बेड़ियों में जकड़े हुए गंगू मेहतर (सोर्स- सोशल मीडिया)
Ek Kahani Azadi Ki: ‘एक कहानी आज़ादी की’ सीरीज में आज कहानी है स्वातंत्र्य समर के गुमनाम सिपाही वीर क्रांतिकारी गंगू मेहतर उर्फ गंगूदीन की, जिनके साहस से अंग्रेज ख़ौफ खाते थे। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सैकड़ों अंग्रेज़ सैनिकों को मार गिराया और हंसते-हंसते देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
गंगू मेहतर का जन्म कानपुर के पास अकबरपुर में हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार, गंगू मेहतर भंगी जाति से थे। उस समय समाज में ऊंची और नीची जातियों को लेकर कई असमानताएं थीं। गंगू भी इसी का शिकार हुए। नीची जाति का होने के कारण उन्हें पढ़ने-लिखने का अवसर नहीं मिला।
गंगू को सिर पर मैला ढोना पड़ता था। लेकिन वे इस काम से खुश नहीं थे। उनका परिवार भी ऊंची जातियों के लोगों द्वारा नीची जातियों पर किए जा रहे अत्याचारों से अछूता नहीं था। इससे बचने के लिए गंगू अपने परिवार के साथ कानपुर के चुंगीगंज में बस गए। गंगू जातिगत शोषण के विरुद्ध थे।
गंगू को कुश्ती का शौक था। सती चौरा गांव में उनका एक कुश्ती का अखाड़ा था। उन्होंने एक मुस्लिम गुरु से कुश्ती सीखी थी। जिसके कारण लोग उन्हें गंगूदीन कहते थे। कुछ लोग उन्हें प्यार से गंगू बाबा भी कहते थे। 1857 का विद्रोह शुरू हो गया। अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर के नेतृत्व में देश के कोने-कोने में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बज चुका था। कानपुर भी इसका केंद्र बन गया।
गंगू मेहतर (सोर्स- सोशल मीडिया)
दरअसल, मराठों की हार के बाद पेशवा बाजीराव कानपुर के बिठूर में बस गए। कई शादियों के बाद भी उनकी कोई संतान नहीं हुई। तब उन्होंने नाना साहब को गोद ले लिया। बाजीराव की मृत्यु के बाद, ब्रिटिश सरकार ने नाना को बाजीराव का दत्तक उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया। ऐसे में नाना साहब ने भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया।
नाना साहब पेशवा के सैन्य दस्ते में गंगू मेहतर का नाम भी सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में से एक माना जाता था। शुरुआत में उन्हें ढोल बजाने के लिए शामिल किया गया था। लेकिन उनकी बहादुरी और कुश्ती को देखते हुए उन्हें सूबेदार का पद मिला। उन्होंने सैनिकों को कुश्ती भी सिखाई। देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में गंगू मेहतर ने भी नाना साहब की ओर से अंग्रेजों के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी। उन्होंने अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी। अपने शिष्यों के साथ मिलकर उन्होंने सैकड़ों अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया।
एक रिपोर्ट के अनुसार, 200 से ज़्यादा अंग्रेज सैनिकों की मौत से ब्रिटिश सरकार बुरी तरह डर गई थी। बहादुर गंगू मेहतर का खौफ उनके दिलों में बस गया था। जिसके चलते वे किसी भी कीमत पर गंगू को ज़िंदा पकड़ना चाहते थे। ताकि वे उसे सबके सामने सज़ा दे सकें। वहीं दूसरी ओर, गंगू मेहतर ने अपने घोड़े पर सवार होकर ब्रिटिश सेना के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। जिसके बाद ही उन्हें गिरफ्तार किया जा सका।
प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स- सोशल मीडिया)
जब उन्हें पकड़ा गया, तब 1857 का विद्रोह कुचला जा चुका था। पकड़े जाने के बाद, गंगू मेहतर को अंग्रेजों ने घोड़े से बांधकर शहर में घुमाया। इतना ही नहीं, उन्हें हथकड़ी लगाकर जेल की कोठरी में धकेल दिया गया। उन्हें खूब यातनाएं दी गईं। लेकिन अंग्रेज उनके हौसले को नहीं तोड़ पाए।
इतिहासकारों की मानें तो अंग्रेजों ने गंगू मेहतर पर बच्चों और महिलाओं की हत्या का मिथ्या आरोप लगाया था। इस दुष्प्रचार को पूरा करने के लिए तत्कालिक मीडिया सहयोगियों का भी इस्तेमाल किया। गंगू को मौत की सज़ा सुनाई गई। गंगू मेहतर को 8 सितंबर 1859 को कानपुर में फांसी पर लटका दिया गया।
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उन्हें सज़ा देने के लिए शहर के बीचों-बीच लाया गया। अंग्रेजों के अथाह अत्याचार सहने के बावजूद, गंगू मुस्कुराते हुए देश के लिए बलिदान होना चाहते थे। उनके माथे पर ज़रा भी शिकन नहीं थी। उन्होंने खुशी-खुशी देश के लिए अपनी जान दे दी। कहा जाता है कि गंगू ने आखिरी दम तक ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी और कहा, “भारत की मिट्टी में हमारे पूर्वजों के खून और बलिदान की खुशबू है। एक दिन यह देश आज़ाद होगा।”
यह देश का दुर्भाग्य है कि गंगू मेहतर का बलिदान आज गुम हो गया है, उनकी बहादुरी के बारे में बहुत कम पढ़ा जाता है। आज महान स्वतंत्रता सेनानी गंगू मेहतर भले ही हमारे बीच न हों। लेकिन इतिहास में उनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। उन्हें किताब के चंद पन्नों के लिए भी गुमनाम नहीं छोड़ा जा सकता।