सांकेतिक तस्वीर (सोर्स-सोशल मीडिया)
नई दिल्ली : दिल्ली एनसीआर में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) गंभीर से खतरनाक बना हुआ है, जो अस्पतालों में श्वसन और छाती के संक्रमण के मामलों में वृद्धि का एक प्रमुख कारण है। नोएडा के कैलाश अस्पताल के वरिष्ठ सलाहकार, चेस्ट फिजिशियन और ब्रोंकोस्कोपिस्ट मेडिसिन डॉ. सुधीर गुप्ता के अनुसार, “श्वसन संबंधी बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या निश्चित रूप से बढ़ी है, कुछ दिनों से मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है और ओपीडी में भी मरीजों का बोझ बढ़ गया है, कुछ संक्रमित खांसी के साथ आ रहे हैं जो सामान्य दवा लेने के बाद ठीक नहीं हो सकती। उन मरीजों के लिए स्थिति कठिन हो गई है जो पहले से ही श्वसन संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं।”
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जिन लोगों को एलर्जी नहीं है और जिनका कोई इतिहास नहीं है, वे भी वायु प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं। फोर्टिस एस्कॉर्ट्स के पल्मोनोलॉजी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अवि कुमार ने कहा कि हम अपने ओपीडी में सांस फूलने, घरघराहट, कफ और गले में जलन, गले में खुजली, नाक बंद होना, नाक बहना, कान बंद होना, आंखों में खुजली जैसे लक्षणों वाले मरीज देख रहे हैं।
इन्हीं सारे लक्षणों से कई स्थायी रोगियों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। आम तौर पर उन रोगियों में जो आपातकालीन स्थिति में डॉक्टर के पास आ रहे हैं। बढ़ते प्रदूषण के बीच बहुत से निमोनिया के मरीज डॉक्टर के पास आते हुए दिख रहे हैं। उनके पास धूम्रपान करने का कोई इतिहास नहीं है, या उनकी कोई पिछली प्रतिरक्षाविहीन स्थिति नहीं है, लेकिन वे निमोनिया के साथ आ रहे हैं। इसलिए यह काफी आश्चर्यजनक है कि प्रतिरक्षा-सक्षम मरीज जिनका धूम्रपान का कोई इतिहास नहीं है, वे निमोनिया के लक्षण लेकर हमारे पास आ रहे हैं।
डॉ. अवि कुमार ने इस बारे में और अधिक जानकारी देते हुए कहा कि मैं अपने ज्यादातर मरीजों को सलाह दूंगा जो सांस की दवाएं ले रहे हैं, जो हृदय की दवाएं ले रहे हैं, लीवर या किडनी की दवाएं ले रहे हैं, कि वे घर पर ही रहें, सुबह की सैर पर न जाएं। जब भी धूप निकले, तभी सैर पर जाएं, बेवजह बाजार न जाएं। दूसरी बात, जो लोग दवाएं ले रहे हैं, उन्हें अपनी नियमित दवाएं लेनी चाहिए। उन्हें अपनी दवाएं नहीं छोड़नी चाहिए।” डॉ. अवि ने सह-रुग्णता वाले लोगों के लिए उपाय सुझाए।
एजंसी इनपुट के साथ।