कुछ लोगों में उदारता जन्मजात होती है. वे केयर और शेयर में विश्वास रखते हैं अपने पुरुषार्थ से अर्जित धन का कुछ हिस्सा समाज, शिक्षा संस्थाओं और जरूरतमंदों को स्वेच्छा से देना चाहते हैं. फोर्ब्स एशिया की ‘हीरोज ऑफ फिलैंथ्रापी’ (Heroes of Philanthropy) सूची में इंफोसिस के सहसंस्थापक नंदन निलेकणि, डीएलएफ के मानद चेयरमैन केपी सिंह और जेरोधा के सह संस्थापक निखिल कामथ को शामिल किया गया. कुछ सफल उद्योगपतियों को अपनी शिक्षा संस्था या अल्मामैटर से लगाव रहता है.
नंदन नीलेकणि ने आईआईटी बाम्बे को 3.2 अरब रुपए का दान दिया था. केपी सिंह ने परोपकारी कार्यों के लिए रियल एस्टेट कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेचकर 7.3 अरब जुटाए. निखिल कामथ की यूट्यूब पॉडकास्ट सीरीज दर्शकों द्वारा चुनी गई चैरिटी को 1 करोड़ रुपए तक दे रही है. विदेश में ऐसे दानदाताओं की तादाद ज्यादा है. बिल गेट्स उद्योगपतियों का भोज आयोजित करते हैं जिसमें शामिल होनेवाले लोग अपनी चैरिटी की रकम का ऐलान करते हैं.
वारेन बफे का नाम भी दानदाताओं में मशहूर है. भारत में प्राचीनकाल से दानवीरों की परंपरा चली आई है. राजा बलि और कर्ण को महादानी कहा जाता है. कन्नौज का राजा हर्षवर्धन भी समय-समय पर गंगा तट पर सारी संपत्ति दान कर देता था और फिर अपनी बहन राजश्री का दिया हुआ चीवर (गेरूआ वस्त्र) पहन लेता था.
राजा दशरथ ने राम के विवाह के समय इतना दान दिया कि सारे भिक्षुक मालामाल हो गए थे. उन्हें भीख मांगने की जरूरत ही नहीं रह गई थी. इसका उल्लेख करते हुए रामचरित मानस के अयोध्याकांड में पंक्ति है- जाचक सकल अजाचक कीन्हे! राजस्थानी समाज ने देश के जिस कोने में जाकर व्यवसाय किया या धन कमाया, वहां मंदिर, धर्मशालाएं, गौशाला, स्कूल कालेज खोले, छात्रवृत्तियां दीं.
समाज को कुछ न कुछ लौटाने की भावना जिसके मन में हो वही इस तरह की चैरिटी करता है. दूसरी ओर कुछ ऐसे भी उद्योगपति होते हैं जिनकी मानसिकता दान देने की नहीं होती. लोग टाटा और अंबानी के बीच इसी आधार पर फर्क करते हैं. विदेश में उद्योगपतियों की दानशील प्रवृत्ति इसलिए भी है क्योंकि वहां लोगों का भारत के समान अपनी संतानों या परिजनों के प्रति लगाव नहीं रहता. ऐसे उद्योगपति अपनी अगली पीढ़ी के लिए धन की व्यवस्था नहीं करते.
मिलिनेयर पिता भी चाहता है कि 15 वर्ष की उम्र के बाद उसकी संतान खुद अपना खर्च उठाए. वह होटल में वेटर का काम करे, पर्यटन स्थल पर गाइड बने, लानमूवर से घास काटे और अपनी पढ़ाई का खर्च उठाए. जरूरत पड़ने पर ऐसे धनी व्यक्ति अपनी संतान को लोन देते हैं जो उन्हें लौटाना पड़ता है. भारत और विदेश का यही अंतर है. यहां लोग 7 पीढ़ी के लिए धन जमा करेंगे जबकि विदेशी उद्योगपति चैरिटी में देने के लिए उसका ट्रस्ट बना देगा.