प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोशल मीडिया )
Pune Municipal Corporation Election: पुणे महानगर पालिका (PMC) चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने का अंतिम दिन किसी हाई-वोल्टेज ड्रामा से कम नहीं रहा। जैसे-जैसे घड़ी की सुइयां नामांकन के अंतिम समय की ओर बढ़ीं, शहर के राजनीतिक समीकरण पल-पल बदलते नजर आए।
टिकट वितरण से उपजे असंतोष ने लगभग हर प्रमुख दल के नेताओं के पसीने छुड़ा दिए हैं। सबसे बड़ी उथल-पुथल भाजपा के खेमे में दिखी, जहाँ नाराज पूर्व नगरसेवकों ने ‘बगावत’ का झंडा बुलंद करते हुए पाला बदल लिया।
पुणे की राजनीति में इस बार सबसे बड़ा फायदा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजीत पवार गुट) उठाती दिख रही है। भाजपा द्वारा सीधे ‘एबी फॉर्म’ बांटे जाने के बाद जिन पुराने चेहरों को नजरअंदाज किया गया, उन्हें अजीत पवार ने तुरंत अपनी पार्टी में शामिल कर लिया।
प्रमुख नामों में शंकर पवार, संदीप जरहाड़ और सुनीता गलांडे शामिल हैं, जिन्होंने भाजपा छोड़ राकांपा का दामन थाम लिया है। बाणेर-बालेवाड़ी क्षेत्र में बड़ा झटका देते हुए भाजपा के कद्दावर नगरसेवक अमोल बालवडकर ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है, क्योंकि उनकी जगह लहू बालवडकर को टिकट दिया गया। इसके अलावा, आरपीआई के सिद्धार्थ धेंडे और भाजपा के बंडू ढोरे ने भी पाला बदलकर चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है।
भाजपा के गढ़ माने जाने वाले कोथरूड में बाहरी उम्मीदवारों को तरजीह दिए जाने से स्थानीय कार्यकर्ताओं में भारी आक्रोश देखा गया। पार्टी के निष्ठावान नेता जैसे माधुरी सहस्रबुद्धे, योगेश समेल और राजेश येनपुरे की नाराजगी ने वरिष्ठ नेतृत्व की नींद उड़ा दी।
स्थिति को संभालने के लिए भाजपा ने रातों-रात ‘डैमेज कंट्रोल’ शुरू किया और कुछ उम्मीदवारों के नाम तक बदल दिए। हालांकि, नारेबाजी और सोशल मीडिया पर कार्यकर्ताओं का गुस्सा अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा है।
हडपसर में पूर्व विधायक महादेव बाबर की ‘घर वापसी’ ने चर्चाओं को गर्म कर दिया है। बाबर, जो हाल ही में राकांपा में चले गए थे, वहां मौका न मिलने पर फिर से उद्धव ठाकरे की शिवसेना में लौट आए हैं। उनके बेटे भी चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। वहीं, कोंढवा-येवलेवाड़ी में नगरसेविका संगीता ठोसर के भाजपा में जाने के बाद विधायक योगेश टिलेकर के विरोध के कारण अब वे नए विकल्पों की तलाश में हैं।
वार्डवार नामांकन की स्थिति: भवानी पेठ और हडपसर में सबसे ज्यादा दावेदार नामांकन के आंकड़े बताते हैं कि इस बार मुकाबला बेहद कड़ा होने वाला है।
| प्रभाग / क्षेत्र | नामांकन संख्या |
|---|---|
| भवानी पेठ | 224 |
| हडपसर–मुंढवा | 213 |
| धनकवडी–सहकारनगर | 183 |
| येरवाड़ा–कलस–धानोरी | 182 |
| कोथरूड–बावधन | 174 |
| कसबा–विश्रामबाग–वाडा | 160 |
फिलहाल शहर में त्रिकोणीय संघर्ष के स्पष्ट आसार हैं। हालांकि, असली तस्वीर 2 जनवरी के बाद साफ होगी जब नामांकन वापस लेने की समय सीमा समाप्त होगी।
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यदि नाराज नेता निर्दलीय या अन्य दलों के बैनर तले डटे रहे, तो यह स्थापित दलों के लिए बड़ी चुनौती होगी। पुणे की जनता अब यह देख रही है कि ‘निष्ठा’ और ‘सत्ता’ की इस लड़ाई में जीत किसकी होती है।