दरौंदा विधानसभा सीट: गंडक की उपजाऊ धरती पर सियासी उठापटक, 5 चुनावों में तीन बार बदला जनादेश
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार के सिवान जिले में स्थित दरौंदा विधानसभा क्षेत्र प्रदेश की राजनीति में एक ऐसे क्षेत्र के रूप में उभरा है जहाँ जनादेश तेजी से और अप्रत्याशित रूप से बदलता रहा है। सिवान लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा यह सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई, और तब से अब तक यहाँ की सियासत में परिवारवाद का वर्चस्व रहा है, जिसे जनता ने बाद में निर्दलीय जनादेश देकर चुनौती दी।
दरौंदा की भौगोलिक बनावट समतल और उपजाऊ है, जहाँ के किसानों को गंडक नदी की सिंचाई सुविधा का लाभ मिलता है। कृषि, जिसमें धान, गेहूं और गन्ना प्रमुख फसलें हैं, इस क्षेत्र की मुख्य आर्थिक गतिविधि है। चावल मिलों और ईंट भट्ठों जैसे छोटे उद्योग स्थानीय लोगों को रोजगार देते हैं।
हालांकि, क्षेत्र की कनेक्टिविटी अच्छी होने के बावजूद, रोजगार की समस्या के कारण यहाँ के युवा मतदाता विकास और अवसरों की राजनीति की ओर झुकाव रखते हैं और बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं। यह मुद्दा आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
दरौंदा विधानसभा क्षेत्र में अब तक कुल पाँच विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें दो उपचुनाव (2011 और 2019) शामिल हैं, जो इस सीट की राजनीतिक अस्थिरता को दर्शाते हैं:
2010: जनता दल (यूनाइटेड) की जगमतो देवी ने पहली बार जीत दर्ज की।
2011 (उपचुनाव) और 2015: जगमतो देवी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी बहू कविता सिंह ने सीट पर कब्जा किया और 2015 में भी अपनी सीट बरकरार रखी। यह यहाँ की परिवारवाद की राजनीति का मजबूत दौर था।
2019 (उपचुनाव): कविता सिंह के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह सीट खाली हुई। जेडीयू ने इस बार उनके पति अजय कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया, लेकिन उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार करणजीत सिंह उर्फ व्यास सिंह ने करारी शिकस्त दी। यह निर्दलीय जनादेश परिवारवाद की राजनीति को जनता द्वारा दी गई पहली बड़ी चुनौती थी।
2020: निर्दलीय चुनाव जीतने वाले करणजीत सिंह बाद में भाजपा में शामिल हो गए और 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाकपा (माले) के अमरनाथ यादव को हराकर अपनी सीट पर भाजपा का झंडा बुलंद किया।
दरौंदा का मतदाता आधार पूरी तरह से ग्रामीण है, जिसकी कुल संख्या 3,29,715 है। यहाँ कई बड़े जातीय समूह हैं जिनकी उपस्थिति चुनावी परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित करती है:
राजपूत: यह समुदाय राजनीति में एक महत्वपूर्ण शक्ति रखता है।
यादव और मुस्लिम: ये दोनों समुदाय महागठबंधन (राजद-माले) के पारंपरिक समर्थन आधार माने जाते हैं और इनका संयुक्त वोटिंग पैटर्न चुनाव का रुख बदल सकता है।
पासवान और ब्राह्मण: इन समुदायों की भी उल्लेखनीय उपस्थिति है, जो चुनावी नतीजों को प्रभावित करने में सहायक होते हैं।
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आगामी चुनाव में भाजपा को अपनी सीट बरकरार रखने के लिए न केवल अपने कोर वोट बैंक को एकजुट रखना होगा, बल्कि महागठबंधन को भी रोजगार और कृषि संकट के मुद्दों पर मजबूत चुनौती पेश करनी होगी।