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अकोला के श्री राजराजेश्वर मंदिर में श्रावण मास में उमड़ती थी भीड़

  • By navabharat
Updated On: Jul 26, 2021 | 11:35 PM

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  • यहां से कोई खाली हाथ वापस नहीं जाता
  • सभी की मनोकामना होती है पूरी (पी-1 बाटम)

अकोला. पुराना शहर में स्थित श्री राजराजेश्वर मंदिर में श्रावण मास के साथ साथ शिवरात्रि उत्सव तथा अनेक आयोजन किए जाते हैं. लेकिन फिलहाल लाकडाउन के कारण लोग दर्शन नहीं कर पा रहे हैं. इस मंदिर से कई कथाएं जुड़ी हैं. जानकारी के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सन 1,884 में रावसाहब देवराव बाबा दिगंबर ने किया था. यह मान्यता है कि यहां आनेवाले की हर मनोकामना पूर्ण होती है. यहां स्थित शिवलिंग का महत्व किसी ज्योर्तिंलिंग से कम नहीं माना जाता है.

इस मंदिर को अकोला शहर का आराध्य देवता माना जाता है. मंदिर से जुड़ी एक कथा के अनुसार एक समय में अकोला में महाराज अकोल सिंग का राज था. जिनके नाम से इस शहर का नाम अकोला पड़ा. असदगढ़ के किले से लगकर मोरना नदी तथा उससे लगकर भगवान राजराजेश्वर का मंदिर है. उस समय यहां बस्ती नहीं बल्कि घना जंगल हुआ करता था. महाराजा अकोल सिंग की महारानी पद्मावती को संतान नहीं थी. जबकि महारानी भी भगवान शिव की परमभक्त थीं.

तभी एक महात्मा ने उन्हें बताया कि उनकी मनोकामना पूर्ण हो सकती है. इसके लिए उन्हें किले के पास स्थित स्वयंभू शिवलिंग है, वहां रात के समय अकेले जाकर भगवान भोलेनाथ का नियमित रूप से पूजन करना पड़ेगा तथा भगवान की यह आराधना तुम्हे गुप्त रूप से करनी पड़ेगी. महारानी गुप्त रूप से रोज इसी श्री राजराजेश्वर मंदिर में रात के वक्त जाकर भगवान शिव की आराधना करने लगीं. एक दिन एक प्रहरी ने महारानी को जंगल की ओर अकेले जाते देख लिया. उस प्रहरी ने महाराज को महारानी के जंगल की ओर जाने की बात बता दी. यह भी कहा कि वे नियमित रूप से जंगल की तरफ जाती हैं.

यह सुनकर महाराज के मन में शंका घर कर गयी. महाराज ने रात के वक्त महारानी का पीछा किया, महाराज के हाथ में तलवार थी. महाराज की पदचाप से महारानी को लगा कि कोई लुटेरा उनको नुकसान पहुंचाने आया है. महारानी मंदिर में पहुंची तथा वहां जल रहे दिए के प्रकाश में उन्होंने एक व्यक्ति की छाया देखी. जिसके हाथ में तलवार थी. महारानी ने अपने हृदय से भगवान को पुकारा तथा कहा कि मेरी रक्षा करो तथा मुझे अपनी शरण में ले लो. तभी वहां दिव्य प्रकाश दिखाई दिया तथा भगवान प्रकट हो गए.

उन्होंने महारानी से कहा कि हम तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हैं. मांगों तुम्हे क्या चाहिए. महारानी ने कहा हे महादेव आपके साक्षात दर्शन से मैं कृतार्थ हो गयी हूं. अब मेरे मन में कोई इच्छा बाकी नहीं है. केवल यह नश्वर देह ही शेष है. मुझे अपनी शरण में लेकर मुझे अपने शिवत्व में विलीन कर लीजिए. भगवान शंकर ने तथास्तु कहा तथा शिवलिंग दो भागों में विभाजित हो गया.

महारानी हाथ जोड़ कर शिवलिंग में समाती चली गयीं. महारानी के समाते ही शिवलिंग फिर जुड़ गया तथा पुराने स्वरूप में परिवर्तित हो गया. महाराज को बहुत पश्चाताप हुआ उन्होंने महारानी को रोकने का प्रयास किया लेकिन उनके हाथ में सिर्फ रानी की साड़ी के आंचल का छोर ही आ सका. लोगों का कहना है कि रानी की साड़ी का छोर कई वर्षों तक शिवलिंग की दरार में दिखाई देता रहा. आज भी शिवलिंग में एक पतली सी दरार दिखाई देती है. 

सभी सरकारी सूचनाओं का पालन होता है- नरेश लोहिया

इस बारे में मंदिर के एक ट्रस्टी नरेश लोहिया से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि मंदिर में महाशिवरात्रि उत्सव कार्तिक पूर्णिमा, श्रावणमास उत्सव आदि सभी त्योहार बहुत उत्साह से मनाए जाते हैं. कोरोना वायरस को लेकर मंदिर में सभी सरकारी निर्देशों का पालन किया जाता है. 

In the month of shravan the crowd used to gather in the shri rajarajeshwar temple of akola

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Published On: Jul 26, 2021 | 11:35 PM

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