नागपुर रेलवे स्टेशन (फाइल फोटो)
नवभारत, नागपुर: मेरी स्थापना 15 जनवरी 1925 को ब्रिटिश शासन के तत्कालीन गवर्नर सर फ्रैंक ने की थी। आज करोड़ों का मूल्य रखने वाले मेरे इस आंगन यानी करीब 30 एकड़ की जमीन को खैरागड़ के राजा ने ब्रिटिश सरकार को मात्र 1 रुपए में बेची थी। मेरी इस ऐतिहासिक इमारत के लिए सावनेर से बलुआ पत्थर लाये गये थे। मैं अपने 100वें वर्ष में प्रवेश कर चुका हूं।
अगर मैं यह कहूं कि मैं बूढ़ा होता रहा था लेकिन केन्द्र सरकार और रेलवे मंत्रालय द्वारा पिछले 25 वर्षों में मेरी अहमियत को और अधिक बढ़ाकर एक बार फिर मुझे जवानी की ओर बढ़ा दिया गया है। जल्द ही एक बार फिर मेरे नैननक्श यात्रियों को आकर्षित करेंगे। मेरा जीर्णोद्धार हो रहा है और मैं फिर से जवां हो रहा हूं।।।।
यूं तो मेरा इतिहास 1864 से शुरू होता है लेकिन वर्ष 2000 से अचानक मेरे प्लेटफॉर्म से रवाना होने वाली ट्रेनें बढ़ा दी गईं। पिछले 100 वर्षों में मेरे आंगन में छापे वाली आरक्षण टिकट से लेकर अब कम्प्यूटरीकृत टिकट काउंटर शुरू हो गया है। किसी समय मात्र 1 रुपये में मिली जमीन पर आज 489 करोड़ की लागत से विश्व स्तरीय स्टेशन तैयार हो रहा है।
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मुझे इस बात की भी बहुत खुशी है कि मैं देश के पहले ऐसे शहर में स्थापित हूं जहां 2-2 वर्ल्ड क्लास स्टेशन बनाये जा रहे हैं। जी हां, मेरे साथ मेरे छोटे भाई अजनी स्टेशन को भी करीब 300 करोड़ की लागत से नये रूप में संवारा जा रहा है। पिछले 25 वर्षों में अपने आंगन में कई बदलाव देखे। विशाल पार्किंग और उसके बीच भारतीय रेल के इतिहास का गवाह बुलंद इंजन। पश्चिम भाग के साथ पूर्वी भाग में भी टिकट काउंटर और विभिन्न सुविधाएं।