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Women’s Day Special: जानें ताराबाई शिंदे के बारे में जिन्होंने ‘स्त्री-पुरुष तुलना’ से की थी आधुनिक भारत में नारीवाद की शुरुआत

Tara Bai Shinde : भारतीय समाज को बढ़ावा देने के दौरान, ताराबाई शिंदे उन बहुत कम साहसी महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने महीला-पुरुष के बीच समानता की वकालत की थी। वे एक नारीवादी कार्यकर्ता थी।

  • By राहुल गोस्वामी
Updated On: Mar 08, 2025 | 06:00 AM

ताराबाई शिंदे

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नई दिल्ली : बीते उन्नीसवीं सदी में ताराबाई ने बेआवाज़ सी रहने वाली भारतीय स्त्रियों के बोल को मानों पहले स्वर दिए थे। देखा जाए तो बीते 19वीं सदी में भारतीय समाज में बहुत सारे बदलाव देखने को मिले थे। यह खास समय शिक्षा, लैंगिक समानता, जाति समानता और अन्य क्षेत्रों में सुधार और प्रगति का समय माना जा रहा था। समाज को बढ़ावा देने के इस चरण के दौरान, ताराबाई शिंदे उन बहुत कम साहसी महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने महीला-पुरुष के बीच समानता की वकालत की थी। वे एक नारीवादी कार्यकर्ता थी।

दोस्तों, ताराबाई का जन्म 1850 के आसपास बुलडाना के बरार प्रांत में एक कुलीन मराठा परिवार में हुआ था। जहां उस समय लोग अपने घरों की लड़कियों और औरतों को पर्दो के पिछे रखते थे. इस विषम समय में उनके पिता बापूजी हरि शिंदे ने अपनी बेटी को शिक्षित करने का फैसला किया क्योंकि वह उनकी इकलौती और प्यारी संतान जो थी। इसलिए, ताराबाई को मराठी , संस्कृत और अंग्रेजी भी सिखाई गई।

हालांकि ताराबाई की शादी बचपन में ही कर दी गई क्योंकि 19वीं सदी के भारत में बाल विवाह एक प्रमुख प्रथा थी। लेकिन सौभाग्य से, पारंपरिक पितृस्थानीय विवाहों के विपरीत, उनकी शादी में उनके पति उनके घर ‘घर जमाई’ के रुप में रहने आए थे।

जानकारी दें कि, ताराबाई शिंदे की मौलिक कृति, ‘स्त्री पुरुष तुलना’, जो साल 1882 में प्रकाशित हुई, नारीवादी साहित्य में उनका सबसे उत्कृष्ट योगदान रहा। इस आंकखोलने वाले सशक्त ग्रंथ में ताराबाई ने भारतीय समाज में महिलाओं के समक्ष आने वाली दमनकारी प्रथाओं का विश्लेषण और खुब आलोचना की थी। इसके साथ ही उन्होंने लैंगिक समानता के लिए प्रभावशाली ढंग से तर्क दिया था, प्रचलित गलत धारणाओं को दूर किया था तथा महिला अधिकारों की खुब जोर वकालत भी की थी।

इसके साथ ही उन्होंने सामाजिक सुधार आंदोलनों में खुब सक्रिय रूप से भाग लिया, खासकर महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण वाले आंदोलनों में। वहीं लैंगिक असमानता के खिलाफ उनके साहसिक और मुखर रुख ने उस समय मौजूदा सामाजिक व्यवस्था को खुब खुलकर चुनौती दी और दूसरों को दमनकारी प्रथाओं पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित करने को काम किया।

देखा जाए तो ताराबाई शिंदे के लेखन को उनके जीवनकाल में व्यापक मान्यता कभी नहीं मिली, लेकिन फिर हाल के ही वर्षों में उनके विचारों और दृष्टिकोणों को सराहना मिली है।आज देश के अनेकों विद्वान और नारीवादी उन्हें भारतीय नारीवाद में एक अग्रणी व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं. इसके साथ ही लैंगिक समानता और महिला अधिकारों पर किए उनके कार्य़ और योगदान के महत्व को खुब पहचानते भी हैं।

Womens day special know about tarabai shinde who started feminism in modern india

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Published On: Mar 08, 2025 | 06:00 AM

Topics:  

  • International Women's Day

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