भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी अलग क्यों हुए?(सौ.सोशल मीडिया)
Lord Vishnu – Lakshmi Pauranik Katha: हिंदू धर्म में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को सृष्टि के संतुलन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। दोनों का साथ आदर्श दांपत्य का उदाहरण है। इसके बावजूद पुराणों में एक प्रसंग मिलता है, जब माता लक्ष्मी कुछ समय के लिए वैकुंठ छोड़कर पृथ्वी लोक चली गई थीं। यह घटना प्रतीकात्मक मानी जाती है और इसके पीछे गहरा धार्मिक संदेश छिपा है।
भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के अलग होने का मुख्य कारण पौराणिक कथाओं में विष्णु के क्रोध और लक्ष्मी के अहंकार या ध्यान भटकने को बताया गया है जो इस प्रकार है-
एक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को एक बार क्रोध में आकर श्राप दिया था, क्योंकि लक्ष्मी जी उनकी बातों पर ध्यान नहीं दे रही थीं और एक अश्व (घोड़े) के सौंदर्य में खोई थीं। इस अवहेलना से नाराज़ होकर विष्णु जी ने उन्हें अश्वी (घोड़ी) बनने का श्राप दिया और पृथ्वी पर जाने को कहा।
एक अन्य प्रसंग में, लक्ष्मी जी ने एक बगीचे और फूलों को मामूली समझा, जिससे उनका अहंकार झलका। इसे देखकर विष्णु जी नाराज़ हुए और उन्हें गरीब माली के घर जन्म लेने का श्राप दिया ताकि वे धन के वास्तविक अर्थ और मेहनत को समझ सकें।
विष्णु के श्राप के कारण लक्ष्मी जी को गरीब माली की बेटी बनकर रहना पड़ा, जहाँ उन्हें धन का अभाव झेलना पड़ा और मेहनत का महत्व समझ आया।
इस अनुभव से लक्ष्मी जी को आत्म-ज्ञान प्राप्त हुआ कि धन केवल ऐश्वर्य नहीं, बल्कि धर्म और कर्तव्य से जुड़ा है। उन्होंने समझा कि सच्चा सुख कर्म और भक्ति से मिलता है।
जब श्राप की अवधि पूरी हुई, तब लक्ष्मी जी ने अपने असली रूप में वापसी की और वैकुंठ लौट गईं, जिससे यह सीख मिली कि भौतिक धन के साथ-साथ धर्म और रिश्तों का संतुलन भी ज़रूरी है।
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संक्षेप में, यह कथा धन और कर्तव्य के बीच संतुलन, रिश्तों के महत्व और विनम्रता के गुणों को दर्शाती है, और यह बताती है कि कैसे कठिनाइयों से व्यक्ति आत्म-ज्ञान प्राप्त कर सकता है।