गणेशोत्सव (सौ. सोशल मीडिया )
Nagpur News: गणेशोत्सव को लेकर घर-घर में जोर-शोर से तैयारियां चल रही हैं। 27 अगस्त को शहर के घर-घर में ‘गणपति बप्पा मोरया’ की गूंज रहेगी जिसकी वजह से बप्पा की रंग-बिरंगी और डिजाइनर मूर्तियों से चितारओली समेत शहर के विविध स्थानों पर गुलजार हो गया है। आकार के आधार पर 500 से 10,000 रुपये तक की मूर्तियां हैं।
गणेशजी की मूर्तियों के साथ पूजा से संबंधित सामग्री लेने के लिए भी बाजारों में रौनक बढ़ गई है। इसके साथ ही साथ मार्केट में एक गणपति को विराजित करने के लिए एक से बढ़कर कार्डबोर्ड और आकर्षक रंग-बिरंगी लाइटिंग से बने सिंहासन की जगमगाहट देखते ही बनती है। वहीं मूर्तिकार बड़ी मूर्तियों को अंतिम रूप देने के साथ उसे संवारने के लिए दिन-रात जुटे हुए हैं।
मूर्तियों को कलर लगाकर फिनिशिंग का कार्य तेजी से शुरू है लेकिन इस बार महंगे हुए रॉ-मटेरियल के कारण बढ़ी महंगाई ने गणपति बप्पा को भी नहीं छोड़ा। पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष बप्पा की मूर्ति की कीमत में 10 से 15 प्रश की तेजी आई है। मिट्टी की छोटी से छोटी मूर्ति के दाम भी 500 रुपये से ऊपर बताये जा रहे हैं। ढाई से 3 फुट से ऊपर की मूर्तियों की कीमतें 5,000 से 6,000 रुपये तक बताई जा रही हैं।
मूर्तिकारों के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष महंगाई बढ़ने से मूर्ति की लागत बढ़ गई है। मालभाड़ा बढ़ गया है जो मिट्टी हमें पिछले 3 से 4 वर्षों पहले तक 4 से 5 हजार रुपए प्रति ट्रॉली मिल जाती थी वह अभी 9,000 रुपए प्रति ट्रॉली आ रही है। इसी तरह अन्य सामग्री भी महंगी हो गई है। ऐसे में प्रतिमाओं की कीमतें तो बढ़ेंगी ही। प्रतिमाओं की लागत बढ़ने की वजह से दाम बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। लोगों को फिर भी समझाना मुश्किल है. मिट्टी के साथ-साथ रंग, धान, भूसा, पैरा लकड़ी, बारदाना, ब्रश, गोंद, संजीरा जैसी मूर्तियों में उपयोग होने वाली वस्तुओं की कीमतों में भी काफी अधिक बढ़ोतरी हुई है। पहले की तुलना में माल भाड़ा बहुत अधिक बढ़ गया है।
ये भी पढ़ें :- भारी बारिश भी नहीं रोक पायी मनपा कर्मचारियों का आंदोलन, प्रशासन के खिलाफ जमकर बोला हल्ला
मूर्तियों के विक्रेता बताते हैं कि मिट्टी की गणपति की मूर्तियों के लिए पेण और अमरावती बहुत अधिक मशहूर है। अमरावती में फजलपुरा, एमआईडीसी व अन्य 2-3 जगहों पर बड़ी संख्या में मूर्तियां बनाई जाती हैं। यहां की मूर्तियां काफी आकर्षक रहती हैं। इसके साथ ही 20 किलोमीटर आगे कारसगांव में प्योर मिट्टी की मूर्तियां बनाई जाती है। यहां के मिट्टी की मूर्तियों की फिनिशिंग देखते बनती है। यहां के गणपति की मूर्तियां पीओपी को टक्कर देती हैं। पीओपी की मूर्तियों से कहीं कम नहीं लगती। पुणे, मुंबई, औरंगाबाद और हैदराबाद में प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां ही अधिक बनती हैं।