टैरिफ और टैक्स में अंतर, (प्रतीकात्मक तस्वीर)
Difference between Tariff and Tax: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर घोषित 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ आज 27 अगस्त से लागू हो गया है। इससे पहले उन्होंने 25 प्रतिशत बेसलाइन टैरिफ लगाया था और अब रूस से तेल खरीदने को लेकर 25 फीसदी टैरिफ पैनल्टी के रूप में लगाया है। ट्रंप के इस फैसले के बाद अमेरिका में एक्सपोर्ट होने वाले भारतीय उत्पादों पर अब कुल 50 प्रतिशत टैरिफ लगने लगा है। इस हालिया टैरिफ विवाद ने कंफ्यूजन पैदा कर दिया है।
आमतौर पर लोगों के बीच टैक्स और टैरिफ को लेकर कंफ्यूज रहता है, क्योंकि दोनों शब्दों का इस्तेमाल अक्सर एक-दूसरे के स्थान पर किए जाते हैं। हालांकि दोनों में अंतर में है। इन दोनों के बीच जो सबसे बड़ा अंतर है वह यह है कि टैक्स किसी व्यक्ति या कोई कंपनी अपनी इनकम के आधार पर सरकार को पे करती है, जबकि टैरिफ उत्पादों के इंपोर्ट पर लागू होता है।
किसी कंपनी, संस्थान या व्यक्ति द्वारा सरकार को अपनी कमाई का अनिवार्य रूप से दिया गया एक हिस्सा है। टैक्स कई प्रकार के होते हैं, जिनका इस्तेमाल स्कूल, सड़क, मेडिकेयर और दूसरी बेसिक प्रोजेक्ट्स के लिए किया जाता है। इनकम टैक्स के रूप में कोई व्यक्ति अपनी इनकम का कुछ पार्ट टैक्स के रूप में सरकार को चुकाता है। अधिक कमाई करने वाले अधिक और निम्न आय वाले व्यक्ति कम टैक्स का भुगतान करते हैं। इसी तरह से कॉर्पोर्ट टैक्स के तहत कंपनियां अपने मुनाफे के हिसाब से सरकार को टैक्स देती है।
दुनिया के अलग-अलग देशों या भारत के अलग-अलग राज्यों में इनकी दरें अलग-अलग होती हैं। ऐसे ही बिक्री के समय सामानों पर लगाए जाने वाले टैक्स को सेल्स टैक्स, संपत्ति पर लगाए जाने वाले टैक्स को प्रॉपर्टी टैक्स के नाम से जाना जाता है। कुल मिलाकर, टैक्स देश के अंदर की जाने वाली कमाई व खरीद-बिक्री पर लगाया चाता है। टैक्स के रूप से मिले पैसों का इस्तेमाल सरकार देश के विकास के लिए करती है।
किसी एक देश से दूसरे देश में एक्सपोर्ट किए जाने वाले उत्पादों और सेवाओं पर वसूले जाने वाले टैक्स को टैरिफ कहते हैं। आसान भाषा में इसको ऐसे समझ सकते हैं- भारत से अमेरिकी बाजार में जाने वाले उत्पादों पर लगने वाले टैक्स को टैरिफ कहते हैं। इस टैरिफ का मुख्य उद्देश्य यह है कि घरेलू स्तर पर बनाई जाने वाली चीजों के उपभोग को बढ़ावा देना है। जैसे हम जानते हैं कि टैरिफ लगने के बाद विदेशे उत्पाद महंगे हो जाएंगे। ऐसे में किसी भी देश का घरेलू उत्पाद ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं। टैरिफ दो तरह के होते हैं- स्पेसिफिक टैरिफ (Specific Tariff) और एड-वेलोरेम टैरिफ ( Ad-Valorem Tariff)।
स्पेसिफिक टैरिफ- यह एक टैरिफ सिस्टम है, जिसमें हर यूनिट ( जैसे प्रति किलो या प्रति लीटर) के हिसाब से एक तय राशि का टैक्स वसूला जाता है। उदाहरण के रूप में- प्रति किलो चावल पर 10 रुपये।
एड-वेलोरेम टैरिफ- यह भी टैरिफ लगाने की एक प्रणाली है, जिसमें टैक्स किसी भी उत्पाद की कुल कीमत के प्रतिशत के हिसाब से तय होता है, यानी जो प्रोडक्ट जितना महंगा होगा उस पर टैरिफ भी उतना ज्यादा होगा।
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गौरतलब है कि टैरिफ का इस्तेमाल अन्य देशों के सस्ते उत्पादों से अपने घरेलू उद्योगों और उत्पादों की रक्षा के लिए किया जाता है। इसके साथ अन्य देशों से इंपोर्ट होने वाले उत्पादों पर लगने वाली टैरिफ से सरकार के राजस्व में इजाफा होता है। वहीं, कभी-कभी टैरिफ का इस्तेमाल दूसरे देशों पर दबाव बनाने के लिए भी किया जाता है।