सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग (फोटो-सोशल मीडिया)
Election Commision News: बिहार में मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख लोगों के नाम पूरी जानकारी के साथ 19 अगस्त तक सार्वजनिक करने पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में सहमति तो दे दी है, लेकिन अब यह डाटा जुटाने में उसे पसीना छूट रहा है। आयोग को ऐसे लोगों के नाम, पता, वर्तमान स्थिति और लिस्ट से हटाए जाने का कारण न सिर्फ अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध करवाना है, बल्कि बीएलओ दफ्तर, सोशल मीडिया प्लेटफार्म और अखबारों में इस्तेहार के जरिए भी सार्वजनिक करना है।
गौरतलब है कि बिहार में जारी मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (एसआईअर) पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवायी के दौरान गुरुवार को भारत के निर्वाचन आयोग ने कहा था कि वह वोटर लिस्ट से हटाये गये 65 लाख लोगों के नाम और उन्हें हटाये जाने का कारण सार्वजनिक करेगा। चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने बताया था कि यह सूची बूथ स्तर के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को पहले ही उपलब्ध करायी जा चुकी है और अब ये लिस्ट ऑनलाइन भी उपलब्ध करायी जाएगी।इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड (ईपिक) नंबर के माध्यम से इस नंबर से आम लोग अपना नाम जांच कर सकेंगे।
आयोग ने यह सहमति न्यायमूर्ति सूर्य कान्त और न्यायमूर्ति जयमाल्या बागजी की खण्ड पीठ के उस सवाल के जवाब में दी थी, जिसमें पीठ ने कहा था कि जिन 65 लाख लोगों के नाम वर्ष 2025 की मतदाता सूची में शामिल थे मगर ताजा मसौदा सूची में नहीं हैं, उनके नाम प्रत्येक जिले के निर्वाचन अधिकारी और केंद्रीय निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर क्यों नहीं है, जबकि लिस्ट बूथवार तरीके से प्रदर्शित करनी चाहिए, जिसमें वोटरों के ईपिक नंबर भी होने चाहिए और मतदाता सूची से नाम हटाये जाने का कारण भी दिया होना चाहिए। इसके अलावा प्रत्येक बूथ स्तरीय अधिकारी द्वारा संबंधित पंचायत भवनों, खंड विकास कार्यालयों में नोटिस बोर्ड पर बाहर रखे गए मतदाताओं की बूथवार सूची, कारण सहित प्रदर्शित की जानी चाहिए थी, ताकि जनता की उन तक पहुंच हो सके।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने 65 लाख लोगों का डाटा एकत्र करने में दिन रात एक कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक इनमें 28 लाख लोगों के नाम तो मौत बाद भी दर्ज होने की वजह से लिस्ट से हटाए गए हैं, इनके नाम और कारण सूची में दर्ज करने में चुनाव आयोग को ज्यादा मुश्किल नहीं हो रही है, लेकिन शेष 37 लाख लोगों के नाम के साथ हटाए जाने के कारण का उल्लेख करना आयोग के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। इसके लिए आयोग ने बूथ स्तर पर सूची अपडेट करने का काम शुरू किया है, लेकिन उन जिलों में सबसे ज्यादा मुश्किल हो रही है, जिनमें हटाए गए लोगों की संख्या लाखों में हैं। राज्य में ऐसे जिलों की संख्या 16 से ज्यादा है, जिनमें 1 या 2 लाख से ज्यादा लोगों को सूची से बाहर किया गया है।
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सुप्रीम कोर्ट ने हटाए गए लोगों की पूरी जानकारी उपलब्ध करवाने के साथ यह भी स्पष्ट किया था कि यदि हटाया गया एक भी नाम ऐसा निकला जो सूची में मृत या प्रवासी या दोहराव बताया गया और वास्तव में उसका नाम हटने की यह तीनों ही वजह नहीं है और अब वह नाम हटने के कारण मतदाता अधिकार से वंचित हो सकता है, तो फिर इस गलती के लिए चुनाव आयोग सीधे जिम्मेदार होगा. इस स्थिति में आयोग बच नहीं पाएगा।