वैसे अगर देखा जा तो दिल्ली में विधानसभा की कहानी 1952 से शुरू हुई है। 1952 पार्ट-सी राज्य के रूप में दिल्ली में एक विधानसभा गठन करने का दर्जा दिया गया। दिल्ली राज्य की विधानसभा 17 मार्च 1952 को पार्ट-सी राज्य सरकार अधिनियम, 1951 के तहत अस्तित्व में आई।
राज्य पुनर्गठन आयोग (1955) की सिफारिशों के बाद दिल्ली 1 नवंबर 1956 से भाग-सी राज्य नहीं रही। दिल्ली विधानसभा और मंत्रिपरिषद को समाप्त कर दिया गया और दिल्ली राष्ट्रपति के प्रत्यक्ष प्रशासन के तहत केंद्र शासित प्रदेश बन गया।
दिल्ली में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था और उत्तरदायी प्रशासन की मांग उठने लगी। इसके बाद दिल्ली प्रशासन अधिनियम, 1966 के तहत महानगर परिषद बनाई गई। यह एक सदनीय लोकतांत्रिक निकाय था जिसमें 56 निर्वाचित सदस्य और 5 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य होते थे।
इसके बाद भी विधानसभा की मांग उठती रही। 24 दिसंबर 1987 को भारत सरकार ने सरकारिया समिति (जिसे बाद में बालकृष्णन समिति कहा गया) नियुक्त की। समिति ने 14 दिसंबर 1989 को अपनी रिपोर्ट पेश की और सिफारिश की कि दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बना रहना चाहिए, लेकिन आम आदमी से जुड़े मामलों से निपटने के लिए अच्छी शक्तियों के साथ एक विधानसभा दी जानी चाहिए।
बालाकृष्णन समिति की सिफारिश के अनुसार, संसद ने संविधान (69वां संशोधन) अधिनियम, 1991 पारित किया, जिसने संविधान में नए अनुच्छेद 239AA और 239AB डाले, जो अन्य बातों के साथ-साथ दिल्ली के लिए एक विधानसभा की व्यवस्था करते हैं। लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि के मुद्दों पर विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार नहीं था। 1992 में परिसीमन के बाद 1993 में दिल्ली में विधानसभा के चुनाव बाद दिल्ली को एक निर्वाचित विधानसभा और मुख्यमंत्री मिला।
1993 में विधानसभा के गठन के बाद हुए चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में भाजपा ने 70 में से 49 सीटें जीती थीं और उसे 42.80 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस को 34.50 फीसदी और जनता दल को 12.60 फीसदी वोट मिले थे। इसके बाद से वह दोबारा सत्ता तक नहीं पहुंच सकी।
इसके बाद 1998, 2003 और 2008 के चुनावों में कांग्रेस की जीत का सिलसिला जारी रहा। 1998 में मुख्यमंत्री बनने के बाद शीला दीक्षित ने 2003 और 2008 में कांग्रेस को जीत दिलाई।
2013 के चुनाव में आप ने कांग्रेस को किनारे लगाया और सत्ता की चाबी थाम ली। तब से लेकर आप दिल्ली में काबिज है। कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोपों पर घिरने के बाद शीला दीक्षित की लोकप्रियता में खासी गिरावट देखी गई। इसमें एक बड़ी भूमिका अन्ना हजारे के जनलोकपाल कानून के लिए किए गए आंदोलन की भी रही। अरविंद केजरीवाल समेत उनकी आम आदमी पार्टी का उदय भी हुआ और तब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी काबिज है।
2025 में हो रहे दिल्ली में विधान सभा चुनाव में मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच माना जा रहा है। वहीं कांग्रेस एक बार फिर तीसरे नंबर पर जाती दिख रही है।