(कांसेप्ट फोटो सौ. सोशल मीडिया)
नई दिल्ली : डायबिटीज एक ऐसा नाम जो अब हर किसी की जुबान पर है। यह हर सड़क पर हर शहर में और हर परिवार में एक आम घटना बन गई। एक समय ऐसा माना जाता था कि केवल वृद्ध लोग ही इस बीमारी से पीड़ित होते हैं, लेकिन अब हर कोई इससे पीड़ित है। चाहे बच्चे हों, युवा हों और बुजुर्ग हों। आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि 1990 में डायबिटीज से पीड़ित लोगों की संख्या केवल 7 प्रतिशत थी। लेकिन 2022 में यह बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई है।
इसका मतलब है कि 30 वर्षों में रोगियों की संख्या दोगुनी हो गई है! और ये आंकड़े किसी आम रिपोर्ट से नहीं बल्कि विश्व प्रसिद्ध जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन से लिए गए हैं। आज 8 करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं और विशेषज्ञों का कहना है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो 2050 तक यह संख्या 130 करोड़ को पार कर सकती है।
ये भी पढ़े: Toyota इंडिया ने Urban Cruiser Hyryder की 1 लाख यूनिट्स की बिक्री का किया ऐलान, मनाया जश्न
यह अध्ययन गैर-संचारी रोग जोखिम कारकों और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से आयोजित किया गया था। कहा जाता है कि अमीर देशों में इसका प्रचलन कम हो रहा है। अध्ययन में 14 मिलियन से अधिक लोगों के डेटा के साथ 1,000 से अधिक पुराने अध्ययनों का विश्लेषण किया गया। 1990 में, 200 अरब लोगडायबिटीज से पीड़ित थे। और अनुमान है कि 2022 तक यह संख्या बढ़कर 830 अरब हो जाएगी। 1980 में वयस्कों में मधुमेह का प्रसार 4.7% था। आज यह 8.5% है।
डायबिटीज में वृद्धि लोगों की जीवनशैली में बदलाव के कारण होती है। अध्ययन के लेखकों ने कहा कि मोटापा और आहार टाइप 2 मधुमेह का मुख्य कारण हैं। यह आमतौर पर मध्यम आयु वर्ग या बुजुर्ग लोगों में होता है। टाइप 1 डायबिटीज आमतौर पर कम उम्र में विकसित होता है और शरीर में इंसुलिन की कमी के कारण इसका इलाज करना अधिक कठिन होता है। यह समस्या उन देशों में विशेष रूप से गंभीर है जहां तेजी से शहरीकरण और आर्थिक विकास के कारण आहार और दैनिक जीवन में बदलाव आया है। महिलाओं पर इसका प्रभाव बहुत अधिक होता है।
लैंसेट अध्ययन के अनुसार, 2022 में, 30 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 59 प्रतिशत वयस्कों या लगभग 445 मिलियन लोगों को डायबिटीज का कोई इलाज नहीं मिल रहा था। उप-सहारा अफ़्रीका में केवल 5 से 10 प्रतिशत लोगों को ही इलाज मिल पाता है। यह स्थिति तब है जब डायबिटीज की दवाएं उपलब्ध हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच के कारण इलाज मुश्किल हो जाता है।