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CM बनाने के बाद इन नेताओं को दरकिनार कर चुकी है BJP, कुछ को मिली जिम्मेदारी तो कई ‘अज्ञातवास’ काटने को मजबूर

  • By विजय कुमार तिवारी
Updated On: Dec 14, 2023 | 03:57 PM
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नवभारत डेस्क : भारतीय जनता पार्टी में मुख्यमंत्री पद के तमाम दावेदारों को दरकिनार करके किसी और को सत्ता सौंपने का खेल नया नहीं है, बल्कि इसके पहले भी ऐसा कई बार किया जा चुका है। यह कहानी 2000 के बाद से कई बार देखी गयी है। तब से लेकर आज तक लगभग एक दर्जन नेताओं को पार्टी ने करारा झटका दिया है। इस दौरान भाजपा के तमाम दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर पार्टी ने नए चेहरे पर दाव खेला और उनको आगे बढ़ाने की कोशिश की। 

 भाजपा में दबाव की राजनीति करने वाले और पार्टी से ज्यादा खुद को तवज्जो देने वाले नेताओं को किनारे करके आलाकमान ने अपने पसंद के चेहरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठता रहा है। अगर आप 2000 से लेकर 2023 तक के इतिहास को देखेंगे तो कई दिग्गज नेता या तो पार्टी की बात को मानकर चुपचाप दिए गए दायित्व का निर्माण कर रहे हैं, अन्यथा साइड लाइन का दिए जाने के बाद एक तरह से अज्ञातवास में चले गए हैं। उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह, दिल्ली में मदनलाल खुराना जैसे नेता पहले भी कुर्सी से हटाए गए थे, लेकिन यह काम मोदी-शाह युग में पहले की अपेक्षा और तेजी से हो रहा है। यहां पार्टी अपने फायदे के हिसाब से चुनावी समीकरण को ध्यान में रखकर फैसले लेने लगी है।

निपटाए गए कोश्यारी, खंडूडी व निशंक 
आपको याद होगा भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड राज्य बनने के बाद राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ राज्यसभा और लोकसभा की सीट तो दी, लेकिन दोबारा सीएम की कुर्सी के काबिल नहीं समझा। हालांकि भगत सिंह कोश्यारी संघ के करीबी होने के कारण 2017 के विधानसभा चुनाव तक हरबार अपनी दावेदारी ठोंकते रहे। लेकिन 2019 के चुनाव में उन्हें लोकसभा का टिकट भी नहीं दिया गया। बाद में उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल बना दिया। वह राज्यपाल के पद से हटाने के बाद से खुद को सक्रिय राजनीति से दूर कर चुके हैं।

  उत्तराखंड के एक और राजनेता और पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खंडूडी अपने ईमानदार छवि के लिए जाने जाते थे। भुवन चंद खंडूडी  2007 से 2009 और फिर 2011 से 2012 तक उत्तराखंड के दो बार मुख्यमंत्री बनाए गए, लेकिन सीएम के पद से हटाने के बावजूद भुवन चंद खंडूडी 2014 में लोकसभा में भेजे गए। पार्टी के अंदर खींचतान और उनकी बढ़ती उम्र को देखते हुए उसके बाद भाजपा ने उनसे दूरी बना ली और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट भी नहीं दिया। तब से वह साइड लाइन हो गए हैं। हालांकि उनकी बेटी को विधानसभा का टिकट देकर उत्तराखंड में उन्हें स्पीकर की जिम्मेदारी जरूर दे दी गई है।

 उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक भी मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद केंद्र सरकार की सियासत में सक्रिय हो गए। मोदी सरकार में शिक्षा मंत्रालय जैसे अहम पद को संभाल चुके रमेश पोखरियाल निशंक फिलहाल केवल सांसद के रूप में अपनी सेवाएं पार्टी को दे रहे हैं और पार्टी के कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से देखे जाते हैं। लेकिन फिलहाल उनके पास कोई और बड़ा पद नहीं है। वह साइड लाइन किए गए नेताओं में गिने जाते हैं। 

त्रिवेंद्र व तीरथ सिंह हुए साइड लाइन 
 उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत 2017 से 2021 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। लेकिन अपने कार्यकाल के दौरान विवाद  होने के बाद वह अपनी कुर्सी से हटे। फिलहाल उनको पार्टी संगठन ने कुछ काम सौंपा है। केंद्र सरकार के 9 साल पूरे होने पर भाजपा की ओर से चलाए गए महासंपर्क अभियान के दौरान उनका उत्तर प्रदेश के कुछ लोकसभा सीटों की जिम्मेदारी सौंप गई थी। जिनके लिए उन्होंने काम किया।

 उत्तराखंड के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर कुछ दिनों तक रहने वाले तीरथ सिंह रावत 2021 में मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन कुछ ही महीने में उनको हटाना पड़ा था।  लोकसभा का सदस्य रहते हुए उत्तराखंड के सीएम बने थे। फिलहाल वह लोकसभा के सदस्य बने हुए हैं।

अनंदीबेन व विजय रुपाणी भी दरकिनार 
 आनंदीबेन पटेल नरेन्द्र मोदी के 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ने और प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात की कमान संभालने के लिए  चुनी गईं थीं। आनंदी पटेल कुछ ही महीने सीएम की कुर्सी पर रह पायीं। उसके बाद उनको हटाकर विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बना दिया गया। वहां से हटाने के कुछ दिनों के बाद आनंदी बेन पटेल को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल की जिम्मेदारी दी गई और वह सक्रिय राज्य में छोड़ संवैधानिक पद पर काम कर रही हैं।

 गुजरात के मुख्यमंत्री रहे विजय रुपाणी को 2016 से 2021 तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में काम करने का अनुभव था, लेकिन बाद में उनको भी मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा दिया गया। फिलहाल भारतीय जनता पार्टी ने विजय रुपाणी को संगठन में कुछ जिम्मेदारी सौंप रखी।  वह पंजाब और चंडीगढ़ के प्रभारी के रूप में काम कर रहे हैं।

रघुवर दास बनाए गए राज्यपाल 
 रघुवर दास 2014 से 2019 झारखंड के मुख्यमंत्री थे। उसके बाद फिर विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी हार गई और झारखंड मुक्ति मोर्चा सरकार में आई। चुनाव में हार के बाद रघुवर दास सीएम की कुर्सी छोड़कर राजनीति में एक्टिव तो थे, लेकिन उनको पार्टी ने कोई और जिम्मेदारी नहीं दी। लेकिन अभी कुछ दिन पहले उनको ओडिशा का राज्यपाल बनाकर मुख्य राजनीति की धारा से अलग कर दिया गया है।

सर्वानंद सोनोवाल भी पहुंचे दिल्ली 
 2016 से 2021 तक असम के मुख्यमंत्री रहे सर्वानंद सोनोवाल को 2021 में विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा दिया गया और उनकी जगह हिमांता विस्व सरमा को मुख्यमंत्री बनाया गया। सीएम पद से हटाने के बाद सर्वानंद सोनोवाल दिल्ली की राजनीति में एक्टिव हो गए हैं। वह इस समय केंद्र सरकार में बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग के मंत्री बनाए गए हैं।

 विप्लव कुमार को भेजा राज्यसभा 
 विप्लव कुमार देव 2018 से 2022 तक त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी सरकार के मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया।  विप्लव कुमार देव को 4 साल बाद ही सीएम के पद से हटना पड़ा। बाद में उनका भारतीय जनता पार्टी ने राज्यसभा का टिकट देकर राज्यसभा में भेज दिया।

बीएस येदियुरप्पा पार्लियामेंट्री बोर्ड में 
 कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे बीएस येदियुरप्पा को दक्षिणी राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है, लेकिन चार बार कर्नाटक के सीएम रहे बीएस येदियुरप्पा को भी भारतीय जनता पार्टी ने साइड लाइन करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। बाद में 2021 में उनकी जगह बसवराज बोम्बई को सीएम बना दिया गया। अब येदियुरप्पा भारतीय जनता पार्टी पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्य के रूप में पार्टी को सेवाएं दे रहे हैं। हालांकि कर्नाटक में सरकार जाने के बाद उनके बेटे को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष जरूर बना दिया गया है।

Bjp leaders future after removing from cm chair

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Published On: Dec 14, 2023 | 03:57 PM

Topics:  

  • Amit Shah
  • BJP
  • Narendra Modi
  • Pressure Politics
  • Shivraj Singh Chouhan

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