कोरोना संकट (Coronavirus) की वजह से देशवासी जिस तनावपूर्ण मानसिकता से गुजर रहे हैं और सभी ओर संक्रमण व मौत के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे समय खुशहाली, आनंद या हैपीनेस का सर्वे (World Happiness Report 2021) कदापि विश्वसनीय नहीं माना जा सकता. कौन खुश है? वे कर्मचारी, जिनकी नौकरी उद्योग बंद हो जाने से छूट गई है या छंटनी में रोजगार खो बैठे हैं? क्या वे व्यापारी, जिनका धंधा चौपट हो गया है? क्या ऐसे लाखों प्रवासी मजदूर खुश हो सकते हैं जिन पर पुन: सपरिवार पलायन की नौबत आ गई है? क्या गृहणियां खुश हैं जिन्हें बढ़ती महंगाई बुरी तरह सता रही है? जिन बच्चों को स्कूल और सहपाठियों से दूर रहकर ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ती है और खेलकूद से वंचित हैं, उनके चेहरे पर किसको खुशी दिखाई देती है? ऐसे समय खुशी ढूंढने का सर्वे बेवक्त की शहनाई जैसा है.
सर्वे कराने वाले क्या आंख के अंधे हैं? क्या उन्हें महीनों से चल रहा किसान आंदोलन (Farmers Protest) दिखाई नहीं दे रहा? रोज कमाने-खाने वाले असंगठित श्रमजीवी नजर नहीं आ रहे जिनकी कमाई पर कोरोना की गाज गिरी है? बरतन-कपड़ा धोने वाली बाइयां बेरोजगार (Unemployed) हो गईं. कितने ही घरों में खाना पकाने वाली बाई की भी छुट्टी कर दी गई. कैब चालक, आटो ड्राइवर की कमाई पर भी आघात पहुंचा. कोरोना संक्रमण के डर ने यह नौबत ला दी.
इतने असामान्य समय और अभूतपूर्व रूप से हताशाजनक माहौल में इस सर्वे की नौटंकी की गई. हार्वर्ड केनेडी स्कूल के एशिया फेलो व एमडीआई के एरिया चेयरपर्सन डा. राजेश पिलानिया (Dr. Rajesh Pillania) और उनकी टीम ने 34 शहरों की हैपीनेस रिपोर्ट तैयार की. इसके मुताबिक लुधियाना, अहमदाबाद और चंडीगढ़ के लोग सबसे खुश हैं तथा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर इस सूची में सबसे नीचे है. पुणे 12वें तथा नागपुर 17वें स्थान पर बताए गए हैं. खुशहाली का यह सर्वे सरासर मनगढ़ंत नजर आता है और महामारी के इस विश्वव्यापी दौर में कदापि सुसंगत नहीं है.