निर्मला सीतारमण, (वित्त मंत्री)
नई दिल्ली : भारत में इंडियन पेनल कोड यानी आईपीसी को बदलकर हाल ही में भारतीय न्याय संहिता यानी बीएनएस बनाया गया है। इसमें कानून की लैंग्वेज सरल करने और कई ऐसे प्रावधानों को हटाने का काम किया गया है, जो आज जरूरत के हिसाब से जरूरी नहीं थे। अब ऐसा ही काम सरकार इनकम टैक्स एक्ट-1961 के साथ करने जा रही है। इसकी लैंग्वेज को आम टैक्सपेयर्स के लिए समझ में आने लायक बनाने, गैर-जरूरी प्रावधानों को हटाने और कोर्ट में कानूनी विवादों को कम करने के लिए सरकार ने इनकम टैक्स बिल 2025 पेश कर दिया है।
न्यू इनकम टैक्स बिल को अभी संसदीय कमिटि के पास विचार के लिए भेज दिया गया है। कमिटी इस पर अपने सुझाव देगी, जिसके बाद संसद इसे पारित करेगी और बाद में सरकार इसे बजट में नोटिफाई करेगी। इसके बाद देश में इनकम टैक्स 1961 की जगह न्यू इनकम टैक्स एक्ट 2025 लागू हो जाएगा। आइए समझते है कि इस नए बिल में सरकार का फोकस किस बात पर सबसे ज्यादा है और सैलरीड क्लास को इससे क्या मिलने वाली है?
न्यू इनकम टैक्स बिल में सरकार ने फाइनेंशियल ईयर या असेसमेंट ईयर जैसे कॉन्सेप्ट को खत्म करके सीधी लैंग्वेज में टैक्स ईयर शब्द को रखा है। फिलहाल आप जब इनकम टैक्स भरते हैं, तो आप अप्रैल से जुलाई के बीच के महीने में रिटर्न फाइल कर सकते हैं, लेकिन उस समय में नया वित्त वर्ष अप्रैल से मार्च में चालू हो जाता है और आप टैक्स फाइल करते हैं, उससे पिछले वित्त वर्ष में 31 मार्च तक हुई इनकम का, जो असेसमेंट ईयर होता है। ऐसे में अब टैक्स ईयर से सीधा मतलब ये होगा कि आप किस साल के लिए टैक्स भर रहे हैं।
इतना ही नहीं इस नए इनकम टैक्स में कई और बदलाव किए गए हैं। इसी में से एक है आपकी सैलरी और उसका फुल एंड फाइनल पेमेंट पर टैक्स के कैलक्यूलेशन से जुड़ा बदलाव आइए इसको विस्तार से समझते हैं।
कभी कभी ऐसा होता है कि जब आप जॉब चेंज करते हैं और कंपनी आपका फुल एंड करने में देरी कर देती हैं। इस दौरान कई बार फाइनेंशियल ईयर भी चेंज हो जाता है। तब आपको ये कंफ्यूजन होता है कि फुल एंड फाइनल के तौर पर आपको जो सैलरी मिली है, उसका टैक्स कैलक्यूलेशन कैसे और कब होगा। न्यू इनकम टैक्स विधेयक में इसे साफ बताया गया है।
इसके अनुसार अब आपकी सैलरी का ऐसा कोई भी हिस्सा जो किसी एक टैक्स ईयर में आपको मिलना था, लेकिन वो आपको उस समय ना मिलकर अगले टैक्स ईयम में मिला, तो भी उस पर टैक्स का कैलक्यूलेशन उसी टैक्स ईयर में होगा, जिस ईयर में वो आपकी इनकम थी यानी यदि कंपनी आपको इसके पेमेंट में देरी भी करती है, तो भी आपको टैक्स पूरा ही करना ही होगा।