आसिम मुनीर व नेपथ्य में अयूब खान (डिजाइन फोटो)
इस्लामाबाद: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना की कार्रवाई से बुरी तरह पस्त हुआ पाकिस्तान ब सैन्य शासन की ओर बढ़ता दिख रहा है। इस ऑपरेशन के दौरान पराजित होने के बाद पाकिस्तानी सेना शाहबाज शरीफ की नागरिक सरकार पर भारी पड़ रही है। यह कोई सतही बात नहीं है, बल्कि इसके पुख्ता सबूत हैं। दरअसल, पाकिस्तान के सैन्य इतिहास में एक और ऐसी हरकत हुई है, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है।
पाकिस्तानी सरकार ने अपने मौजूदा सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के सामने घुटने टेक दिए हैं। उसने जनरल मुनीर को सर्वोच्च सैन्य रैंक फील्ड मार्शल की उपाधि दी है। अब जनरल मुनीर पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक जनरल मोहम्मद अयूब खान के बाद पाकिस्तान के आर्मी इतिहास में फील्ड मार्शल बनने वाले दूसरे सेना प्रमुख बन गए हैं।
पाकिस्तानी सरकार ने मंगलवार को मुनीर को फील्ड मार्शल बनाने का ऐलान किया। उनसे पहले सिर्फ जनरल मोहम्मद अयूब खान को 1959 में यह रैंक मिली थी। लेकिन दोनों की नियुक्ति और परिस्थितियों में काफी अंतर है। इसके बावजूद कयास लगाए जा रहे हैं कि पर्दे के पीछे मुनीर अयूब खान की राह पर चल रहे हैं।
मोहम्मद अयूब खान 1958 से 1969 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे। 1958 में उन्होंने सैन्य तख्तापलट के जरिए सत्ता हथिया ली और खुद को राष्ट्रपति बना लिया। 1959 में जब वह रिटायरमेंट के के करीब थे तब उन्होंने खुद को फील्ड मार्शल का पद दे दिया। अयूब ने दावा किया कि उन्होंने पाकिस्तान के नागरिक समाज के बार-बार अनुरोध पर ऐसा किया। लेकिन इसे खुद को दिया गया सम्मान माना जाता है।
फील्ड मार्शल बनने के बाद उन्होंने सेना की कमान जनरल मूसा खान को सौंप दी और देश चलाने पर ध्यान केंद्रित किया। अयूब का सैन्य करियर विवादों से भी भरा रहा। उन्हें 1928 में भारत की पंजाब रेजिमेंट में कमीशन मिला और दूसरे विश्व युद्ध में वे असम रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर थे। लेकिन उनके कमांडर ने उन्हें कमजोर नेतृत्व के कारण हटा दिया। फिर भी, 1951 में वे पाकिस्तानी सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ बने और 1958 तक इस पद पर रहे।
शहबाज शरीफ की सरकार ने फील्ड मार्शल के तौर पर आसिम मुनीर की पदोन्नति को मंजूरी दे दी है। यह फैसला हाल ही में भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य तनाव और ऑपरेशन सिंदूर के बाद लिया गया, जिसे पाकिस्तान ने मरक-ए-हक और ऑपरेशन बनयान-उल-मरसूस के तौर पर प्रचारित किया। अयूब खान के विपरीत, मुनीर को यह रैंक नागरिक सरकार ने दी है, हालांकि दिखावे के लिए। उन्होंने इसे खुद नहीं लिया है।
पाकिस्तानी जनरल आसिम मुनीर (सोर्स- सोशल मीडिया)
दूसरा बड़ा अंतर यह है कि फील्ड मार्शल बनने के बाद अयूब आर्मी चीफ नहीं रहे, जबकि मुनीर इस रैंक के साथ आर्मी चीफ के तौर पर अपनी सेवा जारी रखेंगे। नवंबर 2024 में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने आर्मी, नेवी और एयरफोर्स चीफ का कार्यकाल तीन से बढ़ाकर पांच साल कर दिया। इसके चलते मुनीर अब 2027 तक सेवा में रहेंगे।
आसिम मुनीर का जन्म 1968 में रावलपिंडी में हुआ था। उन्हें 1986 में ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल, मंगल (पंजाब) से कमीशन मिला और उन्होंने स्वॉर्ड ऑफ ऑनर जीता। उन्होंने जापान, मलेशिया और इस्लामाबाद में सैन्य प्रशिक्षण लिया और सऊदी अरब में रहते हुए कुरान को याद किया। मुनीर ने फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट में सेवा की। उन्हें उत्तरी क्षेत्रों में ब्रिगेडियर के रूप में तैनात किया गया था। 2019 में डीजी-आईएसआई के रूप में, उन्होंने पुलवामा हमले के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे 2022 में सेना प्रमुख बने।
पाकिस्तान और भारत की सेनाएँ ब्रिटिश सैन्य परंपराओं का पालन करती हैं। फील्ड मार्शल एक पाँच सितारा रैंक है। यह आम तौर पर औपचारिक होता है। यह रैंक युद्ध के दौरान असाधारण नेतृत्व और उपलब्धियों के लिए दी जाती है। फील्ड मार्शल सेवानिवृत्ति के बाद भी सक्रिय सूची में रहता है। यानी वह अपनी वर्दी और खास बैज को जीवन भर पहन सकते हैं। उनके वाहन पर पांच सितारे लगे होते हैं और सलामी देते समय एक खास डंडे का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, इस रैंक से उन्हें अतिरिक्त कमांड पावर या सैलरी नहीं मिलती। भारत में सैम मानेकशॉ और केएम करियप्पा को यह रैंक मिली थी।
मुनीर की पदोन्नति ने कई सवाल खड़े किए हैं। कुछ लोग इसे सैन्य उपलब्धियों के लिए श्रद्धांजलि मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे सैन्य शक्ति को और मजबूत करने की कोशिश बता रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने 9 आतंकी ठिकानों को नष्ट कर दिया और पाकिस्तान की जवाबी कार्रवाई विफल हो गई। फिर भी मुनीर को उनकी कथित रणनीतिक प्रतिभा के लिए यह रैंक दी गई। यह कदम पाकिस्तान की सैन्य-राजनीतिक गतिशीलता को दर्शाता है। वहां सेना का प्रभाव हमेशा से हावी रहा है।
भारतीय सेना में अब तक सिर्फ दो अफसरों को फील्ड मार्शल का पद दिया गया है। पहला नाम सैम मानेकशॉ का है। उन्हें 1973 में फील्ड मार्शल बनाया गया था। वे 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना का नेतृत्व करने के लिए मशहूर हैं। इस युद्ध के बाद बांग्लादेश का गठन हुआ। मानेकशॉ भारत के पहले फील्ड मार्शल थे। दूसरा नाम के.एम. करिअप्पा का है। जो कि स्वतंत्र भारत के पहले सेना प्रमुख थे और उन्होंने 1947-48 के भारत-पाक युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्हें 1986 में फील्ड मार्शल का पद दिया गया था।