अभिनेता गुलशन देवैया ने नवभारत से बातचीत में अपने करियर, फिल्मों, वर्क स्टाइल और निजी सोच पर बेहद स्पष्टता से बातें साझा कीं। ‘कांतारा’ के बाद वह अब साउथ इंडस्ट्री में भी सक्रिय हैं और तमिल सीरीज ‘लेगसी’ व तेलुगु फिल्म ‘बंगाराम’ में नजर आएंगे। उन्होंने बताया कि पहले उनका पूरा ध्यान हिंदी सिनेमा में पहचान बनाने पर था क्योंकि उससे उनका भावनात्मक जुड़ाव गहरा है। बोहर में पले-बढ़े होने के कारण उन्हें दक्षिण भारतीय भाषाओं की थोड़ी समझ है, जो अब शूटिंग के दौरान मदद कर रही है।
गुलशन अपने किरदारों में विविधता तलाशना पसंद करते हैं और विज्ञापन कम करने की वजह उन्होंने यह बताई कि उन्हें प्रोडक्ट बेचने में खास रुचि नहीं। इंटिमेट सीन्स पर उन्होंने कहा कि भरोसे का माहौल और स्पष्ट सीमाएं बेहद जरूरी होती हैं, ताकि किसी भी कलाकार को असहजता न हो। इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर्स की मौजूदगी से काम काफी आसान हुआ है।
फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ते कॉर्पोरेट कल्चर पर उनका मानना है कि सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन अत्यधिक बिजनेस-फोकस से रचनात्मकता पर असर पड़ता है। वे कला और कारोबार के बीच संतुलन को जरूरी मानते हैं। निजी जीवन में वह खुद को जमीन से जुड़ा रखते हैं और बताते हैं कि अपने शुरुआती अंडर-कॉन्फिडेंस को पार करके अब वे अपने काम का आत्मविश्वास से सामना करते हैं।
अभिनेता गुलशन देवैया ने नवभारत से बातचीत में अपने करियर, फिल्मों, वर्क स्टाइल और निजी सोच पर बेहद स्पष्टता से बातें साझा कीं। ‘कांतारा’ के बाद वह अब साउथ इंडस्ट्री में भी सक्रिय हैं और तमिल सीरीज ‘लेगसी’ व तेलुगु फिल्म ‘बंगाराम’ में नजर आएंगे। उन्होंने बताया कि पहले उनका पूरा ध्यान हिंदी सिनेमा में पहचान बनाने पर था क्योंकि उससे उनका भावनात्मक जुड़ाव गहरा है। बोहर में पले-बढ़े होने के कारण उन्हें दक्षिण भारतीय भाषाओं की थोड़ी समझ है, जो अब शूटिंग के दौरान मदद कर रही है।
गुलशन अपने किरदारों में विविधता तलाशना पसंद करते हैं और विज्ञापन कम करने की वजह उन्होंने यह बताई कि उन्हें प्रोडक्ट बेचने में खास रुचि नहीं। इंटिमेट सीन्स पर उन्होंने कहा कि भरोसे का माहौल और स्पष्ट सीमाएं बेहद जरूरी होती हैं, ताकि किसी भी कलाकार को असहजता न हो। इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर्स की मौजूदगी से काम काफी आसान हुआ है।
फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ते कॉर्पोरेट कल्चर पर उनका मानना है कि सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन अत्यधिक बिजनेस-फोकस से रचनात्मकता पर असर पड़ता है। वे कला और कारोबार के बीच संतुलन को जरूरी मानते हैं। निजी जीवन में वह खुद को जमीन से जुड़ा रखते हैं और बताते हैं कि अपने शुरुआती अंडर-कॉन्फिडेंस को पार करके अब वे अपने काम का आत्मविश्वास से सामना करते हैं।