सांकेतिक तस्वीर
Delhi Teachers Stray Dogs Counting: दिल्ली के सरकारी और निजी स्कूलों के शिक्षक अब कक्षाओं में पढ़ाने के साथ-साथ सड़कों पर घूम रहे आवारा कुत्तों की गिनती करते भी नजर आएंगे। दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय (DoE) ने हाल ही में एक आदेश जारी कर सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया है कि इस गणना अभियान के लिए शैक्षणिक संस्थानों से नोडल अधिकारी नियुक्त किए जाएं।
शिक्षा निदेशालय के अनुसार, यह पहल जन सुरक्षा और माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा 7 नवंबर 2025 को दिए गए निर्देशों के पालन के तहत की जा रही है। अदालत ने स्पष्ट किया था कि शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों और सार्वजनिक स्थलों से आवारा कुत्तों को हटाकर उन्हें तय किए गए आश्रय स्थलों में भेजा जाए। स्थानांतरण से पहले कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण सुनिश्चित करना भी जरूरी बताया गया है। निदेशालय ने इस कार्य को “शीर्ष प्राथमिकता” करार दिया है। अकेले उत्तर-पश्चिम जिले से ही करीब 118 सरकारी शिक्षकों को इस सूची में शामिल किया गया है।
इस आदेश के सामने आते ही शिक्षक संगठनों ने सरकार के खिलाफ विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया है। सरकारी स्कूल शिक्षक संघ (GSTA) का कहना है कि शिक्षकों को ऐसे कार्यों में लगाना उनकी गरिमा के खिलाफ है। GSTA अध्यक्ष पद के उम्मीदवार कृष्णा फोगाट ने कहा, “यह पूरी तरह अनुचित है। अगर शिक्षक आवारा कुत्तों की गिनती करेंगे तो बच्चों की पढ़ाई पर कौन ध्यान देगा? क्या इसके लिए पशुपालन या वन विभाग के पास कर्मचारी नहीं हैं?”
शालीमार बाग में तैनात एक शिक्षिका ऋतु सैनी ने बताया कि उन्हें पिछले सप्ताह ही इस ड्यूटी की जानकारी दी गई। उन्होंने कहा कि आदेश सरकारी है, इसलिए उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं।
शिक्षकों का मानना है कि शिक्षा एक सम्मानजनक पेशा है और उन्हें लगातार गैर-शैक्षणिक कार्यों में लगाया जा रहा है। उनका सवाल है कि आवारा कुत्तों की गिनती का जिम्मा पशुपालन विभाग को क्यों नहीं दिया गया। शिक्षकों की अनुपस्थिति में स्कूलों की पढ़ाई पर क्या असर पड़ेगा? क्या इससे समाज में शिक्षकों के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचेगी?
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गौरतलब है कि दिल्ली अकेला राज्य नहीं है जहां इस तरह की व्यवस्था लागू की जा रही है। इससे पहले उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर में भी आवारा कुत्तों की गणना और प्रबंधन को लेकर इसी तरह के निर्देश जारी किए जा चुके हैं। फिलहाल शिक्षक संघ इस मुद्दे पर शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर आदेश वापस लेने की मांग कर रहे हैं।