अमेरिकी दौरे पर बड़बोले मुनीर के बोल (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: सेनाध्यक्ष उपेंद्र द्विवेदी का हालिया बयान है कि ‘जल्द हो सकता है एक और खतरनाक युद्ध और दुश्मन जरूर किसी के साथ आएगा..’।यह बयान ऐसे समय पर आया है जब पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर अमेरिका के दौरे पर हैं और पहली बार अमेरिका की धरती से किसी सैन्य अधिकारी ने किसी देश को परमाणु हमले की धमकी दी है।हालांकि भारतीय सेना अध्यक्ष का बयान 4 अगस्त को ही आ गया था, जबकि असीम मुनीर ने भारत को यह धमकी 10 अगस्त को दी है।सभी मानेंगे कि देश के सेनाध्यक्ष का बयान कोई सियासी जुमला नहीं होता।उन्होंने अनुभव, दूरदर्शिता, सुराग एवं सूचनाओं की कसौटी पर परखकर ही यह बात कही होगी।
सेनाध्यक्ष की इस बात को नकारने का कोई ठोस तर्क उनके पास नहीं कि ऑपरेशन सिंदूर ने पूरे देश को एक सूत्र में बांध दिया और भविष्य में हमें एक निर्णायक युद्ध में जाना पड़ेगा।पाकिस्तान विगत से सबक नहीं सीखता।उसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने पाठ पढ़ाया यह * सोचना बेमानी है।पाक सेना और सरकार भारतीय सेना द्वारा नष्ट आतंकी ठिकानों को फिर से बसा चुकी है, बहावलपुर, मुरीदके, मुजफ्फराबाद वगैरह के अड्डों के पुनर्निर्माण के लिए सेना ने अपने आर्मी वेल्फेयर फंड से करोड़ों रुपये बांटे हैं।आतंकियों को फिर खड़ा कर राजस्थान, पंजाब के रास्ते घुसपैठ की भी योजना है।असीम मुनीर अपने बयानों में कहते हैं, ‘भारत सिंधु नदी पर बांध बनाएगा तो पाकिस्तान 10 मिसाइलों से उसे नष्ट कर देगा’ और ‘पाकिस्तान के अस्तित्व पर खतरा हुआ तो वे पूरी दुनिया को परमाणु युद्ध की चपेट में लेने से गुरेज नहीं करेंगे’।
मुनीर भारत के साथ सैन्य झड़प का दुस्साहसी फैसला ले सकते हैं।फिर स्थितियां ऑपरेशन सिंदूर के पार्ट 2 जारी होने की बन जाएंगी।पाकिस्तान से एक निर्णायक युद्ध हो और हम अपनी ताकत से उसे इस कदर खौफजदा कर दें कि फिर कोई पाकी हुक्मरान इस बाबत सोच भी न सके।परंतु यह भी सत्य है कि सेनाध्यक्ष के बयान के बाद आमजन को युद्ध की आशंका भयाक्रांत कर सकती है, क्योंकि युद्ध कोई भी पक्ष जीते, हारती हमेशा जनता ही है।सेनाध्यक्ष का उद्बोधन राष्ट्रवाद को पोषित करने के लिए स्वागत योग्य है पर समग्रता में देखें तो युद्ध तभी होना चाहिए, जब सभी विकल्प समाप्त हो जाएं।सेनाध्यक्ष को अपने राजनीतिकों, कूटनीतिकों पर यकीन रखना होगा।निस्संदेह मुकाबले में भारत विजयी होगा लेकिन नुकसान हमारा भी होगा।दुनिया देख रही है कि छोटे देश किस तरह दूसरों की मदद के जरिए युद्ध को लंबा खींचकर बड़े देशों को किस कदर परेशान कर रहे हैं।निर्णायक युद्ध किसी भी तरह ‘उचित’ नहीं कहा जा सकता।अरबों रुपये प्रति दिन की लागत वाली लंबी लड़ाई हमारे विकास-लक्ष्यों पर पानी फेर देगी.
अगर मौका देख चीन, बांग्लादेश पाक के साथ परोक्षतः भी आते हैं तो उत्तर-पूर्व, कश्मीर, पंजाब, राजस्थान वगैरह एक साथ कई मोर्चे खुल जाएंगे, ऐसे में सेना और उसके संसाधन बंटेंगे, लॉजिस्टिक्स की मांग और आपूर्ति में सेना को कतिपय कठिनाई पेश आएगी।इसके अलावा ऐसी स्थिति में प्रभावित राज्यों में आवाजाही बंद होने से खेती, किसानी, उद्योग ठप होंगे, तो गिरती स्थानीय अर्थव्यवस्था का असर देश पर भी पड़ेगा।नई पीढ़ी के युद्ध में साइबर और इनफॉर्मेशन वॉर हो अथवा इलेक्ट्रॉनिक और स्पेक्ट्रम युद्ध, हमारी तैयारी बढ़ाया होने के बावजूद यह ध्यान में रखना चाहिए कि दुश्मन के पास चीन की सहायता मौजूद है।
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चीन सीधे भारत-पाक के युद्ध में कब और किस रूप में खुलकर हस्तक्षेप करेगा, यह तो अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक समीकरण ही तय करेंगे पर वह भीतर ही भीतर सामरिक सहायता जैसे लॉजिस्टिक्स, उन्नत किस्म की मिसाइलें, ड्रोन इत्यादि की अबाध आपूर्ति के अलावा अपने उपग्रहों से प्राप्त सटीक खुफिया जानकारी से पाकिस्तान को मदद करता रहेगा।खुले दुश्मन से ज्यादा खतरनाक छिपा शत्रु होता है।मतलब हमें युद्ध की स्थिति में बहु-आयामी सावधानी बरतनी होगी।भले ही दुश्मन पाकिस्तान जैसा छोटा मुल्क ही क्यों न हो, हमें खूनी जंग की नौबत आने देने से बचते हुए ऐसे रास्ते निकालने चाहिए कि दुश्मन को बिना लड़े इस कदर पस्त कर दें कि वह जंग की सोचे भी नहीं.
लेख- संजय श्रीवास्तव के द्वारा