लंबित आपराध के चलते धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने से नहीं रोक सकते
Rajasthan High Court Decision: राजस्थान के उच्च न्यायालय के समक्ष एक ऐसा मामला सामने आया है जहां पर एक व्यक्ति को किसी केस के चलते विदेश यात्रा पर जाने से नहीं रोकने की बात सामने आई है। कोर्ट ने कहा कि किसी अभियुक्त को लंबित आपराधिक मामले के कारण धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने से नहीं रोका जा सकता। ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन होगा। इसी आधार पर न्यायालय ने उसे दो महीने की छूट दी।
न्यायालय ने उसकी याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि लंबित आपराधिक मामले के कारण धार्मिक उद्देश्यों के लिए विदेश यात्रा की अनुमति देने से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन है। अदालत ने कहा कि
मामले पर माई लॉर्ड के द्वारा कहा गया कि वह हज यात्रा के लिए जाना चाह रहा है तो इसके लिए हम मना नहीं कर सकते है इसी आधार पर राजस्थान उच्च न्यायालय ने बुधवार को घरेलू हिंसा के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत एक अभियुक्त को धार्मिक अनुष्ठानों के लिए मक्का-मदीना जाने की अनुमति दे दी। इसके साथ ही, न्यायालय ने अभियुक्त के हज और उमरा जैसे धार्मिक अनुष्ठान करने के आवेदन को स्वीकार कर लिया, जिसमें उसने विदेश जाने के लिए दो महीने की छूट मांगी थी।
न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड की पीठ ने सभी अधीनस्थ न्यायालयों को न्यायिक निर्देश जारी करते हुए कहा कि जब भी कोई अभियुक्त विदेश यात्रा के लिए आवेदन प्रस्तुत करे, तो अनुमति देने/न देने का स्पष्ट आदेश पारित किया जाना चाहिए, ताकि पासपोर्ट प्राधिकरण को उस पर उचित निर्णय लेने में मदद मिल सके।
कानून पर रिपोर्टिंग करने वाली एक वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने अपने फैसले में कहा, “इस न्यायालय ने कई मौकों पर देखा है कि स्पष्ट और विशिष्ट आदेश के अभाव में, पासपोर्ट प्राधिकरण उचित निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होता है। इसलिए, सभी अधीनस्थ न्यायालयों से अपेक्षा की जाती है कि जब भी कोई अभियुक्त विदेश जाने की अनुमति के लिए ऐसा आवेदन प्रस्तुत करे, तो पासपोर्ट प्राधिकरण के मन में किसी भी प्रकार की उलझन से बचने के लिए वे स्पष्ट और विशिष्ट आदेश पारित करें।”
दरअसल, कोटा निवासी याचिकाकर्ता मोहम्मद मुस्लिम खान पर आईपीसी की धारा 498-ए और 406 के तहत मुकदमा चल रहा है। जब उसने अदालत से हज और उमराह के लिए मक्का-मदीना जाने की अनुमति मांगी, तो निचली अदालत और भारतीय पासपोर्ट प्राधिकरण, दोनों ने तकनीकी आधार पर उसका आवेदन खारिज कर दिया। इसके बाद, आरोपी ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सरकारी एजेंसी द्वारा की गई कार्रवाई को याचिकाकर्ता के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा कि उपरोक्त प्रावधानों के तहत यदि किसी पर कोई आपराधिक मामला लंबित है तो इस आधार पर धार्मिक उद्देश्यों (हज, उमराह जियारत) के लिए विदेश यात्रा की अनुमति से इनकार नहीं कर सकते हैं।
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इसके साथ ही, उच्च न्यायालय ने आरोपी को दो धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए सशर्त दो महीने की मोहलत दी। न्यायालय ने कहा कि उसे 30.09.2025 को या उससे पहले भारत लौटना होगा और लौटने के बाद, उसे मुकदमे में भाग लेने के लिए निचली अदालत में पेश होना होगा। हाईकोर्ट ने कहा कि उन्हें इस अदालत के साथ-साथ निचली अदालत में भी इस बारे में हलफनामा देना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा है कि वह मक्का-मदीना के अलावा किसी और जगह नहीं जाएंगे।