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आज से हज यात्रा शुरू, जानिए 5 दिन की यात्रा में क्या-क्या करते हैं, क्या है आस्था की कहानी 

2025 के लिए हज यात्रा आज से शुरू हो रही है। पांच दिनों तक चलने वाली हज यात्रा के दौरान हाजी तवाफ,हज्रे अस्वद और मैदान-ए-अराफात जैसी रस्में करने के साथ-साथ शैतान को पत्थर मारेंगे।

  • By अक्षय साहू
Updated On: Jun 04, 2025 | 07:47 AM

आज से हज यात्रा शुरू

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 नई दिल्ली: सऊदी अरब में आज (4 जून 2025) से हज यात्रा शुरू हो गई है। रविवार तक इसके लिए 14 लाख रजिस्टर्ड तीर्थयात्री मक्का पहुंच चुके हैं, जबकि लाखों श्रद्धालुओं का आना अभी बाकी है। हज इस्लामी कैलेंडर के 12वें महीने जिल-हिज्जा की 8वीं से 12वीं तारीख (2025 में 4-9 जून) के बीच होती है। लेकिन बहुत से लोग ये नहीं जानते कि हज यात्रा पर जाने वाले लोग वहां क्या करते हैं?  इसके पीछे मान्यता क्या है? और हज क्यों पर मुसलमान के लिए जरूरी है? आइए आज हम आपको इन्हीं सवालों का जवाब देते हैं।

इस्लाम के मुख्य तौर पर पांच स्तंभहैं: शहादा, नमाज, जकात,रोजा और हज। इस्लाम के सबसे पवित्र ग्रंथ कुरान के अनुसार हर शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम मुस्लिम को अपने जीवन में कम से कम एकबार मक्का में हज करना अनिवार्य है। हज की शुरुआत पैगंबर इब्राहिम के समय से मानी जाती है। माना जाता है कि इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल ने अल्लाह के आदेश पर काबा का निर्माण किया था। 628 ईस्वी में पैगंबर मोहम्मद ने पहली इस्लामी हज की शुरुआत की, जो आज भी मुस्लिम मानते हैं।

यात्रा में क्या करते हैं हाजी

हज यात्रा मुख्य तौर पर पांच दिन की होती है। यहां पहले दिन हज पर गए लोग मक्का पहुंचने के बाद सबसे पहला रिवाज ‘तवाफ’ अदा करते हैं। इसमें हाजी काबा के चारों ओर सात बार उल्टी दिशा में चक्कर लगाते हैं। इसे एकता और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक माना जाता है। तवाफ की शुरुआत और अंत काबा के एक कोने में लगे ‘हज्रे अस्वद’ (काले पत्थर) से होती है। इसे छूने या इशारा करने की कोशिश की जाती है। इसके बाद लोग ‘सई’ करते हैं, जिसमें सफा और मरवा की दो पहाड़ियों के बीच सात बार चक्कर लगाया जाता है।

दूसरे दिन होती है वुकूफ की रस्म

दूसरे दिन हाजी  ‘मैदान-ए-अराफात’ में इकट्ठा होते हैं और दोपहर से सूर्यास्त तक दुआ और इबादत करते हैं। इसे ‘वुकूफ’ कहा जाता है। यह हज का सबसे जरूरी रिवाज है। कहा जाता है कि अगर कोई हज यात्री इसमें शामिल नहीं होता, तो उसका हज पूरा नहीं माना जाता। इसी दिन को पैगंबर मोहम्मद साहब ने अपनी आखिरी तकरीर (खुत्बा) दी थी। दुनिया भर के मुसलिम लोग इस दिन रोजा रखते हैं।

शैतान को कंकड़ मारना

तीसरे दिन हाजी जमारात पर पत्थर फेंकने के लिए दोबारा मीना लौटते हैं। रमी अल-जमरात, जिसे ‘शैतान को पत्थर मारना’ भी कहा जाता है। यह  ईद उल-अजहा के दिन और उसके अगले दो दिनों में किया जाता है।

कुर्बानी की रस्म अदा करना

चौंथे दिन पहली रमी के बाद हज यात्री ‘कुर्बानी’ करते हैं। इसमें एक बकरी, भेड़ या अन्य जानवर की बलि दी जाती है। यह हजरत इब्राहीम द्वारा अल्लाह के फरमान पर अपने सबसे कीमती चीज की कुर्बानी करने की कहानी बताती है, जिसमें हजरत इब्राहीम अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे, लेकिन खुदा ने उन्हें एक जानवर दे दिया।

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बाल कटवाना या सिर मुंडवाना

इसके बाद हाजी अपने बाल काटते हैं। पुरुष अक्सर अपना सिर पूरी तरह मुंडवाते हैं, वहीं महिलाएं बालों का एक छोटा हिस्सा काटती हैं। यह रिवाज नए जीवन की शुरुआत और विनम्रता का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद हाजी दोबारा मक्का लौटते हैं और तवाफ अल-इफादा करते हैं। फिर एक बार और सई की जाती है। यह आखिरी बार काबा का चक्कर लगाकर खुदा से दुआ करने और मक्का को अलविदा कहने की रस्म है।

Hajj yatra starts know history of significance and muslims pilgrimage

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Published On: Jun 04, 2025 | 07:47 AM

Topics:  

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  • Mecca-Madina
  • Ramzan Eid

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