जस्टिस संजीव खन्ना होंगे देश के अगले CJI
नई दिल्ली: भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने औपचारिक रूप से आज जस्टिस संजीव खन्ना को अपने उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तावित किया है। इस बाबत केंद्र सरकार को भेजे गए एक पत्र में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि चूंकि वह आगामी 11 नवंबर को पद छोड़ रहे हैं, इसलिए जस्टिस खन्ना उनके उत्तराधिकारी होंगे।
इस बाबत मोदी सरकार की मंजूरी मिलने पर जस्टिस संजीव खन्ना भारत के 51वें चीफ जस्टिस बन जाएंगे। हालांकि उनका कार्यकाल छह महीने का ही रहेगा, जो 13 मई, 2025 को समाप्त होगा। उसके बाद उनकी भी सेवानिवृत्ति हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट जज के तौर पर जस्टिस खन्ना ने अब तक 65 फैसले लिखे हैं। वहीं इस दौरान वे करीब 275 प्रमुख बेंचों का हिस्सा भी रहे हैं।
Chief Justice of India DY Chandrachud has formally proposed Justice Sanjiv Khanna as his successor. In a communication to the Union government, Chief Justice Chandrachud stated that since he is demitting office on November 11, Justice Khanna would be his successor.
Upon approval… pic.twitter.com/LgH8PqvDyr
— ANI (@ANI) October 17, 2024
जानकारी दें कि केंद्र सरकार ने स्थापित नियमों के तहत ही CJI से बीते शुक्रवार को अनुरोध किया था कि वह अपने उत्तराधिकारी का नाम सुझाएं। इसी के जवाब में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने अब यह सिफारिश की है। हालांकि इससे पहले जज डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस के रूप में नियुक्ति के लिए केंद्र को तीन अधिवक्ताओं के नाम की सिफारिश भी भेजी है. तब इस तीन सदस्यीय कोलेजियम में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई भी शामिल थे.
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गौरतलब है कि जस्टिस संजीव खन्ना भारतीय न्यायपालिका में अपनी निष्पक्षता और कानूनी विद्वता के लिए मशहुर हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट में प्रोन्नत होने से पहले वह दिल्ली हाईकोर्ट के जज भी रहे हैं। उन्हें 18 जनवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया था। वहीं जस्टिस खन्ना सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस हंसराज खन्ना के भतीजे भी हैं।
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वहीं मीडिया रिपोर्ट की मानें तो, जस्टिस संजीव खन्ना को जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट में जब पदोन्नत किया गया तो उनकी नियुक्ति से बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। दअरसल, उम्र और अनुभव में उनसे अन्य सीनियर जज लाइन में होने के बावजूद उन्हें तब सीधे ही सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ती मिली थी।