अपने कार्यकाल में CJI चंद्रचूड़ ने सुनाए ये ऐतिहासिक फैसले, आज है काम का आखिरी दिन
नई दिल्ली: जस्टिस चंद्रचूड़ को 2016 में प्रमोट कर सर्वोच्च न्यायालय भेजा गया था। सुप्रीम कोर्ट में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान वो न केवल CJI बल्कि जस्टिस के तौर पर भी राजनीतिक विवादों को सुनने तथा उन पर फैसला देने से कभी नहीं कतराए। बॉम्बे हाईकोर्ट में कमर्शियल तथा रेग्युलेटरी मामलों की सुनवाई से लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश का पद संभालने तक अपने करियर में कई उतार-चढ़ावों से गुजरते हुए चंद्रचूड़ ने अपनी अहम भूमिका निभाई।
सुप्रीम कोर्ट में अपने 8 साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने भारत के पॉलिटिकल लीडर्स से जुड़े कई महत्वपूर्ण तथा लंबे समय से चले आ रहे मुकदमों को भी सुना। अब एक नजर डालते हैं जस्टिस चंद्रचूड़ के कुछ ऐसे फैसलों पर जो चर्चा में रहे।
किसी भी जज के लिए शायद इससे बड़ा केस और कोई नहीं हो सकता। लगभग 200 साल पुराना यह मुद्दा 1980 के दशक में एक हिंदुत्व की मजबूत पहचान बन गया, जिसका बीजेपी ने समर्थन किया। ऐसा माना जाता है कि जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने ही अयोध्या केस का फैसला लिखा था और इसी को लेकर अब वह विवाद में भी आ गए हैं।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने दिसंबर 2023 में अनुच्छेद 370 को रद्द करके जम्मू और कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीने जाने की स्थिति को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 370 केवल “अस्थाई” प्रावधान था तथा J&K “संविधान सभा” अस्थायी थी। साथ ही पीठ ने राज्य को J&K और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने के फैसले को भी बरकरार रखा।
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वित्त मंत्री के रूप में अरुण जेटली ने साल 2018 के बजट में इलेक्टोरल बॉन्ड पेश किया था। उनका दावा था कि इससे देश में राजनीतिक फंडिंग में सुधार आएगा और इस बॉन्ड को शुरू किए जाने के लगभग सात साल बाद न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने इस चुनावी बॉन्ड स्कीम को “असंवैधानिक” बताया। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को माना कि चुनावी बॉन्ड ने कंपनियों के लिए गुप्त रूप से राजनीतिक चंदा देकर अपने अनुसार पॉलिसीज तैयार करवाने का लाभ प्राप्त करने की गुंजाइश पैदा की है।
दिल्ली बनाम केंद्र सरकार के मामले में भी न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अगुआई में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि केंद्र सरकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार को विधायी तथा कार्यकारी शक्तियों से वंचित नहीं कर सकता। इस ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के दावों के खिलाफ फैसला सुनाते हुए प्रशासनिक सेवाओं पर दिल्ली सरकार को नियंत्रण दिया था।
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