ममता बनर्जी और अखिलेश यादव, फोटो- सोशल मीडिया
Akhilesh Yadav on PM-CM Bill: प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को 30 दिनों तक हिरासत में रहने पर पद से हटाने वाले विधेयकों और इसके साथ जुड़े संवैधानिक संशोधनों की जांच के लिए गठित की गई संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को विपक्ष के दो अहम दलों तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और समाजवादी पार्टी (सपा) ने बड़ा झटका दिया है। इन दोनों दलों ने इस समिति का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है।
टीएमसी का इस समिति से दूर रहना पहले से तय माना जा रहा था, लेकिन सपा का इस फैसले में शामिल होना अप्रत्याशित रहा और इससे विपक्ष के भीतर भ्रम और बेचैनी का माहौल बन गया है। अब कांग्रेस पर भी दबाव बढ़ गया है कि वह स्पष्ट रुख अपनाए। कांग्रेस पहले समिति में शामिल होने की ओर झुकी दिख रही थी, लेकिन सपा के कदम के बाद उसके भीतर संशय की स्थिति बन गई है।
टीएमसी के वरिष्ठ नेता और सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने जेपीसी को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि यह एक असंवैधानिक बिल की जांच के नाम पर केवल राजनीतिक नाटक है। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी पार्टी इस नाटक का हिस्सा नहीं बनेगी।
डेरेक ओ’ब्रायन ने यह भी कहा कि जेपीसी जैसी समितियों की भूमिका अब केवल औपचारिकता बन गई है। पहले यह समिति जवाबदेही और पारदर्शिता का माध्यम मानी जाती थी, लेकिन अब इसमें विपक्ष की बातें नजरअंदाज की जाती हैं और सरकार इसे अपने पक्ष में मोड़ने का जरिया बना रही है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इस बिल की वैधता और मंशा पर सवाल खड़े करते हुए टीएमसी के रुख का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि जिस मंत्री (गृह मंत्री अमित शाह) ने यह बिल लाया है, उन्होंने खुद कहा है कि उन पर झूठे मुकदमे लगाए गए थे। अगर किसी पर फर्जी मुकदमे लगाए जा सकते हैं, तो फिर इस बिल की उपयोगिता क्या है? उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इसी तरह के झूठे मामलों में उनके पार्टी के नेता जैसे आजम खान, रामाकांत यादव और इरफान सोलंकी को जेल में डाला गया।
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अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि यह विधेयक भारत के संघीय ढांचे के खिलाफ है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मुख्यमंत्री खुद अपने खिलाफ दर्ज केस वापस ले सकते हैं। चूंकि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है, इसलिए केंद्र सरकार का इसमें सीधा हस्तक्षेप नहीं हो सकता, जब तक कि मामला केंद्रीय एजेंसियों जैसे सीबीआई या ईडी का न हो।