पुरानी मतदाता सूचियां भरोसेमंद नहीं (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: निर्वाचन आयोग बिहार के बाद अब 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूचियों का 4 नवंबर से विशेष गहन पुनरीक्षण करेगा।यह 9 राज्यों छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बंगाल और 3 तीन केंद्र शासित प्रदेशों- अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप व पुड्डुचेरी में संपन्न होगी।इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को वोटर लिस्ट फ्रीज हो गई है।अब इस फ्रीज वोटर लिस्ट के आधार पर एन्यूमरेशन फॉर्म (ईएफ) छपेंगे।जिन्हें बीएलओ 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक घर-घर जाकर बांटेंगे और 9 दिसंबर को ड्रॉफ्ट वोटर लिस्ट तैयार होकर जारी होगी, जबकि फाइनल लिस्ट 7 फरवरी 2026 को जारी होगी।
जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर का यह पार्ट-2 शुरू हुआ है, उसमें 51 करोड़ मतदाता कवर होंगे।मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार के मुताबिक इस एसआईआर पार्ट-2 का उद्देश्य भी वही है, जो बिहार एसआईआर का था यानी अवैध विदेशी प्रवासियों को वोटर लिस्ट से हटाना।इसके लिए उनका जन्म स्थान जांचा जाएगा।मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा कि इस कवायद का उद्देश्य सिर्फ यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी पात्र पुरानी मतदाता सूचियां भरोसेमंद नहीं चुनाव आयोग और केंद्र सरकार का मत है कि पुरानी मतदाता सूचियों में अनेक मतदाता अब मृत हो चुके हैं, कई लोगों ने अपना स्थान बदल लिया है।साथ ही अनेक लोगों ने जालसाजी के जरिए अपने आपको मतदाता सूची में पंजीकृत करा लिया है, जबकि वह इसके पात्र नहीं हैं।साथ ही कई लोगों के नाम एक से ज्यादा जगह मतदाता सूचियों में दर्ज हैं।
मतदाता इस सूची से छूटे नहीं और कोई अपात्र मतदाता इस सूची में रह न जाए।जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह कवायद होने जा रही है, उनकी एसआईआर 2002 से 2004 के बीच की है।मुख्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक देश में पिछले 5-6 दशकों से जनसंख्या पलायन एवं प्रवासन की गति बहुत ज्यादा बढ़ी है।इसलिए अब पुरानी मतदाता सूचियां भरोसेमंद नहीं रहीं।इन कारणों से एसआईआर जरूरी हो गई है।विपक्षी दलों, गैर सरकारी संगठनों द्वारा एक बार फिर से एसआईआर को लेकर गहन आशंकाएं प्रकट की गई हैं।पहली बात तो यही कही जा रही है कि जिन राज्यों को एसआईआर पार्ट-2 के लिए चुना गया है, उनमें से ज्यादातर राज्य वे हैं जहां जल्द ही विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं।
उदाहरण के लिए तमिलनाडु, केरल, बंगाल और उत्तर प्रदेश।विपक्ष के मुताबिक यह समय चयन जानबूझकर किया गया है ताकि कुछ मतदाताओं को हटाकर चुनाव परिणामों को प्रभावित किया जा सके।विपक्ष का दूसरा आरोप यह है कि एसआईआर के नाम पर बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम बिना उचित सूचना के हटाए जा सकते हैं, विशेष रूप से दलितों, आदिवासियों, प्रवासियों और पिछड़े समुदायों के मतदाताओं के।बिहार में पहले चरण में लाखों नाम हटाए गए, जिनमें अधिकतर उन मतदाताओं के नाम थे, जो पारंपरिक रूप से कांग्रेस को मत करने वाले मतदाता थे।विपक्ष का एसआईआर पार्ट-2 को लेकर एक आरोप यह भी है कि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग की भूमिका निष्पक्ष नहीं होगी।विपक्ष के मुताबिक मौजूदा केंद्र सरकार और इलेक्शन कमीशन के बीच साठगांठ हो सकती है और इसके चलते यह एसआईआर पार्ट-2 राजनीतिक दखलंदाजी का माध्यम बन सकता है।
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अगर पिछली एसआईआर सूची से किसी मतदाता के नाम की पुष्टि नहीं होगी, उस स्थिति में पुष्टि के लिए दस्तावेज मांगे जाएंगे, जो अलग-अलग श्रेणी के 12 दस्तावेज होंगे।विपक्ष का आरोप है कि दस्तावेज के नाम पर बहुत सारे मतदाताओं को उनके अधिकार से वंचित किया जा सकता है।जैसे बिहार में करने की कोशिश की गई थी।मगर बाद में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के कारण बचाव हो सका, क्योंकि वर्तमान में जो पहचानपत्र लगभग हर नागरिक के पास है, उस आधार कार्ड को मतदान के लिए उचित दस्तावेज मान लिया गया।विपक्ष का एक आरोप यह भी है कि एसआईआर के बहाने सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट 2019 की प्रक्रिया दबे-छुपे रूप से लागू की जा रही है।क्योंकि मतदाता सूची से लोगों को निकालने का मकसद उन्हें गैरनागरिक घोषित करना होगा।इसी संदर्भ में विपक्ष का कहना है कि चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट नहीं किया कि बिहार में आखिर कितने अवैध मतदाता मिले।
लेख- लोकमित्र गौतम के द्वारा