पूर्व SEBI चीफ माधबी पुरी बुच (फोटो- सोशल मीडिया)
मुम्बई: सेबी की पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच को आखिरकार बड़ी राहत मिल गई है। उन्हें हिंडनबर्ग की उस रिपोर्ट से जुड़ी जांच में क्लीन चिट दे दी गई है जिसमें उन पर अदाणी समूह से जुड़े विदेशी फंड्स में हिस्सेदारी रखने और जांच प्रभावित करने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे। लोकपाल द्वारा की गई जांच में यह स्पष्ट किया गया है कि बुच और उनके पति पर लगे सभी आरोप निराधार और तथ्यहीन हैं। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद अब एक लंबे विवाद पर विराम लग गया है, जिसने बाजार और राजनीति दोनों को प्रभावित किया था।
लोकपाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि माधबी पुरी बुच के खिलाफ पेश की गई शिकायतें किसी कानूनी आधार पर खरी नहीं उतरतीं। ना तो कोई ठोस प्रमाण मिले और ना ही ऐसा कोई संकेत जो किसी प्रकार के अपराध की पुष्टि करता हो। इसके साथ ही यह भी साफ किया गया कि आरोपों के पीछे कोई तथ्यात्मक समर्थन नहीं था, जिससे यह पूरी प्रक्रिया एक साजिश जैसी नजर आती है।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर उठे थे सवाल
अगस्त 2024 में प्रकाशित रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि माधबी पुरी बुच और उनके पति ने उन विदेशी फंड्स में हिस्सेदारी रखी जो अदाणी समूह से जुड़े थे। आरोप यह भी था कि इन फंड्स की जांच सेबी द्वारा ढील के साथ की गई, जिससे मिलीभगत की आशंका जताई गई थी। इन दावों के बाद विपक्ष ने भी सरकार और सेबी पर निशाना साधा और तत्काल कार्रवाई की मांग की थी। हालांकि, बुच और उनके पति ने इन आरोपों को शुरुआत से ही खारिज किया और उन्हें बदनाम करने की कोशिश बताया।
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लोकपाल की जांच और निष्कर्ष
लोकपाल ने सभी पहलुओं की विस्तार से जांच करने के बाद साफ किया कि शिकायतें केवल अफवाहों और अनुमान पर आधारित थीं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि आरोपों के पीछे कोई कानूनी या दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है। जांच में यह पाया गया कि पूर्व सेबी प्रमुख की भूमिका पूरी तरह पारदर्शी रही और उनका अदाणी समूह या विदेशी फंड्स से कोई संबंध नहीं था। इसके साथ ही, इस फैसले ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि किसी भी वरिष्ठ पदाधिकारी के खिलाफ आरोप लगाने से पहले ठोस सबूत जरूरी हैं।