ब्रिटिश काल में भारत, फोटो: सोशल मीडिया
Civil lines and Cantonment Areas in India: भारत में अंग्रेजों के इन इलाकों के नाम रखने की शुरुआत ब्रिटिश शासनकाल में हुई थी। अंग्रेज अफसरों और सैनिकों को भारतीय आबादी से अलग रखने के लिए खास कॉलोनियां बसाई गईं। खास तौर से सिविल लाइंस प्रशासनिक अफसरों के लिए और कैंटोनमेंट सैनिकों की छावनी के तौर पर बनाए गए थे।
सिविल लाइंस वह क्षेत्र होता था जहां अंग्रेजों के सिविल प्रशासन के बड़े अफसर जैसे कलेक्टर, मजिस्ट्रेट, कमिश्नर रहते थे। ये इलाके शहर के बाकी हिस्सों से अलग, साफ-सुथरे और व्यवस्थित होते थे। यहां चौड़ी सड़कों, बड़े बंगले, हरे-भरे बगीचों और शांत वातावरण की व्यवस्था रहती थी।
बताया जाता है कि सिविल लाइंस की शुरुआत 19वीं सदी की शुरुआत में हुई। 1857 से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में पहला सिविल लाइंस बसाया। इसे भारत का पहला और सबसे प्रमुख सिविल लाइंस माना जाता है। धीरे-धीरे यह मॉडल दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, आगरा, मेरठ जैसे कई शहरों में अपना लिया गया।
कैंटोनमेंट या ‘कैंट’ का अर्थ सैन्य छावनी से है। ये वो जगह थी जहां अंग्रेजी सेना के लिए बैरक, ट्रेनिंग ग्राउंड, हथियारों के गोदाम, अस्पताल और चर्च बनाए जाते थे। यहां सैनिक परिवारों के लिए स्कूल और बाजार भी हुआ करते थे।
भारत में पहला कैंटोनमेंट 1765 में बैरकपुर (पश्चिम बंगाल) में बनाया गया। इसके बाद लखनऊ, मेरठ, अंबाला, झांसी, पुणे, प्रयागराज, दिल्ली और सिकंदराबाद जैसे शहरों में भी बड़ी छावनियां बसाई गईं। इन इलाकों की सीमा में आम भारतीयों की एंट्री बेहद सीमित हुआ करती थी।
अंग्रेज प्रशासन चाहता था कि उनके अधिकारी और सैनिक भारतीय समाज से अलग और सुरक्षित रहें। इसीलिए सिविल लाइंस को शहर से थोड़ा दूर और कैंटोनमेंट को सैन्य जरूरतों के मुताबिक रणनीतिक जगहों पर बसाया गया। इन क्षेत्रों में अलग कानून लागू होते थे और भारतीयों की पहुंच सख्ती से नियंत्रित किया जाता था।
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आजादी के बाद, सिविल लाइंस और कैंटोनमेंट एरिया भारतीय प्रशासन और सेना के अधीन आ गए। सिविल लाइंस अब अक्सर शहर के खास और ऐतिहासिक हिस्सों के रूप में देखे जाते हैं, जबकि कैंटोनमेंट भारतीय सेना के नियंत्रण में हैं और सैन्य ठिकानों के रूप में कार्य करते हैं। ये इलाके आजादी के बाद भी कायम हैं। सिविल लाइंस अब कई शहरों में पॉश रिहायशी इलाके बन चुके हैं जबकि कैंटोनमेंट एरिया अब भी सेना के अधीन हैं और वहां बिना अनुमति जाना आसान नहीं है।