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महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं महान स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन लक्ष्मी सहगल

  • By शुभम सोनडवले
Updated On: Oct 24, 2021 | 06:00 AM
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नई दिल्ली. आजाद हिंद फौज की कैप्टन लक्ष्मी सहगल की आज 107वीं जन्मतिथि। कैप्टन लक्ष्मी सहगल एक महान स्वतंत्र सेनानी और आज़ाद हिंद फ़ौज की अधिकारी थीं। उनका जन्म 24 अक्टूबर 1914 को मद्रास प्रांत के मालाबार में हुआ था। उनके पिता एस. स्वामीनाथन वकील और माँ ए.व्ही. अम्मू स्वामीनाथन सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी थी। उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की शिक्षा ली। जिसके बाद वह चेन्नई में सरकारी अस्पताल में डॉक्टर के रूप में कार्यरत रही।

वहीं कुछ समय बाद कैप्टन लक्ष्मी सहगल सिंगापुर चली गईं। जहां उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना के कुछ सदस्यों से भी मुलाकात की थी। इसके बाद उन्होंने गरीबों के लिए एक अस्पताल की स्थापना की। वहीं उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता अभियान में सक्रिय रूप से हिस्सा लेना शुरू किया। लक्ष्मी सहगल आज़ाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री रहीं। सेना में उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में कई सराहनीय काम किए। इस दौरान उनपर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन पर फौज में महिलाओं को भर्ती होने के लिए प्रेरणा देना और उन्हें फौज में भर्ती कराने की जिम्मेदारी थी। उन्होंने 500 महिलाओं की एक फ़ौज तैयार की, जो एशिया में अपने तरह की पहली विंग थी।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो लक्ष्मी सहगल सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गईं थीं। लक्ष्मी सहगल बचपन से ही राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित हो गई थीं और जब महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन छेड़ा तो लक्ष्मी सहगल ने उसमे हिस्सा लिया। वे 1943 में अस्थायी आज़ाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनीं।

सुभाष चंद्र बोस सहगल से कहते थे कि, “देश की आज़ादी के लिए लड़ो और आज़ादी को पूरा करो।” जब लक्ष्मी ने देखा की बोस महिलाओं को अपनी संस्था में शामिल करना चाहते हैं तो उन्होंने बोस के साथ महिलाओं के हक में झांसी की रानी रेजिमेंट की शुरुवात की, जिसमें वे बहुत सक्रिय रहीं। बाद में उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया लेकिन लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा। आजाद हिंद फौज में डॉ. लक्ष्मी स्वामीनाथन “कैप्टन  लक्ष्मी” के नाम से जानी जाती थी और उन्हें देखकर आस-पास की दूसरी महिलाएं भी इस सेना में शामिल हो चुकी थी।

आजाद हिंद फौज की हार के बाद ब्रिटिश सेना ने स्वतंत्रता सैनिकों की धरपकड़ की और 4 मार्च 1946 को कैप्टन लक्ष्मी सहगल पकड़ी गईं। भारत भेजे जाने से पहले मार्च 1946 तक उन्हें बर्मा में ही रखा गया था। इसके बाद लक्ष्मी सहगल ने 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से लाहौर में विवाह किया और कानपुर आकर बस गईं। यहां लक्ष्मी मेडिकल का अभ्यास करने लगीं। वे बंटवारे के बाद भारत आने वाले शरणार्थियों की भी सहायता करती थी। इतना ही नहीं वे वंचितों की सेवा में लग गईं। वे भारत विभाजन को कभी स्वीकार नहीं कर पाईं और अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ती खाई का हमेशा विरोध करती रही हैं।

वहीं 1971 में लक्ष्मी सहगल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) में शामिल हो गईं। जिसके बाद पार्टी ने उन्हें राज्य सभा में भेजा। उन्होंने बांग्लादेश विवाद के दौरान कलकत्ता में बांग्लादेश से भारत आ रहे शरणार्थीयों के लिए बचाव कैंप और मेडिकल कैंप भी खोल रखे थे। वे 1981 में स्थापित ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेंस एसोसिएशन की वे संस्थापक सदस्या थी। वे अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की संस्थापक सदस्यों में से हैं। 2002 में चार वामपंथी पार्टियों ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, सीपीएम, क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने लक्ष्मी सहगल का नामनिर्देशन राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी किया था। उस समय राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की वह एकमात्र विरोधी उम्मीदवार थी।

1998 में लक्ष्मी सहगल को भारत के राष्ट्रपति के.आर.नारायण ने पद्म विभूषण अवार्ड से सम्मानित किया था। वहीं 19 जुलाई 2012 को दिल का दौरा पड़ा और 23 जुलाई 2012 को 98 साल की उम्र में कानपूर में उनका देहांत हुआ। उनके पार्थिव शरीर को कानपुर मेडिकल कॉलेज को मेडिकल रिसर्च के लिए दान में दिया गया। उनकी याद में कानपुर में कैप्टेन लक्ष्मी सहगल इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाया गया।

Great freedom fighter captain lakshmi sehgal is an inspiration for women

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Published On: Oct 24, 2021 | 06:00 AM

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