भारत रत्न नानाजी देशमुख
नवभारत डेस्क: आज यानी यानी 11 अक्टूबर को एक ऐसी शख्सियत की जयंती है, जिसे न केवल भारत रत्न कहा गया बल्कि उस सम्मान से नवाजा भी गया। जिसने देश की सियासत में कुर्सी नहीं बुलंदी हासिल की। जिसने एक महारानी को उसी के राज्य में मात दे दी और महल में जाकर यह भी कह दिया कि आपकी प्रजा ने मुझे चुना है। जिसने संघ को कंधों पर उठाकर खड़ा किया, और जिसने समाजसेवा के लिए सियासत छोड़ दी।
देश आज भारत रत्न नानाजी देशमुख की 108वीं जयंती मना रहा है। नानाजी देशमुख का जन्म 1919 में आज ही के दिन महाराष्ट्र के हिंगोली में हुआ था। नानाजी देशमुख गरीब मराठी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। लेकिन जहीनियत और विद्वता में किसी सम्राट से कम अमीर नहीं थे।
नानाजी के आरएसएस संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से पारिवारिक जैसे संबंध थे। हेडगेवार ने नानाजी की उभरती सामाजिक प्रतिभा को पहचान लिया था। जिसके चलते हेडगेवार ने नानाजी को संघ की शाखा में आने को कहा। वर्ष 1940 में हेडगेवार की मृत्यु के बाद संघ की स्थापना का दायित्व नानाजी के कंधों पर आ गया। नानाजी ने इस संघर्ष को अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य बना लिया और अपना पूरा जीवन संघ को समर्पित कर दिया।
नानाजी देशमुख ने चुनाव में बलरामपुर स्टेट की महारानी राजलक्ष्मी कुमारी देवी को हराया। चुनाव जीतने के बाद नानाजी देशमुख महारानी राजलक्ष्मी कुमारी देवी से मिलने उनके महल गए। महारानी और नानाजी देशमुख की यह मुलाकात बेहद सहज और सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई। नानाजी देशमुख ने महारानी से कहा कि आपकी प्रजा ने मुझे चुना है और मैं क्षेत्र के विकास के लिए कोई कसर नहीं छोड़ूंगा।
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नानाजी देशमुख ने महारानी से कहा था कि इस बार आपकी जनता ने मुझे आपके स्थान पर अपना प्रतिनिधि चुना है। अब मेरा कर्तव्य है कि मैं आप जैसे लोगों के साथ रहूँ और उनके सुख-दुख में भागीदार बनूँ। आप यहाँ की महारानी हैं, मुझे रहने के लिए एक घर दीजिए।” महारानी राजलक्ष्मी कुमारी देवी ने नानाजी देशमुख को निराश नहीं किया। उन्होंने कहा कि बलरामपुर एस्टेट के महाराजगंज की धरती आज से आपकी है।
नानाजी देशमुख ने वहां एक नया गांव बसाया। उन्होंने उस गांव का नाम जयप्रभा गांव रखा। जय का मतलब लोकनायक जयप्रकाश नारायण और प्रभा का मतलब उनकी पत्नी प्रभावती है। जब तक नानाजी देशमुख जीवित रहे, वे इस गांव को अपने आदर्शों के अनुरूप ढालते रहे। नानाजी देशमुख को 2,17,254 वोट मिले। उन्होंने महारानी को 1,14,006 के अंतर से हराया। यह इस लोकसभा क्षेत्र में अब तक की सबसे बड़ी जीत भी है।
पहली बार चुनाव जीतने के बाद नानाजी देशमुख ने 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लिया। उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और अपना पूरा जीवन समाज सेवा को समर्पित कर दिया। नानाजी देशमुख एक सच्चे समाजसेवी और देशभक्त थे। उनके कार्यों की बदौलत उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
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वर्ष 1989 में भारत भ्रमण के दौरान नानाजी पहली बार भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट आए और फिर यहीं रहने लगे। यहां के गांवों की दुर्दशा देखकर नानाजी ने लोगों के लिए काम करने का फैसला किया। 27 फरवरी 2010 को नानाजी का निधन हो गया। उनके निधन के बाद नानाजी के पार्थिव शरीर को एम्स को सौंप दिया गया।