मनसे की खातिर 'आघाड़ी' की बलि
मुंबई: ठाकरे बंधुओं के साथ आने की अटकलों के कारण महाराष्ट्र के राजनीति में लगातार गर्माहट बनी हुई है। एक तरफ साथ आने का प्रस्ताव देने के बाद राज ठाकरे ने रहस्यमयी चुप्पी साध ली है। लेकिन उनकी पार्टी के नेता संदीप देशपांडे गड़े मुर्दे उखाड़ कर लगातार युति में खटास डालने की कोशिश कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे (यूबीटी) के नेता खासकर संजय राऊत और आदित्य ठाकरे, राज के साथ युति को लेकर बहुत ज्यादा आशान्वित हैं।
राज से युति को लेकर संजय राऊत ने शनिवार को कहा कि महाराष्ट्र में सिर्फ दो सियासी दल और नेता सम विचारों वाले हैं। एक है उद्धव ठाकरे और उनकी शिवसेना तो वहीं दूसरी राज और उनकी मनसे है। राऊत की इस सकारात्मकता के बाद ऐसे कयास लगाए जाने लगे हैं कि मनसे के लिए उद्धव, ‘आघाड़ी’ की भी बलि ले सकते हैं। अर्थात विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी (मविआ) भी छोड़ सकते हैं।
विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पार्टी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा था। मराठी भाषी लोगों से सहानुभूति का बड़ा लाभ मिलने की उम्मीद लगा रहे उद्धव की पार्टी यूबीटी के केवल 20 उम्मीदवार ही चुनाव जीत पाए थे। माना जा रहा है कि यूबीटी, मनसे और शिवसेना (शिंदे गुट) के बीच हुए मराठी वोटों का विभाजन इसकी वजह बनी। इसी बीच महेश मांजरेकर के पॉडकास्ट पर साक्षात्कार के दौरान राज ने साथ आने का प्रस्ताव रखकर उद्धव और यूबीटी के नेताओं में नई उम्मीद का संचार कर दिया। इसी उम्मीद से उद्धव और उनकी पार्टी के नेताओं के सुर बदल गए हैं।
सीट बंटवारे पर बड़ा बयान
राऊत ने शनिवार को एक साक्षात्कार के दौरान बीजेपी पर हमला बोलने के साथ-साथ मनसे को एक संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि बीजेपी की नीति रही है कि जो हमारा है वह हमारा है लेकिन जो तुम्हारा है वह भी हमारे बाप का है। बीजेपी की इसी नीति के वजह से हम अलग हुए थे। ऐसा कहते हुए राऊत ने आगे कहा कि हमारी दूसरों का छीनने की नीति कभी नहीं रही है। हमारे यहां कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है। उद्धव ठाकरे सभी को सम्मान देते हैं। सभी के साथ सम्मान पूर्वक चर्चा करके सीटों का बंटवारा किया जाता है। ऐसा हमने लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान मविआ में सीटों के बंटवारे के मामले में हमने किया था।
प्लान बी पर मंथन
फिलहाल, राज और उद्धव के गठबंधन का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका जवाब तो आने वाला वक्त ही देगा। लेकिन मुंबई महानगर पालिका एवं अन्य स्थानीय निकायों के आगामी चुनावों की पृष्ठभूमि में फिलहाल दोनों पार्टियों में प्रमुख नेताओं के साथ बैठकों का दौर तेज हो गया है। शुक्रवार की रात उद्धव ने अपनी पार्टी के सांसदों, विधायकों एवं अन्य प्रमुख नेताओं के साथ जहां बांद्रा-पश्चिम स्थित होटल ताज लैंड्स में बैठक और डिनर डिप्लोमेसी की तो वहीं राज की मनसे की केंद्रीय समिति की लगातार बैठकें करके चुनावी रणनीति तय कर रही है। केंद्रीय समिति ने 24 जून तक खासकर मुंबई में मनसे के प्रभाव एवं जीत की संभावनाओं वाले मनपा चुनाव क्षेत्रों को ए+ श्रेणी देकर चिन्हित करने का लक्ष्य रखा है। इसी तरह शुक्रवार की बैठक में अपने सांसदों एवं विधायकों को आगामी मानसून सत्र के दौरान सत्तारूढ़ दलों को घेरने का मंत्र दिया तो वहीं मुंबई के सभी 227 वार्डों में अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी करने का निर्देश भी दिया। ऐसा सीट बंटवारे पर मनसे तथा मविआ में कांग्रेस व शरद पवार की राकां पर दबाव की रणनीति के तहत किया गया है।
दो सांसद व एक विधायक ने काटी कन्नी
मनसे के साथ यूबीटी की युति के लिए यूबीटी के प्रमुख नेताओं की सकारात्मकता की एक वजह नेताओं का लगातार साथ छोड़ना भी बताया जा रहा है। उद्धव अपने कुनबे को समेटने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं लेकिन एक एक करके उनके विश्वसनीय साथी उनका साथ छोड़ रहे हैं। ऐसा शुक्रवार की बैठक में भी देखने को मिला। बैठक में विधायक सिद्धार्थ खरात, आदित्य ठाकरे, कैलाश पाटिल, बाबाजी काले, सुनील शिंदे, नितिन देशमुख, भास्कर जाधव, राहुल पाटिल, महेश सावंत, बाला नर, अंबादास दानवे, सुनील प्रभु, विलास पोतनिस, गजानन लवटे, अनिल परब, और मिलिंद नार्वेकर तो उपस्थित थे लेकिन सुनील राऊत व दिलीप सोपल कन्नी काट गए। इसी तरह सांसद संजय बंडू जाधव, अरविंद सावंत, प्रियंका चतुर्वेदी, अनिल देसाई, भाऊसाहेब वाघचौरे बैठक में पहुंचे थे। लेकिन ओमराजे निंबालकर, राजाभाऊ वाजे, नागेश पाटिल आष्टीकर और खुद संजय राऊत नदारद रहे. उद्धव गुट को ऐसा लगता है कि यदि राज फिर से साथ आते है तो पार्टी में मची भगदड़ पर ब्रेक लगेगी और उप मुख्यमंत्री शिंदे की शिवसेना को इसका सर्वाधिक नुकसान होगा।