जानिए द्वापर युग में पांडवों ने क्यों रखा था 'अनंत चतुर्दशी का व्रत', और जानें इस व्रत की महिमा
सनातन धर्म में ‘अनंत चतुर्दशी’ (Ananta Chaturdashi) का विशेष महत्व है और यह व्रत हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन रखा जाता है।
इस साल अनंत चतुर्दशी का व्रत 17 सितंबर 2024 को रखा जाएगा और इसी दिन गणेश विसर्जन भी किया जाएगा।
ज्योतिषयों की मानें तो, अनंत चतुर्दशी का व्रत प्राचीन काल से रखा जा रहा है महाभारत के दौरान पांडवों ने भी अपना राज्य वापस पाने के लिए यह व्रत रखा था। अगर आप भी अनंत चतुर्दशी व्रत रख रहे हैं तो पूजा के दौरान व्रत कथा जरूर पढ़ें।
क्या है अनंत चतुर्दशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सुमंत नामक ऋषि की पत्नी दीक्षा ने एक पुत्री को जन्म दिया। उस पुत्री का का सुशीला रखा गया।
लेकिन कुछ समय बात ही सुशीला की मां दीक्षा का देहांत हो गया और बच्ची के पालन पोषण के लिए ऋषि ने तय किया कि वे दूसरी शादी करेंगे।
ऋषि ने दूसरा विवाह कर लिया। लेकिन वह महिला स्वभाव से कर्कश थी।
सुशीला बड़ी हो गई और उसके पिता ने कौण्डिनय नामक ऋषि के साथ उसका विवाह कर दिया। ससुराल में भी सुशीला को सुख नहीं था। कौण्डिन्य के घर में बहुत गरीबी थी। एक दिन सुशीला और उसके पति ने देखा कि लोग अनंत भगवान की पूजा कर रहे हैं।
पूजन के बाद वे अपने हाथ पर अनंत रक्षासूत्र बांध रहे हैं। सुशीला ने यह देखकर व्रत के महत्व, पूजन के बारे में पूछा।
इसके बाद सुशीला ने भी व्रत करना शुरू कर दिया। सुशीला के दिन फिरने लगे और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा।
लेकिन सुशीला के पति कौण्डिन्य को लगा कि सब कुछ उनकी मेहनत से हो रहा है। एक बार अनंत चतुर्दशी के दिन, जब सुशीला अनंत पूजा कर घर लौटी तक उसके हाथ में रक्षा सूत्र बंधा देखकर उसके पति ने इस बारे में पूछा।
सुशीला ने विस्तारपूर्वक व्रत के बारे में बताया और कहा कि हमारे जीवन में जो कुछ भी सुधार हो रहा है, वह अनंत चतुर्दशी व्रत का ही नतीजा है।
कौण्डिन्य ऋषि ने कहा कि यह सब मेरी मेहनत से हुआ है और तुम इसका पूरा श्रेय भगवान विष्णु को देना चाहती हो। ऐसा कहकर उसने सुशीला के हाथ से धागा उतरवा दिया।
भगवान इससे नाराज हो गए और कौण्डिन्य पुन: दरिद्र हो गया। फिर एक दिन एक ऋषि ने कौण्डिन्य को बताया कि उसने कितनी बड़ी गलती की है। कौण्डिन्य से उसने उपाय पूछा।
ऋषि ने बताया कि लगातार 14 वर्षों तक यह व्रत करने के बाद ही भगवान विष्णु तुम पर प्रसन्न होंगे। कौण्डिन्य ने ऋषिवर के बताए मार्ग का अनुसरण किया और सुशीला व पूरे परिवार की आर्थिक स्थित सुधर गई।
ऐसा कहा जाता है कि वनवास जाने के बाद पांडवों ने भी अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा था, जिसके बाद उनके सभी कष्ट मिट गए थे और उन्हें कौरवों पर विजय मिली थी। यह व्रत करने के बाद सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के दिन भी सुधर गए थे।