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GTRI ने सरकार को चेताया, अमेरिका के साथ एग्री प्रोडक्ट के इंपोर्ट का है मामला

भारत और अमेरिका के बीच में 9 जुलाई के पहले फ्री ट्रेड एग्रीमेंट होने की संभावना तेज हैं। जिसको लेकर जीटीआरआई ने भारत सरकार से एग्रीकल्चर सेक्टर के बारे में चेतावनी दी है।

  • By अपूर्वा नायक
Updated On: Jul 05, 2025 | 04:50 PM

डोनाल्ड ट्रंप के साथ पीएम मोदी (फोटो- सोशल मीडिया)

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नई दिल्ली : इकोनॉमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव यानी जीटीआरआई ने शनिवार को केंद्र सरकार को चेतावनी दी है। जीटीआरआई ने सरकार को आगाह किया है कि प्रपोज्ड ट्रेड एग्रीमेंट के अंतर्गत अमेरिका के साथ आनुवांशिक रूप से संशोधित यानी जीएम एग्री प्रोडक्ट्स को परमिशन देने से भारत पर इसका असर पड़ेगा, क्योंकि इससे ईयू यानी यूरोपियन यूनियन जैसे एरिया में देश के एग्री एक्सपोर्ट पर इसका असर पड़ सकता है।

भारत और अमेरिका एक अंतरिम व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं, जिसकी घोषणा नौ जुलाई से पहले होने की उम्मीद है। जीटीआरआई ने कहा कि पशु आहार के लिए सोयाबीन फूड और डिस्टिलर्स सूखे अनाज के साथ घुलनशील यानी डीडीजीएस जैसे जीएम उत्पादों के इंपोर्ट की परमिशन देने से ईयू को भारत के कृषि निर्यात प्रभावित होंगे, जो इंडियन एक्सपोर्टर के लिए एक प्रमुख डेस्टिनेशन है।

डीडीजीएस एथनॉल उत्पादन के दौरान बनाया गया एक सब-प्रोडक्ट है, जो आमतौर पर मकई या अन्य अनाज से बनता है। यूरोपीय संघ में जीएम लेबलिंग के सख्त रूल्स हैं और जीएम से जुड़े उत्पादों के प्रति कंज्यूमर्स में सख्त प्रतिरोध है। भले ही जीएम फ़ीड की परमिशन है, लेकिन कई यूरोपीय खरीदार पूरी तरह से जीएम-फ्री सप्लाई चेन को प्राछमिकता देते हैं।

जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि भारत की खंडित एग्री-लॉजिस्टिक्स और पृथक्करण बुनियादी ढांचे की कमी क्रॉस-संदूषण की संभावना को बढ़ाती है, जिससे एक्सपोर्ट खेपों में जीएम की मौजूदगी का खतरा है। उन्होंने कहा है कि इससे एक्सपोर्ट बैन हो सकता है, जांच की लागत बढ़ सकती है और भारत की जीएमओ-फ्री इमेज को नुकसान पहुंच सकता है, खास तौर पर चावल, चाय, शहद, मसाले और जैविक खाद्य पदार्थों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में। मजबूत ‘ट्रेसेबिलिटी’ और ‘लेबलिंग सिस्टम’ के बिना जीएम फ़ीड आयात यूरोपीय संघ में भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को नुकसान पहुंचा सकता है।

आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, पौधे के डीएनए में विशिष्ट जीनों को सम्मिलित करके बनाई जाती हैं, जो अक्सर बैक्टीरिया, विषाणु, अन्य पौधों या कभी-कभी जानवरों से प्राप्त होते हैं, ताकि नए गुण, जैसे कीट प्रतिरोध या शाकनाशी सहिष्णुता, उत्पन्न किए जा सकें।

उदाहरण के लिए, बैसिलस थुरिंजिएंसिस नामक जीवाणु से प्राप्त बीटी जीन पौधे को कुछ कीटों के लिए विषैला प्रोटीन बनाने में सक्षम बनाता है। उन्होंने कहा कि मिट्टी के जीवाणुओं सहित अन्य जीनों का उपयोग फसलों को शाकनाशियों के प्रति प्रतिरोधी बनाने के लिए किया गया है। उन्होंने कहा कि हालांकि जीएम फसलें जैविक रूप से पौधों पर आधारित हैं और शाकाहारी भोजन के रूप में कार्य करती हैं, लेकिन तथ्य यह है कि उनमें से कुछ में पशु मूल के जीन होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे उन समुदायों या व्यक्तियों को स्वीकार्य नहीं हो सकते हैं जो शाकाहार की धार्मिक या नैतिक परिभाषाओं का कड़ाई से पालन करते हैं।

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श्रीवास्तव ने आगे कहा कि शोध से पता चलता है कि जीएम डीएनए पाचन के दौरान टूट जाता है और पशु के मांस, दूध या उत्पाद में प्रवेश नहीं करता है। उन्होंने कहा है कि इसलिए, दूध या चिकन जैसे खाद्य पदार्थों को जीएम के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाता है, भले ही जानवरों को जीएम फ़ीड खिलाया गया हो। हालांकि, आलोचकों का तर्क है कि यह उन उपभोक्ताओं के लिए रेखा को धुंधला कर देता है जो जीएम-संबंधित उत्पादों से पूरी तरह बचना चाहते हैं।

(एजेंसी इनपुट के साथ)

Gtri cautions against importing genetically modified agricultural products from the us

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Published On: Jul 05, 2025 | 04:50 PM

Topics:  

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  • Business News
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