Jaiprakash Narayan | Social Media
नवभारत डेस्क : जयप्रकाश नारायण ने भारतीय राजनीति और समाज को नई दिशा दी। वे ‘संपूर्ण क्रांति’ के प्रेरक थे। 1970 के दशक में उन्होंने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसने भारत में राजनीतिक बदलाव की नींव रखी। उनका सपना ग्राम स्वराज्य का था और वे नैतिकता और सामाजिक सुधार के पक्षधर थे। जेपी ने हमेशा व्यवस्था सुधार और व्यक्तिगत नैतिकता पर जोर दिया। उनकी संपूर्ण क्रांति ने देशभर के युवाओं को प्रेरित किया और कई प्रमुख नेता उनके मार्गदर्शन में उभरे। जयप्रकाश नारायण का निधन 8 अक्टूबर 1979 को पटना में हुआ। वे एक समर्पित जननायक और महान मानवतावादी चिंतक थे, जिनकी विरासत आज भी समाजवाद और संपूर्ण क्रांति के रूप में जीवित है।
1974 में बिहार में शुरू हुआ जयप्रकाश नारायण का आंदोलन स्वतंत्र भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। यह आंदोलन कांग्रेस सरकार की भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसी समस्याओं के खिलाफ था। आंदोलन को इतना जनसमर्थन मिला कि यह जल्द ही बिहार विधानसभा पर विरोध प्रदर्शन और सत्याग्रह में बदल गया। आंदोलनकारियों ने मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर को हटाने और बिहार विधानसभा भंग करने की मांग की, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गुजरात की तरह बिहार विधानसभा भंग करने की मांग को ठुकरा दिया।
जेपी ने देशभर में यात्रा कर विपक्षी दलों को कांग्रेस के खिलाफ एकजुट किया। इसी बीच, गुजरात में मोरारजी देसाई की भूख हड़ताल के बाद विधानसभा चुनाव कराए गए, जिसमें कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। 12 जून 1975 को, गुजरात चुनाव के नतीजे घोषित होने के दिन ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1971 के इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को चुनावी कदाचार के आधार पर शून्य घोषित कर दिया। इस फैसले के बाद इंदिरा गांधी की राजनीतिक स्थिति कमजोर हो गई, और उन्होंने अपने पद को बचाने के लिए राष्ट्रपति वीवी गिरि से तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसएम सीकरी की जगह एएन रे की नियुक्ति की सिफारिश की। इस बीच, जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी से इस्तीफा देने की मांग करते हुए उन्हें कई पत्र लिखे।
हालात बिगड़ते देख, इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। इस दौरान विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें जयप्रकाश नारायण और सत्येंद्र नारायण सिन्हा भी शामिल थे। आपातकाल के दौरान जेपी को कई महीनों तक चंडीगढ़ में हिरासत में रखा गया, बावजूद इसके कि उन्होंने बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत कार्य के लिए एक महीने की पैरोल मांगी थी। हिरासत के दौरान उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई, और 12 नवंबर 1975 को उन्हें रिहा किया गया। बाद में मुंबई के जसलोक अस्पताल में पता चला कि उनकी किडनी फेल हो गई है, जिसके कारण उन्हें जीवन भर डायलिसिस पर निर्भर रहना पड़ा।
21 मार्च 1977 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल समाप्त किया और चुनाव की घोषणा की। जेपी के मार्गदर्शन में विपक्षी दलों का गठबंधन कर जनता पार्टी का गठन हुआ, जिसमें इंदिरा विरोधी ताकतों का व्यापक समर्थन मिला। जनता पार्टी ने इन चुनावों में भारी जीत हासिल की और यह भारत में केंद्र सरकार बनाने वाली पहली गैर-कांग्रेसी पार्टी बनी।
बिहार में भी जनता पार्टी की जीत हुई और मुख्यमंत्री पद की लड़ाई कर्पूरी ठाकुर और बिहार जनता पार्टी के अध्यक्ष सत्येंद्र नारायण सिन्हा के बीच हुई। अंततः कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री बने और जनता पार्टी ने सत्ता संभाली। जेपी के नेतृत्व में हुआ यह आंदोलन भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय लिख गया, जिसने कांग्रेस की मजबूत पकड़ को कमजोर कर दिया और भारतीय लोकतंत्र में विपक्षी दलों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्थापित किया।