बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार के अररिया विधानसभा क्षेत्र का चुनावी इतिहास जितना पुराना है, उतना ही अप्रत्याशित भी है। पूर्णिया प्रमंडल के अंतर्गत आने वाली यह सीट, नेपाल की सीमा से सटी होने और 56% से अधिक मुस्लिम मतदाताओं की उपस्थिति के कारण, क्षेत्रीय राजनीति में एक रणनीतिक केंद्र बनी रहती है।
1951 से 2020 तक हुए 18 चुनावों में, अररिया सीट पर किसी भी दल का स्थायी दबदबा नहीं रहा है। कई दलों ने बारी-बारी से अपनी दमदार जीत हासिल की है।
कांग्रेस का वर्चस्व: कांग्रेस ने यहां सबसे ज़्यादा सात बार (1957, 1967, 1969, 1977, 1985, 2015 और 2020) जीत हासिल की, जिससे यह उसका पारंपरिक गढ़ कहलाता है।
निर्दलीय प्रभाव: निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी चार बार (1952, 1962, 1990 और 2000) जीत दर्ज की, जो स्थानीय नेताओं के मजबूत व्यक्तिगत प्रभाव को दर्शाता है।
भाजपा और लोजपा: भाजपा ने दो बार (2005 के दोनों चुनाव) और लोजपा ने 2009 (उपचुनाव) और 2010 में यहाँ जीत हासिल की।
अररिया सीट की सबसे दिलचस्प खासियत यह है कि यहां से कोई भी पार्टी लगातार दो बार जीतने के बाद तीसरी बार जीत हासिल नहीं कर पाई है। भाजपा (2005), लोजपा (2009-2010) और कांग्रेस (2015-2020) सभी ने दो बार जीत दर्ज करने के बाद ब्रेक लिया है। इस रुझान के हिसाब से, 2025 में कांग्रेस के लिए ‘हैट्रिक’ लगाना मुश्किल हो सकता है, जिससे यह सीट ‘इंडिया गठबंधन’ के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है।
2020 विधानसभा चुनाव: कांग्रेस के अबिदुर रहमान ने जदयू की शगुफ्ता अजीम को 47,936 वोटों के भारी अंतर से हराया था। उन्हें कुल 1,03,054 वोट मिले थे, जो कुल मतदान का 54.84% था। 2024 लोकसभा चुनाव: अररिया लोकसभा क्षेत्र में राजद (इंडिया गठबंधन) को बढ़त मिली थी, जो यहाँ ‘इंडिया गठबंधन’ की मजबूत पकड़ को दर्शाती है।
अररिया की राजनीति पर मुस्लिम मतदाताओं (56.3% ) का स्पष्ट दबदबा है। इसके अलावा, अनुसूचित जातियों की हिस्सेदारी (12.8% ) भी निर्णायक है, जबकि युवा मतदाता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
नेपाल सीमा से सटा यह जिला बांग्लादेश और भूटान से भी नज़दीकी रखता है। इसका नामकरण ईस्ट इंडिया कंपनी के जिला कलेक्टर अलेक्जेंडर जॉन फोर्ब्स की कोठी के स्थानीय उच्चारण ‘आर-एरिया’ (R-Area) से हुआ माना जाता है। कृषि यहां की आर्थिक रीढ़ है। धान, मक्का, जूट, गन्ना और सब्ज़ियाँ यहाँ प्रमुखता से उगाई जाती हैं। हालाँकि, अनुकूल जलवायु और मिट्टी के बावजूद, औद्योगिक विकास नगण्य है। अररिया की यह पिछड़ी स्थिति और बुनियादी सुविधाओं का अभाव 2025 के चुनाव में प्रमुख मुद्दा रहेगा।
कांग्रेस (इंडिया गठबंधन): लगातार दो बार की जीत के बाद अब ‘तीसरी बार जीत के मिथक’ को तोड़ने की चुनौती है। मुस्लिम और अनुसूचित जाति के वोटों को एकजुट रखना कांग्रेस की प्राथमिकता होगी।
जदयू-भाजपा (NDA): NDA के लिए यह सीट हमेशा से मुश्किल रही है, खासकर मुस्लिम बहुल होने के कारण। NDA की कोशिश यहाँ मुस्लिम वोटों के बंटवारे (AIMIM या अन्य छोटे दलों के कारण) का फायदा उठाने और अपने सवर्ण व अन्य पिछड़े वोटों को मजबूत करने की होगी।
ये भी पढ़ें: झंझारपुर विधानसभा: दशकों से बरकरार है ‘मिश्रा परिवार’ की मजबूत पकड़, 2025 में बदलेगा सियासी समीकरण?
अररिया की जनता इस बार विकास और परिवर्तन की आस में है, और इस अनोखे चुनावी इतिहास वाली सीट पर जीत हासिल करना दोनों गठबंधनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल होगा।