रोहनात गांव का एतिहासिक कुआं (सोर्स- सोशल मीडिया)
Ek Kahani Azadi Ki: दो दिन बाद यानी 15 अगस्त को हम आजादी की 78वीं सालगिरह मनाने वाले हैं। चारों ओर हर्ष और उल्लास का माहौल होगा। देशभक्ति के तराने हमारे कानों से होकर जेहन तक गूंजेंगे। 1947 में जब देश आजाद हुआ था, तब हर तरफ जश्न मनाया जा रहा था। लेकिन भारत का एक गांव ऐसा था, जहां मातम पसरा हुआ था।
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम अपनी सीरीज ‘एक कहानी आजादी की’ के जरिए हर रोज एक स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम सरफरोंशों से जुड़ी दिलचस्प कहानी लेकर पहुंचते हैं। लेकिन शृंखला की इस कड़ी में बात एक ऐसे गांव की जहां आजादी मिलने के बाद 71 वर्षों तक तिरंगा नहीं फहराया गया।
हम जिस गांव की बात कर रहे हैं, वह हरियाणा के भिवानी जिले का रोहनात है। इस गांव के लोगों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ जमकर संघर्ष किया था। जिसके चलते अंग्रेजों ने यहां के ग्रामीणों पर जमकर जुल्म ढाए थे।
1857 की क्रांति में हरियाणा के इस गांव ने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी थी। जब इस क्रांति की लपटें हिसार पहुंचीं, तो विद्रोहियों ने डिप्टी कमिश्नर बेडर बर्न की हत्या कर दी। अंग्रेज तहसीलदार को उसके चपरासी ने मार डाला। इसी तरह, रोहनात के ग्रामीणों ने 12 अंग्रेज अफसरों को जहन्नुम पहुंचा दिया।
रोहनात गांव का एतिहासिक कुआं (सोर्स- सोशल मीडिया)
हरियाणा के रोहनात गांव के साथ-साथ मंगाली, हाजमपुर, ओड्डा और छतरियां गांवों के लोगों ने मिलकर अंग्रेजों की नींव हिला दी थी। अंग्रेजी अफसरों मौतों से ब्रिटिश सरकार सन्न रह गई। इसके बाद उन्होंने हिसार के आसपास बर्बरता और खून-खराबा शुरू कर दिया।
ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई यह बर्बर घटना 29 मई 1857 की है। जब इसी दिन रोहनात गांव में ब्रिटिश सैनिकों ने बर्बर रक्तपात किया था। लेकिन रोहनात गांव के लोगों ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया। ग्रामीणों ने जेली, लाठियों और गंडासी जैसे देशी औजारों से ब्रिटिश सरकार का सामना किया।
लेकिन जब सामने से तोपें चल रही हों तो कितना लड़ोगे? अंग्रेजों ने गांव को तोपों से उड़ा दिया और कई ग्रामीणों को रोड रोलर से कुचल दिया। जो बच गए उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। ब्रिटिश सैनिकों ने ग्रामीणों को पीने का पानी भी नहीं लेने दिया और कुएं को कीचड़ से ढक दिया।
रोहनात में लगा शिलालेख (सोर्स- सोशल मीडिया)
इस हमले के बाद, अंग्रेजों ने गांव पुठी मंगल क्षेत्र में भी तोपों से हमला करना शुरू कर दिया। रोहनात गांव के सैकड़ों लोग मारे गए। इतना ही नहीं, गांव के बिराद दास बैरागी को तोप से बांधकर उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए। गांव की कई महिलाएं अपनी इज्जत बचाने के लिए गांव के कुएं में कूद गईं और अपनी जान गंवा बैठीं।
ग्रामीण आज भी अंग्रेजों से लड़ने की सज़ा भुगत रहे हैं क्योंकि अंग्रेजों ने यहां के ग्रामीणों की खेती योग्य जमीन नीलाम कर दी थी, लेकिन यह जमीन अभी तक ग्रामीणों के नाम नहीं हुई है। जमीन नीलाम होने के वक्त अंग्रेजों ने गांव में अधिकारी भेजकर उनसे इसके लिए माफी मांगने को कहा, लेकिन ग्रामीणों इनकार कर दिया और उनकी जमीन नीलाम हो गई।
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ग्रामीणों को उम्मीद थी कि आज़ादी के बाद उन्हें अपनी जमीन मिल जाएगी। लेकिन आज़ादी के 71 साल बाद भी ज़मीन नहीं मिली। इसी वजह से इस गांव में तिरंगा नहीं फहराया गया। गांव के लोगों की मांग थी कि आज़ादी के 70 सालों में उन्हें बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलीं। इसके विरोध में उन्होंने 71 सालों तक गांव में तिरंगा नहीं फहराया।
स्वतंत्रता के 71 साल बाद 2018 में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने रोहनात पहुंचकर तिरंगा फहराया। इस दौरान हरियाणा सरकार ने गांव की वेबसाइट, पुस्तकालय, व्यायामशाला और ग्राम गौरव पट्टिका का निर्माण कराया। सरकार ने ग्रामीणों की जमीन वापस करने का भी आश्वासन दिया। तभी से गांव में तिरंगा फहराया जाने लगा है।