अनिल विज ( फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)
चंडीगढ़ः हरियाणा में नई सरकार के गठन के लिए नयाब सैनी ने राजभवन में दावा पेश कर दिया है। कल दूसरी बार सैनी मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। राजभवन में शपथ ग्रहण समारोह की तैयारियां चल रहीं हैं। इस बीच हरियाणा के दिग्गज नेता अनिल विज की काफी चर्चा है। दरअसल अनिल विज ने विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोका था। उन्होंने कहा था कि सबसे वरिष्ठ सदस्य होने के नाते पार्टी हाईकमान के सामने मैं अपनी इच्छा प्रकट करूंगा। विज के अलावा अहिरवाल बेल्ट के दिग्गज नेता राव इंद्रजीत ने भी सीएम पद पर दावेदारी ठोकी थी, हालांकि उस दौरान सबसे अधिक चर्चा अनिल विज की रही थी। बता दें कि ये दावे तब किए जा रहे थे जब गृहमंत्री अमित शाह ने नायब सैनी को सीएम फेस घोषित कर दिया था।
“सजा ये है कि मैं बंजर जमीन हूं और जुल्म ये है कि मुझे बारिशों से इश्क हो गया है”
हरियाणा के मौजूदा सियासी हालात पर अनिल विज के लिए ये लाइनें काफी फिट बैठती हैं। “सजा ये है कि मैं बंजर जमीन हूं और जुल्म ये है कि मुझे बारिशों से इश्क हो गया है” क्योंकि जिस कुर्सी का सपना अनिल विज पिछले एक दशक से देख रहे हैं उस कुर्सी पर एक बार फिर कोई और बैठ गया। दर्द तब और बढ़ गया, जब खुद अनिल विज को मनोहर लाल खट्टर के साथ नायब सिंह सैनी के नाम प्रस्ताव देना पड़ा।
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सियासी सगूफा था विज का सीएम पद पर दावा !
अनिल विज के पीछे हटने की बैकग्राउंड स्टोरी काफी दिलचस्प है। हरियाणा में विज के अलावा सभी दिग्गज अपने सियासी वारिस को मंत्रिमंडल में देखना चाहते हैं। सूत्रों के मुताबिक यही कारण है कि राव इंद्रजीत सीएम की कुर्सी पर दावा करना छोड़ दिया। अब राव की इस कुर्बानी के बदले उनकी बेटी आरती राव को मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी। लेकिन विज के साथ ऐसा नहीं है। लगातार 7वीं बार अंबाला कैंट से विधायक बन चुके विज की सीट इस बार फंस गई थी। कांग्रेस की कथित सुनामी से भाजपा नेताओं में हार का भय था। जिसके लिए अनिल विज ने यह चाल चली थी। जिससे लगातार 7वीं बार चंडीगढ़ पहुंचने में वह कामयाब हुए। सूत्रों का कहना है कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के इशारे पर विज ने सीट बचाने के लिए सियासी सगूफा छोड़ा था। पहली बात तो भाजपा नेताओं को सत्ता में वापसी की उम्मीद कम थी और 6 महीने पहले मुख्यमंत्री बने नायब सैनी इतनी जल्दी अपना दावा असानी से छोड़ने वाले नहीं थे। वो भी तब जब अमित शाह उनके नाम का ऐलान खुद कर चुके हों। हालांकि जीत के बाद विज की उम्मीदों को पंख जरूर लगे थे, शाह ने अपनी चाणक्य नीति से उनके सपनों पर पानी फेर दिया।
सीएम की कुर्सी के लिए ‘गब्बर’ का संघर्ष हुए लंबा
गौरतलब है कि विज मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए अपनी ही पार्टी में एक दशक से संघर्ष कर रहे हैं। इनका यह संघर्ष अब और लंबा हो गया है। 2014 में पहली बार हरियाणा की सत्ता में अपने दम पर भाजपा काबिज हुई थी। चुनाव जीतने के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि अनिल विज मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी मनोहर लाल को खट्टर को हरियाणा की कमान मिल गई। वहीं दोबारा जब जेजेपी के साथ 2019 में सरकार बनी तो फिर विज की नाराजगी के चर्चे आम हो गए। हालांकि भाजपा ने गृह व स्वास्थ्य जैसे मजबूत मंत्रालय देकर गब्बर को मनाने में कामयाब हुई।
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जब भाजपा की मीटिंग छोड़कर पैदल भागे अनिल विज
वहीं जब खट्टर के इस्तीफा देने के बाद मुख्यमंत्री के लिए नायब सैनी के नाम का प्रस्ताव आया तो विज मीटिंग छोड़कर पैदल अंबाला के लिए रवाना हो गए। हालांकि उन्हें मनाने की कोशिश भाजपा नेताओं ने की मगर वह नहीं माने। इस दौरान वह एक मीडिया कर्मी की गाड़ी से अंबाला आ गए। भरी मीटिंग में बागी तेवर दिखाते हुए विज ने कहा था कि मैं इस पाप का भागीदार नहीं बनूंगा। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि विज सीएम पद के लिए स्वयं के नाम का प्रस्ताव न होने पर इतने बिफरे थे या फिर सैनी के नाम के प्रस्ताव पर नाराज थे। बता दें कि नायब सैनी मनोहर लाल के करीबी हैं और खट्टर विज की खटपट जग जाहिर है।