयंती है। उनका जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था। डॉ. भाभा को नोबेल पुरस्कार विजेता सी.वी. रमन भारत का लियोनार्दो द विंची कहकर बुलाते थे। डॉ. भाभा ने देश के परमाणु कार्यक्रम के भावी स्वरूप की मजबूत नींव रखी, जिसके चलते भारत आज विश्व के प्रमुख परमाणु संपन्न देशों की कतार में खड़ा है।

डॉ. भाभा जब 18 साल के थे तब उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की। लेकिन उनकी रुचि फिजिक्स में थी। उन्होंने न्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में अपनी पढ़ाई जारी रखी। साथ ही वह रिसर्च भी करते रहे। इसके बाद वह 1939 में छुट्टियां मनाने भारत आए थे। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण वह वापस लौट नहीं सके। जिसके बाद वह एक पाठक के रूप में बैंगलोर में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) में शामिल हो गए।

डॉ. भाभा एक वैज्ञानिक होने के साथ ही नहीं बल्कि शास्त्रीय संगीत, नृत्य और चित्रकला में गहरी रुचि रखते थे। वे इन कलाओं के अच्छे जानकार भी थे। उन्हें ओपेरा सुनना बहुत पसंद था। साथ ही उन्हें बागवानी में भी काफी दिलचस्पी थी। सर्वगुणसंपन्न व्यक्तित्व की वजह से सी. वी. रमन उन्हें इटली के महान चित्रकार लियोनार्दो द विंची कहकर संबोधित करते थे।

डॉ. भाभा ने एक छात्र के रूप में कोपेनहेगन में नोबेल पुरस्कार विजेता नील्स बोहर के साथ काम किया और क्वांटम थ्योरी के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने ही मेसन कण की पहचान की और उसका नाम रखा। उन्होंने कॉस्मिक विकिरणों को समझने के लिए कैस्केड सिद्धांत विकसित करने के लिए जर्मन भौतिकविदों में से एक के साथ भी काम किया।

डॉ. भाभा ने जेआरडी टाटा की मदद से मुंबई में ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ की स्थापना की और वर्ष 1945 में इसके निदेशक बने। वहीं देश के आजाद होने के बाद उन्होंने दुनिया भर में रह रहे भारतीय वैज्ञानिकों से भारत लौटने की अपील की थी। वहीं 1948 में डॉ. भाभा ने भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना की और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया।

वह 1955 में आयोजित परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर पहले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के पहले अध्यक्ष थे। इससे पहले 1954 में उन्हें परमाणु विज्ञान में उत्कृष्ट योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने 1942 में एडम्स पुरस्कार भी जीता और उन्हें रॉयल सोसाइटी के फेलो से सम्मानित किया गया।

डॉ. भाभा को 5 बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। लेकिन विज्ञान की दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान उन्हें मिल नहीं पाया। डॉ. भाभा को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का करीबी माना जाता था। उन्होंने पंडित नेहरू को परमाणु आयोग की स्थापना के लिए राजी किया था। वे 1950 से 1966 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष रहे। इस दौरान वह भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे।

डॉ. भाभा ने 1965 में ऑल इंडिया रेडियो से घोषणा की थी कि, अगर उन्हें छूट मिले तो भारत 18 महीनों में परमाणु बम बनाकर दिखा सकता है। डॉ. भाभा चाहते थे कि परमाणु ऊर्जा का उपयोग गरीबी को कम करने के लिए किया जाए। उन्होंने दुनिया भर में परमाणु हथियारों को गैरकानूनी घोषित करने की वकालत की। वह अपने काम के प्रति इतने जुनूनी थे कि वे जीवन भर कुंवारे रहे और अपना सारा समय विज्ञान को समर्पित कर दिया। वे मालाबार हिल्स में एक विशाल औपनिवेशिक बंगले में रहते थे जिसका नाम मेहरानगीर है।

24 जनवरी 1966 को होमी जहांगीर भाभा मुंबई से न्‍यूयॉर्क जा रहे थे। इस दौरान उनका विमान माउंट ब्‍लैंक पहाड़ियों के पास हादसे का शिकार हो गया। इस हादसे में होमी जहांगीर भाभा समेत विमान में सवार सभी 117 यात्रियों की मौत हो गई थी। कहा यह भी जाता है कि अमेरिकी एजेंसी सीआईए ने भारत का परमाणु अभियान रोकने के लिए यह हादसा करवाया था। हालांकि यह बात साबित नहीं हो सकी।

उल्लेखनीय है कि डॉ. भाभा की मृत्यु के ठीक 14 दिन पहले, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की भी ताशकंद में एक रहस्यमयी मौत हो गई थी।

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Published On: Oct 30, 2021 | 06:00 AM

Topics:  

  • India
  • Nuclear Program
  • United Nations
  • World War II

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