टीम इंडिया की हार (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: लॉर्ड्स की पिच के बीच में मोहम्मद सिराज, निराश व हताश उकडूं बैठ गए।उन्होंने ऑफ-स्पिनर शोएब बशीर की गेंद पर बैकफुट पर जाकर परफेक्ट रक्षात्मक शॉट खेला था, लेकिन गेंद लुढ़कती हुई उनके स्टंप्स से जा टकराई और इसी के साथ तीसरे टेस्ट के अंतिम सत्र में भारत की उम्मीदों का भी अंत हो गया।इंग्लैंड ने इस टेस्ट को 22 रन से जीतकर पांच मैचों की श्रृंखला में 2-1 की बढ़त बना ली।ओली पोप व इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स सिराज को दिलासा देने के लिए दौड़े और उन्हें उनके पैरों पर खड़ा किया, जिसे देखकर 20 साल पुरानी एजबेस्टन की घटना याद आ गई जब एंड्र फ्लिंटॉफ ने ब्रेट ली को दिलासा दिया था।इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत के पास श्रृंखला में बढ़त बनाने का बेहतरीन अवसर था।
इंग्लैंड को पहली पारी में 387 रन पर आउट करने के बाद भारत के पास 70-80 रन की लीड लेने का मौका था, जो उसके पक्ष में निर्णायक साबित हो सकती थी।लेकिन उसकी पहली पारी भी 387 रन पर ही सिमट गई।कप्तान शुभमन गिल का कहना है कि पहली पारी में ऋषभ पंत रन आउट न होते तो हमें लीड मिल जाती और पांचवें दिन की ट्रिकी (जटिल पिच पर लगभग 200 रन चेज न करने पड़ते।गिल का यह विश्लेषण सही प्रतीत नहीं होता।रविंद्र जडेजा, जसप्रीत बुमराह व सिराज ने 9वें व 10वें विकेट की साझेदारियों में कुल 212 गेंदें खेली व स्कोर को 112 से 170 तक पहुंचाया.
22 गज की पिच पर 22 रन कम पड़े
निश्चितरूप से भारत का पूरा टॉप ऑर्डर खलनायक रहा।किसी ने भी जडेजा, बुमराह व सिराज की तरह पिच पर टिकने की कोशिश ही नहीं की।जायसवाल ने पहली पारी की तरह दूसरी पारी में भी जोफ्रा आर्चर पर रैश शॉट खेला और खाता खोले बिना ही पैवेलियन लौट गए।केएल राहुल ने पहली पारी में शतक बनाने के बाद दूसरी पारी में थोड़ी कोशिश अवश्य की, लेकिन वह अपर्याप्त रही, उनसे कुछ अधिक की उम्मीद थी।शुभमन गिल ने जब दो शतक व एक दोहरे शतक के साथ पहले दो टेस्ट्स में 585 रन बनाए तो अंदाजा लगाया जाने लगा कि वह श्रृंखला में 1000 रन भी बना सकते हैं, लेकिन लॉर्ड्स में वह 16 व 0 ही स्कोर कर सके।क्रिकेट अनिश्चितता का खेल है।
खिलाड़ी एक दिन अर्श पर तो दूसरे दिन फर्श पर होता है, लेकिन कप्तान गिल को कम से कम दूसरी पारी में बल्ले से अपनी जिम्मेदारी को समझना चाहिए था।उन्होंने भी जयसवाल की तरह गैर- जिम्मेदाराना शॉट खेला और स्कोरबोर्ड पर हलचल किए बिना पैवेलियन लौट गए।आकाश दीप को बतौर नाईट वाचमैन भेजना टीम प्रबंधन की नासमझी थी।वह चौकीदारी करने में असफल रहे और टीम पर अतिरिक्त दबाव पड़ गया।ऋषभ पंत तो स्वतंत्र बैटर हैं।वह कब ऐसी पारी खेल दें जैसी कभी किसी ने खेली न हो और कब बल्ले से एकदम नौसिखए बन जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता।
रविंद्र जड़ेजा का शानदार खेल
वीनू मांकड़ ने 1952 में लॉर्ड्स में 72 व 184 रन बनाए थे।उनके बाद जडेजा ही एकमात्र भारतीय बैटर हैं जिन्होंने लॉर्ड्स टेस्ट की दोनों पारियों में 50 प्लस स्कोर (72 व 61 नाबाद) बनाया है।इस श्रृंखला में जडेजा लगातार चार अर्द्धशतक लगा चुके हैं।लॉर्ड्स की दूसरी पारी में भारत के 7 विकेट मात्र 82 रन पर गिर गए थे।इसके बाद जडेजा ने पहले रेड्डी के साथ मिलकर स्कोर को 112 तक पहुंचाया, फिर बुमराह के साथ साझेदारी करते हुए स्कोर को 147 तक ले गए और अंत में सिराज के साथ मिलकर स्कोर को 170 तक पहुंचाया।जडेजा के एकल प्रयास से भारत जीत के बहुत पास आकर भी दूर रह गया।
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सुनील गावस्कर का कहना है कि जडेजा थोड़ा रिस्क ले सकते थे, लेकिन जिस हाल में भारतीय टीम थी उसमें जिस तरह से उन्होंने बल्लेबाजी की वह जरूरी थी।वह बुमराह और सिराज को बचाने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए फैली हुई फील्ड में भी रन नहीं ले रहे थे।जडेजा संभल- संभलकर मंजिल तक पहुंचने का प्रयास कर रहे थे।दूसरी ओर अनिल कुंबले ने जडेजा की कोशिश की तारीफ तो की है, लेकिन उनका मत है कि उन्हें क्रिस वोक्स व बशीर की गेंदों पर रिस्क लेते हुए प्रहार करना चाहिए था।लगातार मेडन ओवर खेलने से गेंदबाज हावी होते हैं।आठ विकेट गिरने पर हार तो लगभग तय ही हो गई थी।
लेख – शाहिद ए चौधरी के द्वारा