पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुुल कलाम (सोर्स-सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: देश आज यानी मंगलवार 15 अक्टूबर मिसाइल मैन एपीजे एब्दुल कलाम की 93वीं जयंती मना रहा है। अब्दुल कलाम के जीवन और उपलब्धियों के बारे में शायद ही किसी को न पता हो। लेकिन आज हम आपको वह किस्सा बताने जा रहे हैं जो आपने शायद ही सुना होगा। क्या आपको पता है कि एपीजे अब्दुल कलाम दोबारा भी राष्ट्रपति बन सकते थे, लेकिन कांग्रेस की वजह से ऐसा नहीं हो सका? क्या है पूरी कहानी आइए जानते हैं।
दूसरी बार राष्ट्रपति बनने की कहानी से पहले उनके जीनव पर एक संक्षिप्त नजर डाल लेते हैं। अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम में हुआ था। उनका पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुल आबेदीन अब्दुल कलाम था। जो बाद में मिसाइल मैन के नाम से मशहूर हुए। उन्होंने अपना पूरा जीवन शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र को समर्पित कर दिया। उन्होंने मुख्य रूप से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में वैज्ञानिक के तौर पर काम किया।
1962 में ISRO से जुड़ने के बाद अब्दुल कलाम ने कई सैटेलाइट लॉन्च प्रोजेक्ट में सफलतापूर्वक अपनी भूमिका निभाई। डॉ. कलाम ने भारत के पहले सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-III) को विकसित करने के लिए प्रोजेक्ट डायरेक्टर के तौर पर अहम योगदान दिया। SLV-III ने जुलाई 1980 में रोहिणी सैटेलाइट को पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया, जिसके बाद भारत स्पेस क्लब का खास सदस्य बन गया।
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अब्दुल कलाम ने अपनी शुरुआती शिक्षा जारी रखने के लिए अखबार भी बेचे। उन्होंने 1950 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से स्पेस साइंस में ग्रेजुएशन किया। जिसके बाद वे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान से जुड़ गए। भारत को बैलिस्टिक मिसाइल और लॉन्चिंग तकनीक में आत्मनिर्भर बनाने के कारण एपीजे अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन नाम दिया गया। 1982 में कलाम को डीआरडीएल (रक्षा अनुसंधान विकास प्रयोगशाला) का निदेशक बनाया गया।
जिसके बाद कलाम ने तत्कालीन रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. वीएस अरुणाचलम के साथ मिलकर इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आईजीएमडीपी) का प्रस्ताव तैयार किया। इसके चलते उन्होंने भारत के लिए पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश, नाग, ब्रह्मोस समेत कई मिसाइलें बनाईं। देश की पहली मिसाइल कलाम की देखरेख में ही बनी थी।
1974 में भारत के पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरण-II परमाणु परीक्षण में कलाम ने निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनीतिक भूमिका निभाई। इस परीक्षण ने भारत को परमाणु शक्ति बना दिया। सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस दोनों के समर्थन से कलाम 2002 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद वे शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने नागरिक जीवन में लौट आए।
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम 2012 में अपने दूसरे कार्यकाल के लिए तैयार थे। लेकिन कांग्रेस से समर्थन न मिलने के कारण उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए। इतिहासकार राजमोहन गांधी ने अपनी किताब ‘मॉडर्न साउथ इंडिया: ए हिस्ट्री फ्रॉम द सेवेंटीन्थ सेंचुरी टू आवर टाइम्स’ में लिखा है- “बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस समेत कुछ राजनीतिक दलों ने 2012 में कलाम को राष्ट्रपति के तौर पर दूसरे कार्यकाल का प्रस्ताव दिया और वह तैयार भी थे, लेकिन कांग्रेस और उसके सहयोगियों को यह विचार पसंद नहीं आया। संख्या बल की कमी को देखते हुए कलाम चुनाव में खड़े नहीं हुए।
कलाम को उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न भी शामिल है। 27 जुलाई 2015 को शिलांग में उनका निधन हो गया। कलाम वैज्ञानिक जरूर थे, लेकिन साहित्य में उनकी खास रुचि थी। उन्होंने कई कविताएं भी लिखीं। उन्होंने कई किताबें लिखी थीं। जिन्हें पढ़कर आप संघर्ष की राह पर सफलता की कहानी लिख सकते हैं।
वर्ष | किताब | विवरण |
---|---|---|
1999 | विंग्स ऑफ फायर | डॉ. कलाम की आत्मकथा, जिसमें उनके जीवन के संघर्ष और उपलब्धियों का वर्णन है। |
2002 | इग्नाइटेड माइंड्स | इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय युवाओं को प्रेरित करने और देश के विकास पर जोर दिया है। |
1998 | इंडिया 2020 | इसमें उन्होंने भारत को 2020 तक विकसित राष्ट्र बनाने की योजना और दृष्टिकोण साझा किया है। |
2013 | माई जर्नी | इस पुस्तक में उन्होंने अपने जीवन के व्यक्तिगत अनुभवों को साझा किया है। |
2006 | ट्रांसेंडिंग बाउंड्रीज | इस पुस्तक में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और मानवता के प्रति उनके दृष्टिकोण पर चर्चा की गई है। |
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