(डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने ‘चाय पे चर्चा’ का शानदार सिलसिला शुरू किया था। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के माहौल में भी उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं को चाय पे चर्चा आयोजित कर जनमत साधने का प्रयत्न करना चाहिए। किसी भी चौराहे पर चाय की टपरी के किनारे तमाम चौबे, चौहान, चौरसिया जमा हो जाएं और चाय पे चर्चा शुरू कर दें।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, चाय चाहे लिप्टन की हो या ब्रुकबांड की, टाटा हो या पताका, सोसाइटी हो या गिरनार, बड़ी चाहत के साथ चुस्की लेकर पी जाती है। गर्म चाय की प्याली का आनंद ही कुछ अलग है। कुछ लोग चेयर पर तो कुछ चारपाई पर बैठकर चाय पीते हैं। हमारे देश में ऐसे भी पुरातनपंथी हुए हैं जो चीनी मिट्टी के कप में चाय न पीकर पीतल या स्टील के ग्लास में चाय पीते हैं। वैसे मिट्टी के कुल्हड़ की चाय में सोंधापन होता है। नफासत पसंद लोगों को टी बैग वाली चाय अच्छी लगती है। कुछ लोग ब्लैक टी या ग्रीन टी पीते हैं। ब्लैक टी में एंटीआक्सीडेंट रहते हैं जो बीमारियां दूर भगाते हैं। बगैर दूध और चीनी की चाय कड़वी लगती है लेकिन फायदेमंद है।’’
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हमने कहा, ‘‘घर आए मेहमान को चाय नहीं पिलाओ तो वह चिढ़ जाता है। चाय पीने से उदास आदमी के चेहरे पर चमक आ जाती है। आमतौर पर विधानसभा सत्र के पूर्व सरकार विपक्ष को टी पार्टी देती है लेकिन विपक्ष उसका बहिष्कार करता है। वैसे चाय से रिश्ते जुड़ने में मदद मिलती है। आपने राजेश खन्ना और टीना मुनीम पर फिल्माया गीत सुना होगा- शायद मेरी शादी का खयाल दिल में आया है, इसीलिए मम्मी ने मेरी तुझे चाय पे बुलाया है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, यदि आपको ‘हाई टी’ का निमंत्रण मिले तो समझ जाइए कि चाय के साथ भरपूर नाश्ते का भी इंतजाम है। चाय पीते समय चिंतन से चुगली तक सभी लोग करते हैं। कितने ही लोग बेड टी पीने के बाद ही टॉयलेट जाते हैं। जगह-जगह चाय की दूकानें देखकर लगता है कि इन दिनों चाय का चलन कुछ ज्यादा ही हो गया है। एयरपोर्ट की चाय 250 रुपए की और फुटपाथ की चाय 8 रुपए की होती है।’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा