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अजीबोगरीब! विभाग के अनुसार पिता और पुत्र की जाति अलग-अलग, HC का केंद्र सरकार को नोटिस

जाति वैधता प्रमाणपत्र जांच समिति की कार्यप्रणाली को लेकर लगातार आपत्ति जताई जाती रही है। यहां तक कि हाई कोर्ट में इस विभाग के खिलाफ कई याचिकाएं दायर हैं। विभाग की अजीबोगरीब कार्यप्रणाली का आलम यह है कि विभाग ने पिता को तो जाति वैधता प्रमाणपत्र दिया है, किंतु पुत्र क्रिश कुम्भारे को जाति वैधता प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया। जिसकी वजह से उसे मजबूरन हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है।

  • By शुभम सोनडवले
Updated On: Sep 16, 2024 | 06:00 AM

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ

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नागपुर. जाति वैधता प्रमाणपत्र जांच समिति की कार्यप्रणाली को लेकर लगातार आपत्ति जताई जाती रही है। यहां तक कि हाई कोर्ट में इस विभाग के खिलाफ कई याचिकाएं दायर हैं। विभाग की अजीबोगरीब कार्यप्रणाली का आलम यह है कि विभाग ने पिता को तो जाति वैधता प्रमाणपत्र दिया है, किंतु पुत्र क्रिश कुम्भारे को जाति वैधता प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया। जिसकी वजह से उसे मजबूरन हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है।

याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा विभाग, एसटी जाति प्रमाणपत्र जांच समिति और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, एजुकेशन एंड रिचर्स को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने को कहा है। सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि हाई कोर्ट की ओर से रिट याचिका 597/2021 पर कोर्ट द्वारा 7 नवंबर 2023 को फैसला सुनाया गया। जिसके अनुसार पिता को जाति वैधता प्रमाणपत्र प्रदान किया गया।

याचिकाकर्ता पर कड़ी पहल नहीं

सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि न्यायिक फैसला होने के बावजूद बिना संज्ञान लिए याचिकाकर्ता को वैधता प्रमाणपत्र देने से इनकार किया गया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई भी कड़ी पहल नहीं करने के आदेश दिए। उल्लेखनीय है कि पिता को भी पहले जाति वैधता प्रमाणपत्र देने से इनकार किया गया था। जिसकी वजह से उन्होंने भी हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी। जाति वैधता प्रमाणपत्र जांच समिति ने पिता की जाति हलबा होने से साफ इनकार करते हुए 3 नवंबर 2020 को प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया था। रिट याचिका में पिता का दावा था कि उसके पुरखे अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत हलबा जाति में आते हैं। जिसके लिए 29 जून 1987 का जनजाति का प्रमाणपत्र भी प्रदान किया गया।

यह भी पढ़ें: हाई कोर्ट ने शिक्षा विभाग को लगाई फटकार, पूछा- क्यों बदले RTE के नियम

समिति का गलत निर्णय

पिता की रिट याचिका पर कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि समिति की ओर से गलत निर्णय लिया गया है। कार्यवाही के अभिलेखों का अवलोकन करने का हवाला देते हुए कोर्ट का कहना था कि हलबा या हलबी को अनुसूचित जनजाति आदेश की प्रविष्टि संख्या 19 के अनुसार दर्शाया गया है। इन्हें सामान्य रूप से एक दूसरे के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग किया जाता है। याचिकाकर्ता द्वारा भरोसा किए गए संविधान-पूर्व युग के कुछ दस्तावेजों में ‘हल्बी’ की प्रविष्टियां पाई जाती हैं। प्रविष्टियां स्थानीय भाषा में हैं तथा मामूली अंतर महत्वपूर्ण नहीं होगा।

यह भी पढ़ें: HC ने निजी स्कूलों को सशर्त छूट देने संबंधी सरकार की अधिसूचना किया खारिज, RTE में संशोधन को बताया असैंवधानिक

यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि याचिकाकर्ता का अपने पूर्ववर्तियों के साथ संबंध जैसा कि वंश वृक्ष में दर्शाया गया है, विजिलेन्स सेल द्वारा गंभीरता से विवादित नहीं है। जैसा कि दर्शाया गया है, उसके दादा का नाम गणपत है। यह देखा गया है कि पुराने दस्तावेजों में दर्शाई गई प्रविष्टि गणपति है। विजिलेन्स सेल रिपोर्ट के उत्तर में याचिकाकर्ता ने स्पष्ट किया है कि गणपत तथा गणपति एक ही व्यक्ति हैं। फिर भी विभाग इसे मानने के लिए तैयार नहीं है।

Caste of father and son is different hc issues notice to central government

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Published On: Sep 16, 2024 | 06:00 AM

Topics:  

  • Bombay High Court
  • Central Government

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