शिबू सोरेन का चलाया तीर धनुष अभियान (फोटो सोर्स -सोशल मीडिया)
Jharkhand Former Cm:झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन आम लोगों के मसीहा थे। शुरूआती दिनों से ही वह आम जनता के हक की लड़ाई के लिए जाने जाते रहे हैं। उनदिनों जब आदिवासी खुद अपने ही खेतों में मजदूरों की तरह काम कर रहे थे, शिबू सोरेन ने उनके लिए एक तलवार की धार का काम किया। बात पुरानी है, उनदिनों गोला मूरी रोड पर गोमती नदी पुल बन रहा था। वहीं के एक विशू महतो नाम स्थानीय निवासी को महाजन के लोग जमीन हड़पने के लिए तंग कर रहे थे।
शिबू ने उसी वक्त यह तय किया कि वे विशू की मदद करेंगे। उन्होंने महाजन के गुंडों से विशू को परेशान न करने की बात कही। गुड़ों को पहली बार बात न मानने पर बुरे अंजाम होने की धमकी दी गई थी। ऐसे में गुंडों ने विशू को परेशान करना बंद कर दिया जिससे आम लोगों के साथ-साथ शिबू सोरेन का मनोबल भी बढ़ा।
गुंडों को इस तरह धमकाने के बाद देखते ही देखते शिबू सोरेन लोगों के बीच लोकप्रिय होते चले गए। उन्हें इस कम उम्र युवा के जोश में अपना मसीहा दिखने लगा। जो उनके जमीन को सूदखोरों के चंगुल से छुड़ा सकता है। शिबू का प्रभाव देखते ही देखते बढ़ता चला गया। साथियों ने बरलंगा पंचायत से शिबू को चुनाव भी लड़वाया पर अफसरों की मिलीभगत ने उन्हें पहली स्थानीय चुनावी हार दिला दी।
इस पंचायती हार के बाद शिबू बैठे नहीं बल्कि आदिवासियों के लिए ‘तीर-धनुष उठाओ और जबरन धान काटो’ अभियान चला दिया। देखते ही देखते लोगों के बीच शिबू सोरेन के इस साहसिक कदम की प्रसिद्धि बढ़ती चली गई।
सूदखोरों से बचाव के लिए मर्द चारों ओर तीर-धनुष की तरह खड़े हो जाया करते थे और महिलाएं अपने ही खेतों के धान काट उसे आपस में बांट लेती थीं। कुछ इस तरह शिबू सोरेन ने आमजन के हितों की रक्षा की।
झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के बनने की भी अपनी एक रोचक कहानी है। हुआ कुछ यूं कि विनोद बाबू उन दिनों झारखंड के एक बड़े नेता CPI छोड़ चुके थे। वे अब शिबू सोरेन के साथ थे। आदिवासियों के राजनीतिक पार्टी की जरूरत को वह अच्छे तरीके से भांप रहे थे।
ऐसे में एक दिन 4 फरवरी 1972 को धनबाद में शिबू सोरेन और साथियों ने विनोद बाबू के धनबाद वाले घर में एक बैठक की। इस बैठक में शिबू सोरेन, विनोद बाबू, एके राय, प्रेम प्रकाश हेंत्रम, कतरास के पूर्व राजा पूर्णेदु नारायण सिंह, शिवा महतो, जादू महतो, शक्तिनाथ महतो, राज किशोर महतो, गोविंद महतो आदि मौजूद थे। बैठक में कई अहम निर्णय लिए गए। सोनोत संथाल समाज और शिवाजी समाज को एक में मिलाकर नया संगठन बनाने का निर्णय लिया गया।
नए संगठन के नाम पर बैठक में चर्चा हुई। कई नाम आगे किए गए। अंतत: नए संगठन का नाम “झारखंड मुक्ति मोर्चा’ (JMM) रखने का फैसला किया गया। केंद्रीय समिति का गठन कर, सभी की सहमति से विनोद बिहारी महतो को अध्यक्ष, शिबू सोरेन को महासचिव और पूर्णेंदु नारायण सिंह को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया।
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साल 1973 में JMM की स्थापना रैली के बाद से ही मोर्चा काफी सक्रिय और प्रसिद्ध हो चुका था। सूदखोरों का धान जबरदस्ती काटने के बाद शिबू के खिलाफ कई केस दर्ज हाे चुके थे। पुलिस जगह -जगह छापे मारकर उनकी तलाश कर रही थी। 4 फरवरी को JMM का स्थापना दिवस मनना निश्चित था।
उस दौरान अध्यक्ष विनोद बिहारी जेल में थे। सबको लगा था कि, इतनी परेशानियों में शिबू भी नहीं आएंगे। बावजूद इसके JMM का स्थापना दिवस मनाना गया। धनबाद में कार्यक्रम स्थल पर लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई।
शिबू को गिरफ्तार करने के लिए जगह-जगह पुलिस तैनात की गई थी। थोड़ी ही देर में पुलिस को भ्रमित कर शिबू सोरेन मंच पर प्रकट हुए। हजारों लोगों से वह घिरे हुए थे। पुलिस मंच तक नहीं पहुंच पा रही थी। उन्हें लगा कि भाषण के बाद हम शिबू को गिरफ्तार कर लेंगे। लेकिन ऐसा हो न सका पुलिस शिबू को खोजती रही, और वह भाषण देने के बाद गायब हो गए।